कैरामज़िन, निकोलाइ, मिखाइलेविच (१७६६-१८२६)
रूसी इतिहासकार एवं लेखक। इनका जन्म जमींदार परिवार में सिविर्स्क नामक प्रांत मे हुआ था । किशोरावस्था से ही कैरामज़िन मेसन समाज में भाग लेने तथा पत्र पत्रिकाओं में लेख लिखने लगे। इसी समय से उनकी रुचि साहित्य तथा इतिहास में बढ़ने लगी। उन्होंने १७९१-९२ ई. मास्को समाचारपत्र का प्रकाशन आरंभ किया तथा १८०२ में ‘यूरोप का समाचार’ नामक समाचारपत्र की नींव डाली। यह समाचारपत्र सारे संसार में जाता था और प्राय १९वीं शताब्दी के अंत तक प्रकाशित होता रहा। उन्होंने विभिन्न लेखकों का रचनाओं का चयन ‘अग्लाया’ नाम से दो भागों में किया (१७९५-९४)। उन्हें कदाचित रूसी साहित्य मे भावुक्ता का प्रवर्तक कहा जा सकता है। गरीब लिजा (१७९२) उपन्यास की रचनापद्धति से इस भावुक्ताप्रधान धारा की झलक मिलती है। जर्मनी, स्विटज़रलैंड, फ्रांस तथा इंग्लैंड की यात्रा पर लिखे गए रूसी यात्री के पत्र (१७१-९२) में भी इसी भावुक्ताप्रवण धारा की झलक है। विभिन्न रूसी साहित्य पर इनकी रचनाओं ने विपुल प्रभाव डाला। उन्होंने रूसी भाषा में अप्रचलित शब्दों को निकाला तथा उसे धर्म तथा स्लाव प्रभाव से मुक्तकर और व्यावहारिक शब्दों को प्रयोग में लाकर उसे जनोपयोगी रूप दिया। उनका यह कार्य ‘कैरामज़िन का भाषासुधार’ नाम से प्रसिद्ध है। रूस के महान् काव्यकार बी.ए. जुक्वस्कि के .एन बाव्युस्कोव तथा साहित्यकार आ. स. पुश्किन ने इनकी रचना पद्धति का अनुसरण किया है।
वे एक शालिन इतिहासकार भी थे। १८०३ ई. से वे इतिहास के अध्ययन में लगे। उन्हे तत्कालीन राजकीय इतिहासकार माना जाता है उनका रूस का इतिहास (१८१६-१९) अपने समय की महान् कृति मानी जाती है। यह १२ खंडों में लिखा गया है। अंतिम खंड इनके मरणोपरांत प्रकाशित हुआ। ऐतिहासिक तथ्यों की दृष्टि से वे क्रमाणिक लेखक माने जाते हैं।
सं. ग्रं.-----डी. व्लाग्य : इतिहास विज्ञान के इतिहासवृत्त, यू. एस. एस. आर., मास्को, १९५५; १८वीं शताब्दी के रूसी साहित्य का इतिहास, ३ खंड, मास्को, १९५५। (लियो स्तेस्फान ाौम्यान (लि. स्ते. शौ.))