कालिंपोंग प. बंगाल के दारजीलिंग जिले में २६रू ५१व् उ.अ. से २७रू १२व् उ.अ. तथा ८८रू २८व् पू.दे. से ८८रू ५३व् पू.दे. तक फैला हुआ पहाड़ी क्षेत्र है। क्षेत्रफल ४१२ वर्ग मील। इसके पूर्व में नी-चू. तथा दी-चू, पश्चिम में तिस्ता तथा उत्तर में सिक्किम राज्य हैं। १८६५ ई में यह भाग ने भूटान से जीत लिया था। कालिंपोंग का धरातल पर्वतश्रेणियों से कटा फटा है। ये श्रेणियाँ उत्तर में रिशि-ला के निकट कोई १०,००० फुट की ऊँचाई से घटकर दक्षिणी मैदान की ओर ३०० फुट से १,००० फुट ऊँची रह जाती हैं। इनके शिखर तथा घाटियों की तलहटियाँ सुरक्षित वनों से ढकी हैं। पहाड़ी ढालों के मध्य का भाग (२,०००-६,००० फुट) साधारण कृषि के लिए सुरक्षित है। यहाँ की मुख्य उपज मक्का है। लगभग तीन चौथाई कृषिक्षेत्र में मक्का की खेती हाती है। कृषि के लिए पहाड़ी ढालों पर बहुत से खेत सीढ़ीनुमा बनाए जाते हैं। कृषकों से लगान इकट्ठा करने का कार्य मुखिया (मंडाल) करता है। वही सड़कें बनवाने का भी कार्य करता है। दुवार (तराई) के कृषक अपनी उपज तिब्बत के मार्ग में पेडांग तथा चेल घाटी के सिरे पर सोंबारी नामक बाजारों में ले जाते हैं। तिब्बत के साथ व्यापार का मुख्य बाजार कालिंपोंग हैं जो इस प्रदेश का मुख्य नगर है।

कांलिपोंग तिब्बत से आयात होनेवाली वस्तुओं, विशेषकर, ऊन, का विख्यात व्यापारिक केंद्र है। यहाँ पर यूरोपियन तथा यूरेशियन निर्धन बच्चों की शिक्षा के लिए 'सेंट ऐंड्रयूज़ कॉलोनियल होम' १९०० ई. में स्थापित हुआ था। यहाँ का चर्च ऑव स्काटलैंड मिशन का गिरजाघर तथा स्कूल दर्शनीय हैं। (प्रे.चं.अ.)