किलकिल १. विष्णपुराण (४।२४) तथा श्रीमद्भगवत पुराण (१२।१) में कलियुगी राजाओं के प्रसंग में मौनवंशी राजाओं के अनंतर उल्लिखित एक राज्य और राज्यवंश। विष्णु पुराण में इनका नाम कैंकिल दिया गया है (तेषूत्सन्नेषु कैंकिला यवना भूपतयो भविष्यन्ति अमूर्धाभिषिक्ता:, ४।५४।५५)। भागवत में इनकी राजधानी किलकिला का उल्लेख किया गया है जो इनके नामकरण का कारण मानी जा सकती है (किलकिलायां नृपतयो भूतनंदो/थ वंगिरि:, १२।१।३२)। भागवत के वर्णन से प्रतीत होता है कि ये मूलत: भारत के बाहर वाह्लीक (बैक्ट्रिया) के राजा थे जिनका आधिपत्य भारत में भी किसी युग में था। भाऊदाजी के मत से ये अजंता गुफा के आसपास बताया जाता है। यवन नाम से इनके आयोनियनन ग्रीक होने का अनुमान होता है। ये कोंकण में ९८० ईस्वी के आसपास शासक रूप में वर्तमान थे। आंध्र पर राज्य करनेवाले इस यवन वंश का उत्कर्षकाल ५७६ ई. से ९०० ई. तक माना जाता है।

सं.ग्रं.-रायल एशियाटिक सोसाइटी की बंबई शाखा के जर्नल में भाऊदाजी का लेख; महाराष्ट्रीय ज्ञान कोष, भाग ११। (बलदेव उपाध्याय)।

२. बुंदेलखंड से प्राप्त अनेक शिलालेखों में किलकिला नाम का उल्लेख हुआ है और इस प्रदेश में किलकिला नाम की नदी बहती है। इस कारण कुछ इतिहासकारों का मत है कि इस प्रदेश का प्राचीन नाम किलकिला था और अभिलेखों में वर्णित किलकिला नृप दूसरी तीसरी शती ई. में बुंदेलखंड में राज्य करते थे। कुछ लोग इन्हें नागवंशी अनुमान करते हैं तथा उनका संबंध भारशिव और वाकाटक नरेशों से जोड़ते हैं। (परमेश्वरीलाल गुप्त)