किन्नरी संस्कृत ग्रंथों में किन्नरी वीणा का उल्लेख हुआ है किंतु इसका आरंभ फारस देश से अनुमान किया जाता है। बेंगलोर के बसवनगुडी मंदिर में किन्नरी वादक का एक चित्र उत्कीर्णित है। संगीत रत्नाकर में इसका विस्तृत वर्णन है जिसके अनुसार यह तीन तुंबियों पर आधारित दो-ढाई फुट लंबा तंतु वाद्य है। इसकी मझली तुंबी बड़ी और अगल बगल की छोटी होती है। इसमें दो तार होते हैं जिनमें से एक दूसरे से कुछ ऊँचाई पर खूँटी से बँधा होता है। दाहिने हाथ से तार को छेड़ते हुए बायीं हाथ की उँगली से स्वर स्थान को दबाकर बजाया जाता है। आकार के अनुसार इसके तीन भेद हैं बृहती, मध्यमा और लध्वी। (परमेवरीलाल गुप्त)