कुश (१) एक प्रकार का तृण। इसकी पत्तियाँ नुकीली, तीखी और कड़ी होती है। धार्मिक दृष्टि से यह बहुत पवित्र समझा जाता है और इसकी चटाई पर राजा लोग भी सोते थे। वैदिक साहित्य में इसका अनेक स्थलों पर उल्लेख है। अर्थवेद में इसे क्रोधशामक और अशुभनिवारक बताया गया है। आज भी नित्यनैमित्तिक धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध आदि कर्मों में कुश का उपयोग होता है। कुश से तेल निकाला जाता था ऐसा कौटिल्य के उल्लेख से ज्ञात होता है। भावप्रकाश के मतानुसार कुश त्रिदोषघ्न और शैत्य-गुण-विशिष्ट है। उसकी जड़ से मूत्रकृच्छ, अश्मरी, तृष्णा, वस्ति और प्रदर रोग को लाभ होता है।
(२) एक पौराणिक प्रदेश जिसमें कुशस्तंब नामक पर्वत था। वायु पुराण के अनुसार यह जंबुद्वीप के निकट था। यहाँ का राजा हिरण्यरेतस् का पुत्र था। उसने अपने राज्य को अपने सात पुत्रों में बाँट दिया। भागवत पुराण के अनुसार इस प्रदेश में अग्निपूजा प्रचलित थी और वहाँ कुशल नामक मानवसमाज रहता था। आधुनिक विद्वानों की धारणा है कि हिंदूकुश पर्वत के उत्तर कास्पियन और अरल सागर के बीच की भूमि का नाम कुशद्वीप था। कुछ विद्वान् कुशद्वीप के अंतर्गत सहारा, सूडान, गिनी, कामरेन, कांग तथा पश्चिमी और दक्षिणी अफ्रका को सम्मिलित बताते हैं।