कुतुबशाह, अब्दुल्ला (१६२६-१६७२ ई.)। गोलकुंडा के कुतुबशाही वंश का शासक। यह मुहम्मद कुतुबशाह का बेटा था और उसकी मृत्यु पर गद्दी पर बैठा था। उसने शासन के आरंभ काल में शासन का समस्त नियंत्रण उसकी माँ हयातबख्शी बेगम करती रहीं; किंतु शीघ्र ही शासन की बागडोर कुछ स्वार्थी अधिकारियों के हाथ में चली गई। फलस्वरूप १६३६ ई. में गोलकुंडा का राज्य मुगल साम्राज्य के अधीन हो गया।

अब्दुल्ला कुतुबशाह राजनीतिक दृष्टि से एक असफल शासक कहा जाता है किंतु उसकी ख्याति साहित्यानुरागी और कवि के रूप में आज तक बनी है। उसका लिखा दीवान दक्खिनी हिंदी का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। अपने शासनकाल में वह साहित्यिकों का पोषक और संरक्षक तो था ही, पराधीन होने के बाद भी वह जबतक जीवित रहा, कवि और साहित्यकारों को उसका संरक्षण प्राप्त रहा। उसके काल में दक्खिनी हिंदी के सुविख्यात कवि मलिकुल शुअरा गवासी हुए जिन्होंने गजल के एक संग्रह के अतिरिक्त तीन मसनवी लिखे थे, जिनमें मैना सतवंती उल्लेखनीय है। वह हिंदी के सुप्रसिद्ध सूफी कवि मौलाना दाऊ द के चंदायन की कथा पर आधारित है। (परमेश्वरीलाल गुप्त)