कार्बोहाइड्रेट केवल कार्बन, हाइड्रोजन तथा आक्सीजन से बने रहते हैं और इन योगिकों में हाइड्रोजन और आक्सीजन प्राय: उसी अनुपात में रहते हैं जिस अनुपात में पानी में। इसीलिए फ्रांसीसी रसायनज्ञों ने इनका नाम कार्बन के हाइड्रेट अथवा कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate) रखा। प्रकृति में उपलब्ध बहु-हाइड्रॉक्सी ऐल्टिहाइड तथा कीटोन और इनके संजात कार्बोहाइड्रेट के नाम से जाने जाते हैं, जिनमें शर्करा, रुई, सेल्यूलोस, रेयन, स्टार्च, रक्त-शर्करा तथा ग्लिसरोल के संजात विशेष महत्वपूर्ण हैं। सामान्यत: कार्बोहाइड्रेट सूत्र Cx (H2O)y से बताए जा सकते हैं, जैसे द्राक्ष शर्करा (ग्लूकोस) का सूत्र C6 H12 O6 है और इक्षुशर्करा (केन शुगर) का सूत्र C12 H22 O11 है। अब तो ऐसे भी कार्बोहाइड्रेट मिले हैं जिन्हें कार्बन के हाइड्रेटवाले सूत्र से दर्शाया नहीं जा सकता, जैसे रैमनोस का सूत्र C6 H12 O5 है। ये मानव का मुख्य खाद्य पदार्थ हैं और सैद्धांतिक तथा प्रायोगिक दृष्टि से इनका महत्व अत्यधिक है, क्योंकि इनकी उत्पत्ति और वितरण संसार के भोजन, अर्थव्यवस्था तथा राजनीति पर विशेष प्रभाव डालनेवाले होते हैं।

कार्बोहाइड्रेटों को तीन वर्गों में विभक्त किया गया है :

१. मॉनोसैकराइड (Monosaccharide)—जिनका जलविश्लेषण के अवक्रमण नहीं होता। ये कार्बोहाइड्रेट के सरल एकक हैं।

२. डाइसैकाराइड और ट्राइसैकाराइड (Disaccharide and Trisaccharide)ये जलविश्लेषण पर दो और तीन मॉनोसैकाराइडों के अणु देते हैं।

३. पॉलीसैकाराइड (Polysaccharide)ये मॉनोसैकाराइडों के कई अणुओं के संयोग से बने रहते हैं। इनका सामान्य सूत्र (C6 H10 O5 )n है।

मीठे स्वाद और मणिभ होने के कारण मॉनो, डाइ और ट्राइसैकाराइडों का शर्करा (शुगर) भी कहा जाता है।

मॉनोसैकाराइडइन्हें इनके रासायनिक गुणों के आधार पर ऐल्डिहाइडीय ऐल्कोहल और कीटोनीय ऐल्कोहल में विभाजित किया जाता है। इन्हें क्रमानुसार ऐल्डोज़ (Aldose) तथा कीटोज़ (Ketose) कहा जाता है। पुन: इनका वर्गीकरण कार्बन की परमाणुसंख्या के विचार से किया जाता है, जैसे बायोस (२ कार्बन परमाणु), ट्रायोस (३ कार्बन), पेंटोस (५ कार्बन), हेक्सोस (६ कार्बन) इत्यादि। इस भाँति ग्लिसरैल्डिहाइड CH2OHOHOH CHO एक ऐल्डोट्रायोस है और डाइ-हाइ-ड्रॉक्सि ऐसिटोन क्क्तग्र्क्तक्ग्र्क्क्तग्र्क्त एक कीटोट्रायोस है। अब हम कुछ प्रमुख मॉनोसैकाराइडों का विवेचन करेंगे।

ग्लूकोसइसे द्राक्षशर्करा, अंगूरी शर्करा अथवा डेवस्ट्रोस भी कहते हैं। यह फ्रुंटोक्स के साथ अंगूर में, मधु में तथा अन्य मीठे फलों में मिलता है। ग्लूकोस और फ्रुंक्टोस ही ऐसे हेक्सोस हैं जो प्रकृति में शुद्ध रूप में पाए जाते हैं।

