केकुले, फीड्रिक आगस्ट (१८२९-१८९६ ई.)। विख्यात रसायनशास्त्री। इसका जन्म डार्मस्टैट (Darmstadt) (जर्मनी) में ७ सिंतबर, १८२९ ई. को हुआ था। उसका विचार शिल्पी बनने का था, किंतु गीस्सेन (Giessen) में शिल्पकला का अध्ययन करते समय उसका संपर्क तत्कालीन प्रसिद्ध रसायनज्ञ लीविख (Liebig) से हुआ। उन्होंने केकुले की रु चि रसायन के प्रति आकर्षित की। उनकी प्रेरणा पर केकुले पेरिस आया और उसने रेनो, फ्रेमी और बुर्टज़ के व्याख्यान सुने और ज्हेरार (Gerhardt) से उसकी मित्रता हुई। पश्चात् वह स्विट्ज़रलैंड और इंग्लैंड गया और वहाँ के प्रसिद्ध रसायनज्ञों के संपर्क में आया। जर्मनी लौटने पर उसने हाइडलबर्ग में एक छोटी सी प्रयोगशाला स्थापित की। १८५८ ई. में घेंट (Ghent) तथा १८६५ ई. में बॉन (Bonn) विश्वविद्यालय में रसायन का अध्यापक रहा। १३ जून, १८९६ ई. को बान में उसकी मृत्यु हुई।
कार्बन की संयोजकता पर फ्रैंकलैंड आदि जो कार्य कर रहे थे, उसमें केकुले ने भी योग दिया। १८५८ ई. में कार्बन की चतु:संयोजकता के आधार पर परमाणुओं के संयोजन को समझाने का प्रयत्न इन्होंने किया तथा संवृत और विवृत शृंखला के यौगिकों की कल्पना पहली बार प्रस्तुत की। इसी सिलसिले में इन्होंने बेनज़ीन की प्रस्तावना की। यह कार्य इतने महत्व का था कि प्रोफेसर जैप ने, जिन्होंने केकुले की मृत्यु पर लंदन केमिकल सोसायटी में सन् १८९७ में भाषण दिया था, कहा कि कार्बनिक रसायन का तीन चौथाई भाग प्रत्यक्ष रूप से, या परोक्ष रूप से, केकुले के बेनज़ीन संरचना संबंधी विचारों और परिकल्पनाओं का ऋ णी है। केकुले द्वारा प्रस्तुत बेनज़ीन संरचना संबंधी सिद्धांत हमारी सहायता न करता तो कोलतार से संबंध रखनेवाले सहस्रों उपयोगी यौगिकों की संभावना भी नहीं प्रतीत हुई होती। (सत्यप्रकाश )
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