कोचीन अरब सागर के तट पर स्थित केरल राज्य का एक नगर और बंदरगाह जो अँगरेजी राज्य के समय एक देशी राज्य था (स्थिति : ९ ५८ ५ उ. आ. तथा ७६ ११ ५५ पू. दे.)। इसकी स्थापना २५ दिसंबर, १५०० ई. को पुर्तगालियों ने की थी। १६६३ ई. में यह पुर्तगाली लोगों के हाथों से निकलकर डच शासन में आया। उनके समय में यह विकसित हुआ तथा एक महत्वपूर्ण नगर और बंदरगाह बना। १७९६ ई. में अंग्रेजों ने कोचीन पर आक्रमण किया और अपने अधिकार में कर लिया। १८०६ ई. में इसपर गोलाबारी की गई जिससे नगर की बहुत क्षति हुई। डच शासनकाल में यहाँ विभिन्न देशों के लोग-यूरोपीय, अरब, पारसी आदि बड़ी संख्या में आकर बसे।
१७७६ ई. में मैसूर के राजा हैदर अली ने इस प्रदेश को अपने अधिकार में लेकर अपने एक मित्र को कोचीन नरेश के रूप में प्रतिष्ठित किया। १७९१ ई. में इस कोचीन नरेश ने टीपू सुल्तान से भयभीत होकर अँगरेजों से सहायता की प्रार्थना की। गर्वनर जनरल लार्ड वेलेजली ने एक लाख रुपया वार्षिक कर ठहराकर कोचीन को मित्र राज्य स्वीकार किया। किंतु बाद में अँगरेजों ने १७९६ ई. में कोचीन पर आक्रमण कर अपने अधिकार में कर लिया। फिर कुछ शर्तों के साथ कोचीन राजवंश को प्रतिष्ठित किया था। अँगरेजों के भारत से जाने के बाद यह भारत का अंग बन गया और आज यह उसका छठा महत्वपूर्ण बंदरगाह है।
यह नगर लगभग १२ मील लंबे और एक मील चौड़े प्रायद्वीप के उत्तरी भाग में स्थित है। यह प्रायद्वीप मुख्य तट से खाड़ी द्वारा अलग है। स्थल पर पालघाट दर्रे की निकटता तथा जल द्वारा अदन और डर्बन से बंबई की अपेक्षा समीपता ने कोचीन की स्थिति के व्यापार की दृष्टि से महत्वपूर्ण बना दिया है। १९२०-२३ ई. में इस बंदरगाह को आधुनिक रूप देने की योजनाएँ प्रारंभ हुई। सँकरे स्थलीय भाग को काटकर घाटी और मुख्य समुद्र से जोड़नेवाली एक नहर बनाई गई जिसमें से स्वेज नहर को पार कर सकनेवाले सभी जलयान पार हो सकें। स्थलीय भाग में भी खाड़ी को पार करती हुई सड़कों तथा रेल की बड़ी और छोटी लाइनों का निर्माण किया गया जो कोचीन को कोल्लम (क्विलन) और कोट्टयम से मिलाती है। बंदरगाह पर ४५० फुट लंबे चार जलयानों को एक साथ रख सकने के लिये लंबा, गहरे पानी का क्षेत्र है, विंलिग्टन द्वीप के पूर्वी किनारे पर भी चार जहाजों को रख सकने योग्य एक अन्य स्थान बनाया गया है।
कोचीन में मुख्य आयात अनाज, खनिज पदार्थ, तेल, कोयला, काजू तथा रासायनिक पदाथों का होता है। निर्यात की वस्तुओं में नारियल, सन, सन का सामान, अदरक, चाय, रबर, काली मिर्च तथा गरम मसाले प्रमुख हैं। यहाँ कपड़ा बनाने के कई कारखाने हैं। (प्रमिला वर्मा.; परमेश्वरीलाल गुप्त)