कुमारी
(ऐलो, Aloe)
नलिनी कुल (लिलिएसी,
Lilliaceace)
की एक प्रजाति है।
संस्कृत में इस पौंधे
के अन्य नाम है, सहा
स्थूलदला इत्यादि।
साधारणतया
यह घीकँुवार
(खारपाठा, गोंडपट्ठा)
के नाम से प्रसिद्ध
है। यह दक्षिणी
अफ्रीका के शुष्क
भागों विशेषकर
वहाँ की केरू (Karroo)
मरुभूमि में पायी
जाती है। इसकी
लगभग १८० जातियाँ
हैं। कुछ शताब्दियों
से इस प्रजाति की
कुछ जातियाँ
भारत में भी उगाई
जाने लगी हैैं
और वे अब यहाँ
प्रकृत्यनुकूल
हो गई हैं। कुछ
पौंधों में प्रकट
से तना नहीं होता।
उनमें बड़ी-बड़ी मोटी
और माँसल पत्तियों
का गुच्छा होता
है। कुछ पौंधों
में छोटा, या
लंबा, तना भी
होता है। पत्तियों
के किनारों
पर काँटे भी
होते है। पत्तियों
का रंग कई प्रकार
का होता है।
कभी कभी ये पट्टीदार
या चित्तीदार
भी होती है।
इसी कारण पौधों
के शोभा और
सजावट के काम
में लाते है। इनके
फूल, छोटे, पीले
अथवा लाल रंग
के होते है और
पत्तीरहित, साधारण
या शाखायुक्त
होने पर बहुधा
गुच्छों में पाए
जाते है।
कुमारी औषधि, अर्थात मुसब्बर, इस प्रजाति की कई जातियों के रस से बनाई जाती है। यह कड़ए पैंटोसाइडों का अनिश्चित मिश्रण और एक प्रकार की रोचक औषधि है। भारतवर्ष के गाँवों में इसकी मांसल पत्तियों का उपयोग आँख उठ आने पर कई प्रकार से किया जाता है। भारतीय कुमारी औषधि का उल्लेख सर्वप्रथम १६३३ ई. में गार्सिया डे ओर्टा (Garcia de Orta) ने किया था। इसका व्यापार भारत में सबसे अधिक है । प्राय: बंबई और मद्रास से यह बाहर भेजी जाती है। सबसे अधिक यूनाईटेड किंगडम और स्ट्रेट्स सेटलमेंट क ो जाती है। बहुत सी लाल सागर (Red sea) तट, जंजीबार, क्यूराकाओ, बारबेडोज़, कोत्रा आदि से भारत में आयात किया जाता है और वर्गीकृत करने के पश्चात् अन्य देशों को निर्यात कर दिया जाता है।
इस प्रजाति की दो जातियों से भारत में कुमारी औषधि बनाई जाती है।
ऐलो वेनेनोसा (Aloe Venenosa) का रस विषैला होता है अमरीकी कुमारी का नाम अगेव अमेरिकाना (Agave Americanalinn) है यह एमरिलीडेसी (Amaryllidaceae) कुल का पौधा है। इससे औषधि नहीं बनती। (रा. कु. स.)