कावेरी दक्षिणी भारत की ४७५ मील लंबी एक नदी है जो पश्चिमी घाट में (अरब सागर से केवल २० मील दूर) कुर्ग की पहाड़ियों से निकलकर दक्षिण-पूर्व में कर्नाटक एवं तमिलनाडु राज्यों से प्रवाहित होकर डेल्टा बनाती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। कुर्ग एवं पश्चिमी मैसूर नगर से १२ मील उत्तर-पश्चिम कावेरी तथा इसकी सहायक हेमवती और लक्ष्मणतीर्थ की त्रिवेणी पर एक बाँध बनाकर कृष्णराजसागर जलतड़ाग का निर्माण किया गया है, जिससे ९२,००० एकड़ भूमि की सिंचाई होती है। कापिनी तथा शमशा नदियाँ पठार की अन्य सहायक नदियों में प्रमुख हैं। आगे चलकर कावेरी मैसूर नगर से ३५ मील पूर्व शिवसमुद्रम् द्वीप द्वारा दो भागों में विभक्त हो जाती है। यहाँ ३२० फुट ऊँचे जलप्रपात हैं जिनके द्वारा जलविद्युत् उत्पन्न की जाती है। मद्रास राज्य में प्रवेश करने पर भवानी नदी, जो नीलगिरि पर्वत से निकलती है, कावेरी की सहायक बनती है। त्रिचनापल्ली के निकट यह पुन: सेरिंगम (Seringam) द्वीप द्वारा दो प्रमुख शाखाओं में विभक्त हो जाती है। इसकी दक्षिणी शाखा का नाम 'कोलरून' है। यहाँ से तंजौर का सुप्रसिद्ध उर्वर डेल्टा प्रदेश आरंभ होता है जो दक्षिण भारत का उद्यान कहा जाता है। यह उत्तम प्रकार का चावल उत्पन्न करने के लिए प्रसिद्ध है।

डेल्टा प्रदेश की सिंचाई प्रणाली अत्यंत प्राचीन है। ईसा से ४०० वर्ष पूर्व निर्मित एक बाँध अभी तक अच्छी स्थिति में विद्यमान है। सन् १९३४ ई. में 'कालरून' पर १७६ फुट ऊँचे तथा २,२५० फुट लंबे मेटूर बाँध का निर्माण कर ६०,००,००० एकड़ भूमि सींचने की व्यवस्था की गई थी। दोनों राज्यों में कावेरी नदी से लगभग १३ लाख एकड़ भूमि सींची जाती है। नहरों एवं प्रशाखाओं की कुल लंबाई क्रमश: १,५०० मील तथा २,००० मील है। कावेरी का औसत वार्षिक जलसंचार १२० लाख एकड़ फुट है जिसमें से सन् १९६० ई. तक लगभग २०० लाख एकड़ फुट जल उपयोग में लाया जा चुका है। सिंचाई के अतिरिक्त जोग, कृष्णराजसागर, शिवसमुद्रम्, मेटूर आदि स्थानों पर जलविद्यत् उत्पन्न की जाती है। यह नदी बहुत ही पवित्र मानी जाती है अत: इसे दक्षिणी गंगा कहते हैं। (न.कि.प्र.सिं.)