कृष्ण (देवकीपुत्र) छांदोग्य उपनिषद में उल्लेखित देवकी नाम्नी स्त्री के पुत्र और घोर अंगिरस के शिष्य। कुछ विद्वान् नामसादृश्य तथा देवकी पुत्र होने के कारण दान, तप, आर्जव, अहिंसा, सत्य आदि गुणों की समानता और दैवी संपत्ति के प्रतिपादन की बातों के आधार पर इन्हैं वासुदेव-देवकी पुत्र कृष्ण का एक अनुमान करते है। किन्तु पुराणों में कृष्णचरित के प्रसंग में उनके अंगिरस के शिष्य होने का कोई उल्लेख नहीं है। इसके अतिरिक्त घोर अंगिरस के मरणकाल में अक्षय,अव्यम तथा प्राणसंशित वृति रखने का प्रतिपादन किया है। इस प्रकार की कोई अवधारणा गीता में नहीं है। इसलिये वे निसंदेह वासुदेव कृष्ण के सर्वथा भिन्न व्यक्ति थे।
(परमेश्वरीलाल गुप्त)
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