कीलहॉर्न, फ्रांज़ (ज. १८४० ई.) जर्मनी के प्रसिद्ध प्राच्यविद्या विशारद। यूरोप के प्रख्यात संस्कृतज्ञों से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त कर पूना के डेकन कालेज में प्राच्य भाषाओं के अध्यापक नियुक्त हुए। यहाँ रहकर इन्होंने संस्कृत भाषा में श्लाघनीय पांडित्य प्राप्त किया और पाणिनीय व्याकरण का गंभीर अध्ययन किया तथा प्राचीन शिलालेखों का प्रौढ़ विश्लेषण किया। उन्होंने नागेश भट्ट के परिभाषेंदुशेखर नामक पांडित्यपूर्ण ग्रंथ का विस्तृत टिप्पणियों के साथ अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया है। उनका पतंजलि महाभाष्य का निर्दिष्ट पाठसंशोधन तथा संस्करण उनके गंभीर व्याकरण ज्ञान क परिचायक है। यह संस्करण वैज्ञानिक दृष्टि से बेजोड़ माना जाता है। उन्होंने अनेक वर्षों तक प्राचीन शिलालेखों के पढ़ने तथा उनके विश्लेषण में अपना समय लगाया। इस कार्य के लिए वे गवर्नमेंट एपिग्राफ़िस्ट के पद पर नियुक्त किए गए थे। सैकड़ों प्राचीन शिलालेखों का पढ़ना तथा इतिहास की गुत्थियाँ सुलझाना इनकी इतिहाससमर्मज्ञता का प्रमाण है। भारत में अवकाश लेने पर यह जर्मनी के विख्यात विश्वविद्यालय गार्टिजन में संस्कृत के अध्यापक नियुक्त हुए थे। अनेक विश्वविद्यालयों में इन्हें समानसूचक उपाधियों से अलंकृत किया था। (बलदेव उपाध्याय)