कीर्तिलता मैथिल कवि विद्यापति का अवहट्ठ भाषा में रचित प्रसिद्ध काव्य जिसकी रचना उन्होंने १४०२ या १४०४ ई. के आसपास की थी। इसमें उन्होंने अपने आश्रयदाता कीर्तिसिंह द्वारा तिरहुत का सिंहासन प्राप्त किए जाने का वर्णन किया है। लक्ष्मण संवत् २५२ में असलान नामक सुलतान ने तिरहुत नरेश गणेश्वर का वध कर दिया। राजा के वध के पश्चात् जब मिथिला की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति का ्ह्रास हुआ तब कीर्तिसिंह और उनके भाई वीरसिंह जौनपुर के सुलतान इब्राहिम शाह से सहायता माँगने गए। इब्राहीम शाहसेना लेकर तिरहुत के उद्धार के लिए चले पर बीच में ही उन्हें दूसरे युद्ध में चला जाना पड़ा। उस युद्ध की समाप्ति पर उन्होंने तिरहुत पर आक्रमण किया और असलान पराजित हुआ। कीर्तिसिंह ने उसे प्राणदान किया। कीर्तिसिंह को राज्य प्राप्त हुआ और उत्सव मनाया गया।
यह तत्कालीन प्रचलित चरितकाव्यों से तनिक भिन्न शैली में लिखा गया हैं। इसमें पद्य के साथ-साथ अलंकृत गद्य भी है। विद्यापति ने अपनी इस रचना को कहाणी कहा है। (परमेश्वरीलाल गुप्त)