काला पहाड़ के वंश, कृतित्व, तथा जीवनावधि के संबंध में मतसाम्य नहीं हैं; किंतु प्रतीत होता है, वस्तुत: इतिहासप्रसिद्ध काला पहाड़ उपनामधारी दो अलग व्यक्ति थे, जिनके जीवनकाल और कार्यक्षेत्र विभिन्न थे। काला पहाड़ प्रथम (वास्तविक नाम, मोहम्मद खाँ फार्मुली), सुल्तान बहलोल लोदी का भागिनेय था। संभवत: हुसैनशाह शर्की के विरुद्ध युद्ध में सहायक होने के उपलक्ष में सुल्तान द्वारा, पुरस्कार स्वरूप, उसे अवध का प्रदेश तथा कुछ अन्य परगने प्राप्त हुए थे। पहले वह बारबकशाह का सेनापति था; किंतु, उत्तराधिकार युद्ध में उसके पराजित होने पर काला पहाड़ विजयी भ्राता सिकंदर लोदी का सामंत बन गया। इब्राहीम लोदी के शासन के अंमि काल में उसकी मृत्यु हुई। ख्यातनामा सेनानी होते हुए भी कृपण स्वभाव के कारण उसने अमित धन संचित किया था।

काला पहाड़ द्वितीय (उपनाम राजू) यद्यपि अफगान इतिहासकारों द्वारा अफगान जाति का ही बताया गया है, तथापि संभवत: वह जन्म से ब्राह्मण था। प्रेमवश धर्मपरिवर्तन कर लेने के बाद वह इतिहास में धर्माध मूर्तिभंजक के रूप में प्रसिद्ध हुआ। तात्कालिक जनश्रुति के अनुसार वह अत्यंत भयावह और निर्दय व्यक्ति था तथा उसके आगमन पर देवप्रतिमाएँ स्वत: काँप उठती थीं। वह बंगाल नरेश सुलेमान कर्रानी का सेनापति था। मात्र लूट मार और जिहाद की भावना से प्रेरित हो प्रथमत: उसने बिहार पर आक्रमण किया। जब जाजपुर से अफगान सेना प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर पहुँची तब पहले तो सर्वसाधारण को उसके आगमन का विश्वास ही न हुआ, फिर अंधविश्वासवश देवप्रतिभा के प्रभाव से सुरक्षित समझने के कारण बचाव की विशेष सैनिक तैयारियाँ भी नहीं की गई। मंदिर का विध्वंस कर आक्रमणकारियों ने इतना धन लूटा कि प्रत्येक सैनिक को एक या दो स्वर्णमूर्तियाँ हाथ लगीं। तत्पश्चात् सेना ने असम की ओर अभियान किया। कूचबिहार नरेश नरनारायण के सेनापति शुक्लध्वज (चीलाराय) को परास्त कर, कामाख्या तथा हाजों के सुप्रसिद्ध अनेक मंदिरों तथा अन्य मंदिरों को ध्वस्त करता हुआ काला पहाड़ बंगाल लौट गया। मुगल सम्राट् अकबर द्वारा बंगाल पर आक्रमण होने पर अन्य सामंतों के साथ काला पहाड़ ने घोड़ाघाट पर मुगल सेना को पीछे खदेड़ दिया। किंतु, तृतीय आक्रमण पर, राजमहल में खाने आजम अजीजकोका के विरुद्ध युद्ध करते हुए उसकी मृत्यु हो गई।

सं.ग्रं. नियामतउल्ला: हिस्ट्री ऑव द अफ़गान्स (डार्न द्वारा संपादित); रियाजुस्सलातोन (मौलवी अब्दुस्सलाम द्वारा संपादित); ईलियट ऐंड डाउसन : द हिस्ट्री ऑव इंडिया, (खंड ४, ५, ६,); रमेशचंद्र मजुमदार : हिस्ट्री ऑव बेंगाल; सुधींद्रनाथ भट्टाचार्य : ए हिस्ट्री ऑव द मुग़्ला नार्थ-ईस्ट फ्रंटियर पालिसी; अवधबिहारी पांडे : द फ़र्स्ट अफ़गान एंपायर इन इंडिया; सैयद अतहर अब्बास रिज़वी : उत्तर तैमूर कालीन भारत (प्रथम भाग); दरंगराज वंशावली; पुरानी असम बुरंजी (Purani Asam Buranji)। (रा.ना.)