कोमागाटा मारू एक जापानी जहाज जिसे भारत के प्रवासी क्रांतिकारियों ने १९१५ ई. में चार मास के लिये किराए पर लिया था। उन दिनों कनाडा के प्रवासी भारतीयों और कनाडावासियों के बीच कतिपय श्रम संबंधी प्रश्नों को लेकर विवाद चल रहा था। इससे कनाडा सरकार ने भारतीयों के कनाडा प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। फलत: कनाडा के प्रवासी भारतीयों के इस अंसतोष ने अन्यत्र बसे भारतीय प्रवासियों को उत्तेजित कर दिया और हांगकांग में क्रांतिकारी विचार के लोगों की एक सभा हुई और निश्चय हुआ कि कनाडा में जबर्दस्ती प्रवेश का प्रयास किया जाए। इसके निमित्त उक्त जहाज किराए पर लिया गया और इस कार्य में बाबा गुरु दत्त सिंह नामक एक मलाया प्रवासी सज्जन ने आर्थिंक सहायता प्रदान की। जब यह जहाज प्रवासी भारतीयों के दल को लेकर बैंकूअर पहुँचा तो वह रोक दिया गया और वह जहाज वहाँ तीन मास तक खड़ा रहा पर भारतीयों को उतरने न दिया गया।

इससे लोगों में यह भाव जागृत हुए कि अँगरेज लोग भारतीयों का पग पग पर अपमान करना चाहते हैं। सम्मानपूर्वक जीवन के लिये आवश्यक है कि भारत को अँगरेजों के चुंगल से आजाद कराया जाए। सैनफ्रांसिस्को (अमरीका) नगर में भारतीयों की एक विराट् सभा हुई। इस सभा में दस हजार प्रवासियों ने भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से भारत चलने का निश्चय किया। सारे संसार के भारतीय प्रवासियों को इस आंदोलन में सम्मिलित होने के लिये गदर नामक पत्र द्वारा आहवान किया गया। बाबा गुरु दत्त सिंह को भी तार दिया गया।

फलत: कोमागाटा मारू जहाज कनाडा से गदर पार्टी के लोगों को लेकर भारत की ओर रवाना हुआ। रास्ते में जापान से भारी मात्रा में शस्त्रास्त्र भी लिए गए। सशस्त्र क्रांति की योजना भाई परमानंद, सरदार कर्तार सिंह, रासबिहारी बोस आदि ने मिलकर तैयार की। अंग्रेजों से सत्ता छीनने के लिये २१ फरवरी १९१५ का दिन निश्चित किया गया। किंतु इसी बीच किसी विश्वासघाती द्वारा अँगरेज सरकार को सारी योजना दो दिन पूर्व ज्ञात हो गई और कोमागाटा मारू के सभी लोग गिरफ्तार कर लिए गए। लगभग ३०० व्यक्तियों को उन्होंने मोत के घाट उतार दिया और क्रांति की योजना विफल हो गई।

यह घटना भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में कोमागाटा मारू के नाम से प्रख्यात है। (परमेवरीलाल गुप्त)