कृष्ण (द्वितीय) राष्ट्रकूट वंश का एक अन्य नरेश जो कृष्णबल्लभ शुभतंगु और अकालवर्ष कहलाता था। उसके पिता का नाम अमोघवर्ष (प्रथम) था। उसका राज्यरोहणकाल ८८० ई० अनुमान किया जाता है। वह वंश के अन्य राजाओं की तरह ही उसे भी मैसूर, वेंगी, गुजरात और कान्यकुब्ज के राज्यों से लड़ना पड़ा था। उसकी कान्यकुब्ज के गुर्जर प्रतिहार राजा भोज के विरुद्ध मालवा, विशेशत उज्जैन के आसपास मुठभेड़ होती रहीं। ये संघर्ष प्राय सीमावर्ती थे और कभी एक पक्ष की विजय होती तो, कभी दूसरे की। चेदिराज कौकल्य (प्रथम) की पुत्री से उसने विवाह किया इस वैवाहिक संबंध से उसे अन्य राजाओं से युद्ध में काफी सहायता मिली थी। राष्टकुल लेखों से प्रकट होता है कि कृष्ण (द्वितीय) ने इन लड़ाइयों में काफी वीरता दिखाई थी। किंतु उसे वेंगी के चालुक्य भीम से भी हार खानी पड़ी और कान्यकुब्ज के प्रतिहारों के सम्मुख भी दबना पड़ा। वह किसी प्रकार अपने राजनीतिक दाय को बचाने में सफल रहा। ३६ वर्षों के बाद ९१४ ई में उसकी मृत्यु हुई।
वह जैनधर्मोपासक तथा आदिपुराण एवं जैनपुराण के रचियता जैन साधु गुणभद्र का शिष्य था। (वि. पा.)