ग्लूकोस की उत्पत्ति पॉलीसैकाराइडों, जैसे चीनी, स्टार्च और सेल्यूलोस के जलविश्लेषण से होती है। औद्योगिक प्रणाली में स्टार्च को तनु सल्फ़्यूरिक अम्ल से उबालकर ग्लूकोस प्राप्त करते हैं। इस प्रकार प्राप्त ग्लूकोस का विशेष उपयोग मिठाइयों और आसव उद्योग में होता है।

इसे ऐसीटिक ऐनहाइड्राइड के साथ गरम करने पर पेंटा-एसीटिल ग्लूकोस प्राप्त होता है जिससे ज्ञात होता है कि ग्लूकोस के अणु में पाँच हाइड्रॉक्सिल समूह स्थित हैं। रासायनिक क्रिया में यह ऐल्डिहाइड की भाँति तीव्र अवकार है। यह फ़ेलिंग विलयन को अवकृत करता है तथा ऐल्डिहाइड की भाँति हाइड्रोसायनिक अम्ल, हाइड्रॉक्सिलऐमिन तथा फेनिल हाइड्रैज़िन से अभिक्रिया करता है। इसे जब हाइड्रोजन से अवकृत करते हैं तो हेक्सा-हाइड्रिक ऐल्कोहल, सार्बिटाल (नीचे सूत्र २ देखें) प्राप्त होता है। इसे पुन: हाइड्रोजन-आयोडाइड से अवकृत करके सामान्य (नार्मल) हेक्सेन का संजात CH3 CH2 CH2 CH2 CHI (CH3) प्राप्त होता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि यह ऋजुशृंख यौगिक है और ग्लूकोस का एक सरल सूत्र (नीचे सूत्र १ देखें) दिया जा सकता है।

C H O C H 2 O H C O O H C O O H

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C H O H C H O H C H O H C H O H

� � � �

C H O H C H O H C H O H C H O H

� � � �

C H O H C H O H C H O H C H O H

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C H O H C H O H C H O H C H O H

� � � �

C H2 O H C H2 O H C H2 O H C O O H

(१) (२) (३) (४)

ग्लूकोस सार्बिटल ग्लूकोनिक अम्ल सैकरिक अम्ल

ग्लूकोस ब्रोमिन-जल से आक्सीकृत होकर ग्लूकोनिक अम्ल (३) तथा अंत में सैकेरिक अम्ल (४) में परिवर्तित हो जाता है। फेनिल हाइड्रैज़ीन के साथ ग्लूकोस (१ : १ अणुमात्रा में) ग्लूकोस फेनिल हाइड्रैंज़ीन देता है :

C H2 O H (C H O H)4 C H O + H2 N N H C6 H6

= C H2 O H (C H O H)4 C H N N H C6 H5 + H2O

ग्लूकोस फेनिल हाइड्रैज़ोंन (सूत्र A) को अधिक फेनिल हाइड्रैज़ीन के साथ गरम करने से वह इस भाँति आक्सीकृत होता है कि -C H O समूह के सन्निकट का - C H O H समूह -C H समूह (सूत्र ए) में परिवर्तित हो जाता है और फिर नए फेनिल हाइड्रैज़ीन अणु से संघनित होकर ग्लकोसाज़ोन (सूत्र C) बना लेता है।

A B

CH2OH CH2OH

� �

(CHOH)3 (CHOH)3

� +C6H5NHNH2 � +C6H5NH2 + NH3

CHOH C = O

� �

CH = NNHC6H5 CH = NNHC6H5

ग्लूकोस फेनिल हाइड्रैज़ोन

B C

CH2OH CH2OH

� �

(CHOH)3 (CHOH)3 + H2O

� + C6H5NHNH2

(C = O C = NNHC6H5

� �

CH = NNHC6H5 CH = NNHC6H5

ग्लूकोसाज़ोन

कार्बोहाइड्रेटों का विन्यास—कार्बोहाइड्रेटों के विन्यास निश्चित करने के लिए जो सिद्धांत अपनाए गए हैं उनको समझने के लिए ऐसी शर्करा का अध्ययन हम करेंगे जिसमें केवल एक ही असम्मित कार्बन

