कोकमुख महाभारत और पुराणों में वर्ण्ताि एक प्रख्यात और प्राचीन तीर्थ। वराहपुराण के अनुसार विष्णु के तीन ही निवासस्थल हैं और उनमें से एक कोकमुख है। ब्रह्मपुराण के अनुसार यह तीर्थ हिमालय में कोका नदी के तट पर स्थित था और वहाँ वराहविष्णु की मूर्ति प्रतिष्ठित थी। अन्य पुराणों में इस तीर्थ का जो भौगोलिक वर्णन है उसके अनुसार इस तीर्थ प्रदेश में कोका और कौशिकी नामक दो नदियाँ बहती थीं और निकट ही उनका संगम था। यह तीर्थ आज भी वराह क्षेत्र के नाम से जन सामान्य में ख्यात है और नैपाल राज्य के मोरंग जिले में स्थित है। इसके निकट ही कोकहा (प्राचीन कोका) और सप्तकोशी (प्राचीन कौशिकी) का संगम है। यहाँ वराहाविष्णु का एक भव्य मंदिर है और प्रतिवर्ष कार्त्काि पूर्ण्मााि को बहुत बड़ा मेला लगता है ।
ब्रह्मपुराण के अनुसार इस तीर्थ के पवित्र स्थल हैं जलबिंदु, विष्णुधरा, विष्णुपद, विष्णुसर, सोमतीर्थ तुंगकूट, अग्निसर, ब्रह्मसर, धेनुवद, धर्मोद्भव कोटिवट, पापप्रमोचन, यमव्यासनक, मातंग, वज्रभव, शकरुद्र, दंष्ट्रांकुर, विष्णुतीर्थ और सर्वकामिका। इसमें से अनेक आज भी उसी रूप में जाने और माने जाते हैं। मछमारा ग्राम के निकट विष्णुधरा और वहीं विष्णुपद भी है जिसे वराहशिला कहते है। तुंगकूट वराहपुराण के अनुसार एक उत्तुंग शिखर है जिससे चार जलधाराएँ निस्सरित होती थीं। इस तुंगकूट को लोग चौढुंडा कहते हैं। इसके पास ही अग्निसर की पाँच धाराएँ उद्भूत हुई हैं। यहीं ब्रह्मसर भी गुप्त तीर्थ के रूप में माना जाता है। वराह-मंदिर से लगभग तीन चार मील की दूरी पर धेनुवद है। पापप्रमोचन पत्थरों से बने एक झरने का नाम है ।
यहाँ लोग वीरपुर से चतरा होते हुए जाते है। चतरा तक कोसी बाँध के ऊपर सड़क का रास्ता है। उसके आगे तीन-चार मील पहाड़ की चढ़ाई है।
(परमेश्वरीलाल गुप्तु.)