कृत्रिम सूत कृत्रिम ढंग से सूत (रेशा, Fibre) निर्माण करने का विचार पहले पहल एक अंग्रेज वैज्ञानिक राबर्ट हुक के दिमाग में उठा था। इसका उल्लेख १६६४ ई. में प्रकाशित उसकी माइक्रोग्राफिया नामक पुस्तक में है। इसके बाद १७३४ ई. में एक फ्रेंच वैज्ञानिक ने रेजिन से कृत्रिम सूत बनाने की बात कही; लेकिन उसे भी कोई व्यावहारिक रूप नहीं दिया जा सका। १८४२ ई. में पहली बार अंग्रेज वैज्ञानिक लुइस श्वाब ने कृत्रिम सूत बनाने की मशीन का आविष्कार किया। इस मशीन में महीन सूराखवाले तुंडों (nozzles) का प्रयोग किया गया जिसमें से होकर निकलनेवाला द्रव पदार्थ सूत में परिवर्तित हो जाता था। सूत बनानेवाली आज की मशीनों का भी मुख्य सिद्धांत यही है। श्वाब ने काँच से सूत का निर्माण किया था; लेकिन वह इससे संतुष्ट न था। उसने ब्रिटिश वैज्ञानिकों से कृत्रिम सूत बनाने हेतु अच्छे पदार्थ की खोज की अपील की। १८४५ ई. में स्विस रसायनशास्त्री सी. एफ. शूनबेन ने कृत्रिम सूत के निर्माण के निमित्त नाइट्रो सेल्यूलोज की खोज की।
कृत्रिम सूत के निर्माण का पहला पेटेंट १८५५ में जार्ज एडेमर्स ने प्राप्त किया। उसने कृत्रिम सूत के निर्माण के लिए शहतूत और कुछ अन्य वृक्षों के भीतरी भाग का प्रयोग किया। शहतूत के वृक्ष के भीतरी भाग को पहले उसने नाइट्रीकृत किया। फिर ईथर और ऐलकोहल के साथ-साथ रबर के विलयन में उसका मिश्रण तैयार किया। फिर उसका उपयोग उसने कृत्रिम सूत के निर्माण के लिए किया। दो वर्ष बाद ई. जे. हग्स को कुछ लचीले पदार्थो जैसे स्टार्च, ग्लेटिन, रेजिन, टैनिन और चर्बी आदि से कृत्रिम सूत के निर्माण के लिए पेटेंट मिला। इसके बाद जोसेफ स्वान ने इस दिशा में और अधिक कार्य किया। तब से अब तक इस क्षेत्र में अनेक वैज्ञानिकों ने बहुत काम किया है। फलस्वरूप अनेक प्रकार के कृत्रिम सूत बाजार में उपलब्ध हैं। भारत में कृत्रिम सूत का निर्माण १९५० ई. में आरंभ हुआ।
जब प्रयोगशाला में पहले पहल कृत्रिम सूत बने तब रंगरूप, कोमलता और चमक दमक में वे रेशम से थे, यद्यपि उनकी दृढ़ता और टिकाऊपन रेशम के बराबर नहीं थी। उनका तनाव सामर्थ्य भी निम्न कोटि का था। फिर भी उन्हें कृत्रिम रेशम का नाम दिया गया। १९२४ ई. तक ऐसे मानवनिर्मित सूतों को कृत्रिम रेशम ही कहते थे। बाद में अमरीका में कृत्रिम सूत के लिए रेयन शब्द का उपयोग आरंभ हुआ और आज सारे संसार में कृत्रिम सूत के लिए रेयन शब्द का ही उपयोग होता है।
मानवनिर्मित सूत (रेशों) के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं-
मानवनिर्मित कृत्रिम रेशों के विभीन्न वर्गों, उनके औद्योगिक अथवा वाणिज्य नाम, उनके निर्माण के लिए आवश्यक आधारभूत सामग्री तथा उत्पादक देशों का विवरण इस प्रकार है-
वर्ग औद्योगिक नाम आधारभूत सामग्री उत्पादक देश
क. सेल्युलोस रेयन (Rayon) काष्ठ लुगदी अनेक देश
ख. प्राकृतिक ऐसीटेट (Acetate) कपास लिंटर और काष्ठ लुगदी अनेक देश, संयुक्त राज्य (अमरीका)
विकारा (Vicara) मक्का प्रोटीन
मेरिनोवा (Merinova) केसीन (मथे दुध से) इटली
फाइब्रोलेन (Fibrolane) केसीन (मथे दुध से) संयुक्त राज्य (अमरीका)
ऐल्गिनेट (Alginate) ऐल्गिनिक अम्ल (Alginic acid), समुद्री घास से युनाइटेड किंगडम
ग. संश्लिष्ट तंतु :
१. -पॉलिऐमाइड (Polyamide) नाइलान ६६ (Nylon 66) हेक्सामेथिलीन डायामिन, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य (अमरीका), कैनाडा
ऐडिपिक अम्ल
ऐमिलान (Amylon) हेक्सामिथिलीन डायामिन,
ऐडिपिक अम्ल जापान
नाइलान ६ (Nylon 6), पार्लान कैप्रालेक्टम पश्चिमी जर्मनी
नाइलान ११ (Nylon 11) सिबैसिक अम्ल फ्रांस, हंगरी
रिल्सान
२-पॉलिएस्टर (Polyester) टेरीलीन (Terylene) टेरिथैलिक अम्ल संयुक्त राज्य (अमरीका), जर्मनी
३-पॉलिऐक्रिलिक (Poly-Acrilic) ओर्लान (Orlon), ऐक्रिलान (Acrilon), एक्रिलोनाइट्रिल संयुक्त राज्य (अमरीका), इंग्लैड
डाइनाइट्रिल बेल्जियम, कैनाडा, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी इत्यादि
डार्लान (Darlan), जफ्रोन (Zefran)
पॉलिएथिलान इंग्लैंड
४-पॉलिएथिलीन (Poly-ethylene) कौर्लीन (Courlene)
इटली
५-पॉलिप्रोपिलोन मोप्लेन (Moplen) विनाइल क्लोराइड संयुक्त राज्य (अमरीका)
६-पॉलिविनाइल ऐसीटेट एविस्कोविनियान (Avisco Vinyon) विनाइल ऐल्कोहल जापान
७-पॉलिऐल्कोहल विन्यॉन् (Vinyon) विनिलिडीन क्लोराइड एवं विनिल क्लोराइड फ्रांस जर्मनी
८-पॉलिक्लोराइड रोविल (Rhovyl) विनिनिडीन क्लोराइड एवं विनिल क्लोराइड जापान
९-ट्राइविनिल क्लोराइड पे से (Pe Ce)
१०-पॉलिविनिलिडीन क्लोराइड सारन (Saran) विनिलिडीन क्लोराइड संयुक्त राज्य (अमरीका), इंग्लैंड, जापान, फ्रांस
११-पॉलिस्टेराइट (Polysterite) डॉबार्न (Dawbarn) संयुक्त राज्य (अमरीका)
१२-पॉलिटेट्राफ्लुओर एथिलीन टेफ्लॉन (Teflon) संयुक्त राज्य (अमरीका)
घ. खनिज तंतु (काच) सिलिका बालू, चूना पत्थर
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औद्योगिक उपयोग-इन मानवनिर्मित रेशों का उपयोग वस्त्रोद्योग तक ही सीमित नहीं है; वरन् इनके अनेक अन्य
औद्योगिक उपयोग भी हैं। कुछ मुख्य उपयोग निम्नलिखित हैं :