किसा गौतमी भगवान बुद्ध की एक शिष्या। इनके संबंध में यह कहा गया है कि उनके एक ही पुत्र था जिसे बाग में खेलते समय साँप ने डँस लिया। एक दिन जब वह मृत पुत्र के शव को लेकर शोकाकुल भटक रही थी तब किसी ने उससे कह दिया कि बुद्ध के पास जाओ, वह तुम्हारे पुत्र को जीवित कर देंगें। उसने पुत्र के शव को ले जाकर बुद्ध के चरणों में डाल दिया और जीवित कर देने की प्रार्थना की। सुनकर बुद्ध ने कहा-ठीक है, तुम किसी ऐसे घर से एक मुट्ठी अन्न ले आओ, जिसके यहाँ कभी कोई मरा न हो। मैं तुम्हारे पुत्र को जीवित कर दूँगा। गौतमी दिन भर नगर में भटकती रही पर उसे कोई ऐसा घर नहीं मिला जहाँ कभी कोई मरा न हो। निराश, वह बुद्ध के पार लौटकर आई। तब बुद्ध ने उसे उपदेश दिया कि मृत्यु के दु:ख से सारा संसार पीड़ित है। जन्म-मृत्यु का चक्र निरंतर चलता रहता है। पुत्र का शोक भूलकर धर्म की शरण में जा। वह सांसारिक मोह त्यागकर भिक्षुणी हो गई और आध्यात्मिक विकास कर अर्हत पद प्राप्त किया। शरीर से कृश होने के कारण लोग उसे किसा गौतमी कहने लगे। (परमेश्वरीलाल गुप्त)