कोंस्तांतीन (कांस्टैंटाइन) रोम का सम्राट्। यह कोस्तंशस प्रथम का अनौरस पुत्र था; उसकी माता फ्लेविया हेलेना सराय की स्वामिनी थी। उसका जन्म सर्बिया में २७ फरवरी, २८८ ई. को हुआ था। बाल्यावस्था में कोंस्तांतीन बंधक के रूप में पूर्वी रोमन साम्राज्य के राजदरबार में भेजा गया। ३०५ ई. में जब उसका पिता पश्चिमी साम्राज्य का उच्च पदाधिकारी बना तब उसने पूर्वी साम्राज्य के अधिपति गेलेरियस से अपने पुत्र को लौटाने की माँग की। पर कोंस्तांतीन को गेलेरियस के दरबार से छुटकारा पाने के लिये छिपकर भागना पड़ा। भागते समय मार्ग में नियुक्त समस्त संदेशवाहक घोड़ों को भी वह अपने साथ चुरा लाया ताकि उसका पीछा न किया जा सके। उस समय उसका पिता बोलोन में स्कॉट्स एवं पिक्ट्स द्वारा किए गए आक्रमण का सामना कर रहा था। इस युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात् ही उसकी मृत्यु हो गई। पिता की सेना ने पुत्र को पिता का पद प्रदान किया। पूर्वी साम्राज्य ने भी इस पद को मान्यता प्रदान करते हुए, उसे कैसर का पद किया। ३०७ ई. में उसे पश्चिमी साम्राज्य का सर्वोच्च पद मिला तथा उसने कान्सुल मैक्समीनियस की पुत्री फाउस्त से विवाह किया।

पूर्वी साम्राज्य के अधिपति गेलेरियस के आक्रमणों का कोंस्तांतीनने सफलतापूर्वक सामना किया ता ३१० ई. में उसने फ्रैंक्स के आक्रमण से भी अपने साम्राज्य की रक्षा की। ३१२ ई. में उसने आल्प्स को पारकर सूसा की विजय की तथा तूरीन एवं वेरोना को जीतता हुआ सीधा रोम पहुँचा। इस घटना के संबंध में किंवदंती है कि रोम पर आक्रमण के पूर्व कोंस्तांतीन ने स्वप्न में लपटों के मध्य उड़ता हुआ क्रॉस, जिसपर विजय का आदेश अंकित था, देखा था। इस स्वप्न से प्रभावित होकर उसने ईसाई धर्म स्वीकार किया। रोम की इस विजय के फलस्वरूप वह रोम तथा पश्चिमी साम्राज्य का एकछत्र सम्राट् बना तथा ईसाई धर्म को समस्त साम्राज्य में सुरक्षा प्राप्त हुई। उसने यूनान को जीतकर अपने सम्राज्य में मिलाया। इस प्रकार कोंस्तांतीन अपनी शक्ति का निरंतर प्रसार करता रहा। पूर्वी साम्राज्य के अधिपति लाइसीनियस की, जो गेलेरियसकी मृत्यु के पश्चात् शक्ति का संचालक बन गया था, शक्ति क्षीण हो चली और एड्रियानोपुल में वह कोंस्तांतीनसे बुरी तरह हारा तथा बाहज़ैंटियम के युद्ध में मार डाला गया। इस प्रकार कोंस्तांतीन पूर्वी एवं पश्चिमी दोनों साम्राज्यों का सम्राट् बन बैठा। ३२६ ई. में वह साम्राज्य की राजधानी रोम से उठाकर कुस्तुंतुनिया ले गया और ईसाई धर्म को राजधर्म घोषित किया। सन् ३३७ ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

कोंस्तांतीन की महत्ता ईसाई धर्म के प्रति किए गए कार्यों एवं विभिन्न क्षेत्रों में किए गए सुधारों में निहित है। शासन को उसने वैधानिक राजतंत्र से हटाकर निरंकुश राजतंत्र के आसन पर बैठा दिया और आरेलियन तथा डायोक्लिशियन द्वारा स्थापित प्रणाली को पूर्णतया समाप्त कर वंशानुगत निरंकुश सिंहासन पर अपने परिवार का आधिपत्य निश्चित कर लिया तथा साम्राज्य में एक नवीन कुलीन वर्ग का निर्माण किया जो उसकी नीति का प्रबल समर्थक बना। सामाजिक क्षेत्र में उसके समय में जाति प्रथा ने अपनी गहरी जड़ें जमा लीं। प्रत्येक व्यक्ति अपना जातिगत पेशा अपनाने के लिये बाध्य किया गया। शासनव्यवस्था के क्षेत्र में कोंस्तांतीन का युग निर्माण एवं कार्यशीलता का युग माना जाता है। उसने प्रशासनिक एवं सैनिक विभागों को विभाजित कर दिया। उसके समय के लगभग ३०० अधिनियम आज भी उपलब्ध हैं, उनमें सामाजिक सुधार की गहरी उत्कंठा परिलक्षित होती है। वह निरंकुशता में विश्वास करता था, चाहे वह प्रशासन के क्षेत्र में हो अथवा धर्म के; उसका यही विश्वास आनेवाली शताब्दियों का पथप्रदर्शक बना। (पद्मा उपाध्याय)