कुंती (१) अवंति जनपद के निकट स्थित एक प्राचीन जनपद। सहदेव के दक्षिण दिग्विजय के प्रसंग में इस जनपद का उल्लेख हुआ है। तदनुसार यमुना और चंबल के काँठे में इसकी अवस्थिति जान पड़ती है। इसकी गणना पाँच बड़े जनपदों में होती थी। पारिणनि ने कुंति सुराष्ट्र युग्म नाम का उल्लेख किया है। प्रत्यक्षत: ये दोनों जनपद एक दूसरे से दूर थे। पारिणनि ने इस युग्म का उल्लेख राजनीतिक आधार पर किया है। कुंतिनरेश दंतवक्र को मारकर सुराष्ट्र (द्वारका) नरेश कृष्ण ने इसे अपने राज्य के अधीन कर लिया था। पांडवमाता कुंती के पिता इसी जनपद के शासक थे। समझा जाता है कि ग्वालियर जिले के अंतर्गत स्थित कोतवार नामक स्थान ही प्राचीन कुंती है। (परमेश्वरीलाल गुप्त.)
(२) महाभारत की प्रधान महिषी और पांडवों की माता तथा पांडु की पत्नी। यदुवंशी राजा शूर की कन्या जिनका नाम पृथा था। शूर ने इन्हें अपने मित्र कुंतिभोज को दान स्वरूप दे दिया और तबसे इनका नाम कुंती पड़ गया। कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर दुर्वासा ने इन्हें एक मंत्र सिखा दिया जिससे किसी भी देवता का आवाहन करने पर इन्हें पुत्रप्राप्ति हो सकती थी। एक दिन इस मंत्र द्वारा कुंती ने सूर्य का आह्वान किया और कुमारी होते हुए जब इन्हें पुत्र हुआ तो लोकलज्जा के कारण उसे जल में फेंक दिया। यही पुत्र कर्ण हुआ जिसे अधिरथ सूत ने पानी से निकालकर अपनी पत्नी राधा को पालने के लिए दे दिया। स्वयंवर में कुंती ने पांडु को माला पहनाई और पति के आज्ञानुसार धर्म से युधिष्ठिर, वायु से भीम तथा इंद्र से अर्जुन को प्राप्त किया। नकुल तथा सहदेव की माता माद्री थी, जिनके देहांत के बाद कुंती ने ही इन दोनों को भी पाला। कुरु क्षेत्र युद्ध के पश्चात् कुंती कुछ दिन युधिष्ठिर के पास रहीं, फिर धृतराष्ट्र, तथा गांधारी के साथ वन चली गईं और वहाँ दावानल में भस्म हो गईं। (रामाज्ञा द्विवेदी)