कोटा भारत के राजस्थान राज्य का नगर, जिला और दिल्ली रतलाम मार्ग पर स्थित एक प्रमुख जंकशन। (स्थित २५ ११ उ. अ. से ७५ ५०पू. दे.), जनसंख्या १, २०, ३४५ (१९६१)। यह नगर चंबल नदी के दाहिने तट पर, लगभग ९०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। अँगरेजी शासनकाल में यह एक देशी रियासत था। बूँदी के हाड़ौती राजपूत जैतसिंह ने पंद्रहवीं शती में इस नगर की स्थापना की थी। उन दिनों यहाँ कोटिया भीलों की बस्ती थी। उन्होंने इन भीलों से इस भूभाग को अपने अधिकार में लिया। उनके पुत्र सुर्जनदेव ने नगर के चारों ओर एक दुर्ग का निर्माण कराया।

उनके वंशज इस भूभाग पर राज्य करते रहे। १५३३-३४ ई. में बूँदी के राव सूरजमल ने कोटा पर आक्रमणकर अपने राज्य में मिल लिया। १६२५ ई. में राव रत्नसिंह के पुत्र माधवसिंह की सेवाओं से प्रसन्न होकर मुगल सम्राट् जहाँगीर ने पुरस्कार स्वरूप कोटा राज्य की सनद प्रदान की जिसमें कोटा और उसके आसपास के ३६० गाँवों का अधिकार दिया गया था। तबसे कोटा राज्य बूँदी राज्य से स्वतंत्र हो गया और उसपर उनके वंशज राज्य करते रहे।

२६ दिसंबर १८१७ को कोटा राज्य के साथ अँगरेजों ने एक संधि की और अँगरेज सरकार ने उसे मित्र राज्य के रूप में स्वीकार किया और तत्कालीन नरेश राव उम्मेद सिंह को वंशानुक्रम से शासन एवं दीवानी, फौजदारी के संपूर्ण अधिकार प्रदान किए। तबसे यह एक रियासत के रूप में अपना स्थान रखता रहा।

कोटा नगर में प्रवेश के लिये छह विशाल द्वार हैं। यह नगर दलपुर, रामपुर तथा चौक नामक तीन खंडों में विभाजित है जो एक दूसरे से दीवारों द्वारा पृथक् हैं। चौक इस नगर का प्राचीनतम भाग है। यहाँ के अनेक मंदिरों में से सबसे प्रसिद्ध मथुरेशजी का मंदिर है जिसकी मूर्ति गोकुल से लाई गई है। इन मंदिरों में नीलकं ठ महादेव का मंदिर सबसे अधिक पुराना है। यहाँ का गृह उद्योग मलमल और दरियों का निर्माण रहा है। आजकल यह एक प्रमुख औद्योगिक नगर के रूप में विकास कर रहा है। नगर के आसपास अनेक कारखाने स्थापित किए गए हैं। (नवलकिशोरप्रसाद सिंह.;परमेश्वरीलाल गुप्त)