कालीजीरीएक वाणीद्रव्य है जिसका उपयोग चिकित्सा में होता है। इसे अरण्यजीरक, वनजीरक, करजीरी अथवा कड़वी जीरी भी कहते हैं। यह कंपोज़िटी कुल के वर्नोनिया ऐंथेलमिंटिका (Vernonia anthelmintica) नामक क्षुप का फल (बीजतुल्य) है।

इसका क्षुप २-७ फुट ऊँचा, एक वर्षायु और रूखड़ा छोटी और शल्याकृति (lanceolate) तथा छोटे वृंतवाली होती हैं। फीके जामुनी रंग के सूक्ष्म नलिकाकार पुष्प मुंडकाकार गुच्छों में निकलते हैं, जिनको घेरे हुए निपत्रावलियों का कई निचक्र (involucre) होता है। फल फीके, काले रंग के, लंबे, ऊपर की और कुछ स्थूल और शीर्ष पर अस्थायी रोम (pappus hairs) तथा सूक्ष्म स्थायी वल्कच्छदों (स्केल) से युक्त रहते हैं।

करजीरी तिक्त, शीतवीर्य तथा व्रण और कृमिनाशक होती है। दीपक, वातनाशक, ज्वरघ्न और चर्मरोगनाशक के रूप में यह उपयोगी बतलाई गई है। कुछ ग्रंथकार इसे प्राचीन ग्रंथों में उल्लिखित सोमराजी समझते हैं और कहीं-कहीं आदिवासियों में इसका 'सेवराज' नाम भी प्रचलित है, परंतु अधिकतर 'सोमराजी' को प्रसिद्ध कुष्ठघ्न द्रव्य 'वाकुची' (Psoralia corylifolia) का ही पर्याय माना जाता है। (ब.सिं.)