कोणमापी (Goniometer) इस यंत्र द्वारा मणिभ के अंतरतलीय लंबों से बने कोण (interfacial angles) नापे जाते हैं। यह मुख्यत: दो प्रकार का होता है : संपर्क (Contact) कोणमापी तथा परावर्ती (Reflecting) कोणमापी।
संपर्क
कोणमापी-----इसमें
सीधे किनारेवाली
दो भुजाएँ लगी
होती हैं, जो
एक कीलक (Pivot)
पर इस प्रकार
फँसाई रहती
हैं कि वे स्वतंत्रतापूर्वक
घुमाई जा सकें।
वे अर्धगोलाकार
वृत्तखंड से जुटी
रहती हैं। इस वृत्तखंड
पर ० से १८० तक अंश
अंकित रहते हैं।
(चित्र १)
उपयोग करते समय कोणमापी की भुजाओं को मणिभ के किसी दो आसन्न तलों पर ठीक ठीक लगा देते हैं और उनके माध्यम से बने कोण को वृत्तखंड पर पढ़ लेते हैं। वह दो आसन्न तलों के मध्य का कोण है। इसलिये इसे १८० में से घटा देते हैं। यही शेष परिशिष्ट कोण आसन्न अंतरतलीय लंबों के बीच का कोण है।
परावर्ती कोणमापी- इस प्रकार का कोणमापी, पूर्ण विकसित,चमकीले,सूक्ष्म मणिभों के अंतरतलीय लंबों के बीच के कोण को अत्यंत यथार्थता से मालूम करने के लिये विशेष रूप से उपयुक्त है। इन मणिभों के तल प्राय: बहुत चमकदार होते हैं तथा किसी वस्तु के बिंब को दर्पण की तरह परावतित कर देते है।
चित्र २ में दिखाया
गया है कि मणिभ
अ ब स द की दशा
में है।
इसके अ ब तल से प्रकाशोत्पादक की रश्मि (Signal) का बिंब परावर्तित होकर नेत्र से दिखाई पड़ रहा है। इसके पश्चात् मणिभ के अ ब और स द तलों के बीच के किनारे को इस प्रकार घुमाते हैं कि अ द नई स्थिति द अ में आ जाता है जहाँ द अ तथा अ ब एक ही सीधी रेखा में हो जाते हैं। तब फिर वही बिंब इस तल से भी परावर्तित होकर नेत्र से पहले जैसा स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इस प्रकार मणिभ कोण द अ द से धुमाया गया, जोे अ ब तथा अ द तलों के लंबों के बीच का कोण है। इसी सिद्धांत पर आधारित कई प्रकार के परावर्ती कोणमापी बनाए गए हैं। उनमें से एक क्षैतिज वृत-कोणमापी (चित्र ३) है। इसमें एक समांतरित (कॉलिमेटर Collimator) ग तथा एक दूरदर्शी दू लगाया गया है। इनके अतिरिक्त चार संकेंद्र अक्ष इस प्रकार लगाए गए हैं कि मणिभधारक क समंजन (Adjustment) चाप च तथा केंद्रणकारी सरकन (centering slides) घ को एक साथ ही ऊपर या नीचे किया जा सकता है या इनको समतल वृत्त वृ से अलग या एक साथ ही घुमाया जा सकता है। आवश्यकतानुसार मणिभधारक क तथा दूरदर्शी यंत्र द को वृत वृ के साथ घुमा सकते हैं और अन्य भाग कसा हुआ रख सकते हैं।
मणिभधारक
क पर मणिभ को
इस प्रकार रखते
है कि इसका एक
किनारा कोणमापी
की एक के धुरी
के समांतर रहे।
प्रकाशोत्पादक
वस्तु से प्रकाश
रश्मियों को
समांतरित्र ग
के पतले दीर्बछिद्र
(slit)
के मध्य से इस प्रकार
जाने देते हैं
कि दीर्घछिद्र
का बिंब मणिभ
के धरातल से
परार्तित होकर
दूरदर्शी दू
से स्पष्ट दिखाई
पड़े। क्लैंप तथा मंदगति
पेंच (slow
motion screw) प की
सहायता से दीर्घछिद्र
के बिंब को दूरदर्शी
से क्रूस तंतु (cross
wires) पर ठीक
ठीक लगा लेते
है और अंशांकित
क्षैतिज चक्र पर
अंशों को वर्नियर
(vernier)
तथा लेंस (lens)
की सहायता से
बिलकुल ठीक ठीक
पढ़ लेते है।
अब मणिभ और वृत वृ को इस प्रकार घुमाते हैं कि मणिभ के आसन्न तल से भी पहले ही प्रकार का बिंब दूरदर्शी यंत्र के क्रूस तंतु पर बनकर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ने लगे और फिर वर्नियर तथा दूरदर्शी की सहायता से अंशों को बिल्कुल ठीक ठीक पढ़ लेते हैं। घुमाव का यह कोण ही अंतरतलीय लंबों के बीच का कोण होता है।
इसी प्रकार के कोणमापी की तरह वर्णक्रममापी (Spectrometer) भी होता है। अंतर केवल यह होता है कि परावर्ती कोणमापी से मणिभधारक लगा होता है, जिसे इच्छानुसार घुमाने, ऊपर या नीचे करने की व्यवस्था रहती है। यदि दूरदर्शी स्वतंत्रतापूर्वक घूमने लगे तो यही कोणमापी वर्तनांकमापी की भाँति भी उपयोग में लाया जा सकता है।
उपर्युक्त कोणमापी में यदि एक और उर्ध्वाधर वृत्त जोड़ दें तो वह द्विवृत कोणमापी या थियोडोलाइट (Theodolite) कोणमाप कहलाता है, जो अधिक यथार्थ परिणाम देता है। इससे भी अधिक यथार्थ परिणाम देनेवाला त्रिवृत कोणमापी (Three circle goniometer) होता है, जिसमें तीसरा वृत्त उर्ध्वाधर वृत्त के लंबवत् लगा रहता है। इस प्रकार के कोणमापी से भीतरी तलीय कोण सीधे माप लिया जाता है और मणिभ की घुमाने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं पड़ती। इसके अतिरिक्त मणिभीय एक्स-रे विवर्तन (diffraction) को नापने के लिये वाइसेनवर्ग एक्स-रे (Weissenbrg X-ray) कोणमापी है तथा ऐसे भी कोणमापी हैं जिनके द्वारा मणिभों को इनके निर्माण के समय ही नापा जा सकता है। (बंशीधर त्रिपाठी)