कैलास
(मंदिर)
संसार में अपने
ढंग का अनूठा
वास्तु जिसे मालखेड
नरेश कृष्ण (प्रथम)
(७६०-७५३ ई०) ने निमित्त
कराया था। यह
एलोरा (जिला
औरंगाबाद)
स्थित लयण-शृंखला
में है और अन्य लयणों
की तरह भीतर
से कोरा तो
गया के ही है, बाहर
से मूर्ति की तरह
समूचे पर्वत
को तराश कर
इसे द्रविड़ शैली
के मंदिर का
रूप दिया गया
है। इसके निर्माण
के लिये पहले
खंड अलग किया गया,
और फिर इस पर्वत
खंड को भीतर
बाहर से काट-कूट
कर ९० फुट ऊँचा
मंदिर गढ़ा गया
है। मंदिर भीतर
बाहर चारों
ओर मूति-अलंकरणों
से भरा हुआ है।
इस मंदिर के आँगन
के तीन ओर कोठरियों
की पाँत थी जो
एक सेतु द्वारा
मंदिर के ऊपरी
खंड से संयुक्त थी।
अब यह सेतु गिर
गया है। सामने
खुले मंडप में नंदि
है और उसके दोनों
ओर विशालकाय
हाथी तथा स्तंभ
बने हैं। यह कृति
भारतीय वास्तु-शिल्पियों
के कौशल का
अद्भुत नमूना
है। (परमेश्वरीलाल
गुप्त )