CH = O

CHOH

CH2OH

परमाणु हो। ग्लिसरैल्डिहाइड में मध्य का कार्बन परमाणु असम्मित है और इसके दो विन्यास समावयविक रूप (d-) और (I-) ही संभव हैं। सर्वसम्मति के अनुसार दक्षिणावर्त रूप को, जिसे (d-) रूप कहते हैं, (-OH) समूह को कार्बन के दाहिनी ओर रखकर दर्शाते हैं। इस बात को कि और (-OH) वाला समूह पृष्ठ की सतह के ऊपर है और (-CHO) तथा (-CH2OH) वाला समूह पृष्ठ की सतह के नीचे है, [ D(+)] विन्यास कहते हैं और इस रूप के ग्लिसलैल्डिहाइड को [ D(+)] ग्लिसरैल्डिहाइड।

C H O �� H O

� �

H-C-O-H HO-��-H

� �

C H2 O H �� H2 O H

[ D] ग्लिसरैल्डिहाइड [ L] ग्लिसरैल्डिहाइड

(D) और (L) अणुविन्यास की दशा के संकेत हैं तथा (अ) और (-) घूर्णन की दिशा बताते हैं। वे अणु जो इस (D) विन्यास से संबंधित हैं (D) माला में आते हैं और इन अणुओं की घूर्णनदिशा (+) या (-) कुछ भी हो सकती है।

जब क़् ग्लिसरैल्डिहाइड (NCN) की सहायता से अगले सजातीय में परिवर्तित किया जाता है तो द्वि-विन्यास समावयव D (–) एर्थ्राोिस तथा D (–) ्थ्रायोस प्राप्त हाते हैं :

C H O C H O C H O

� � �

H-C-O H H-C-O H H O-C-H

� � �

C H2 O H H-C-O H H-C-O H

� �

C H2 O H C H2 O H

D (+) ग्लिसरैल्डीहाइड, D (–) एर्थ्रीाोस, D (–) ्थ्रायोस

सभी मॉनो-सैकराइडें जो D (+) ग्लिसरैल्डिहाइड से संबंद्ध हैं अर्थात् जिनमें

H-C-O H

C H2 O H

समूह विद्यमान है क़् माला में आते हैं। इसी भाँति पेंटोस की क़् माला में चार रूप और हैक्सोस की क़् माला में आठ रूप संभव हैं।

कीटोस, हाइड्रैज़ीन के साथ ओसाज़ोन बनाते हैं और इसलिए इनके एल्डोसों के संबंध से इनका विन्यास निर्धारित किया जाता है। जैसे ग्लूकोस और फ्रुंक्टोस से एक ही ओसाज़ोन प्राप्त होता है। इसलिए इन दोनों यौगिकों में संख्या ३, ४, और ५ कार्बन परमाणु के विन्यास एक ही होंगे।

1C H O 1C H2 O H

� �

H-2C-O H 2C = O

� �

H O-3C-H HO-3C-H

� �

H-4C-O H H-4C-O H

� �

H-5C-O H H-5C-O H

� �

6C H2 O H 6C H2 O H

ग्लूकोस फ्रुंक्टोस

ग्लूकोस की अणुरचना—ग्लूकोस का उपर्युक्त सूत्र बहुत से प्रेक्षणों का समाधान नहीं करता। शिफ़ (Schiff) के अभिकर्मक से ग्लूकोस की परख नहीं हो पाती। ग्लूकोस सोडियम सल्फ़ाइड के साथ योगशील यौगिक नहीं बनाता और मेथिल ऐलकोहल के साथ ऐल्डिहाइड की भाँति ऐसीटल नहीं बनता। रखने पर ग्लूकोस के अभिनव विलयन का विशिष्ट घूर्णन परिवर्तित होता रहता है और फिर एक निश्चित मान पर स्थायी हो जाता है। ग्लूकोस और मेथिल ऐल्कोहल की एकाणुक अभिक्रिया से दो समावयवयी प्राप्त हाते हैं जिससे ज्ञात होता है कि ग्लूकोस अणु का एक (-OH) समूह अभिक्रिया में भाग लेता है और कार्बन ५ के हाइड्रॉक्सिल समूह के द्वारा एक संवृतशृंखल यौगिक बनाता है। कार्बन संख्या १, जिससे (-CHO) समूह संबद्ध हैस, फिर एक असम्मित कार्बन परमाणु में परिवर्तित हो जाता है और इसीलिए मेथिल ग्लूकोसाइड के दो समावयवी (तृतीय और चतुर्थ) उत्पन्न होते हैं। इसी कारण ग्लूकोस के भी दो समावयवी, जिन्हें प्रथम (I) या ऐल्फ़ा और द्वितीय (II) या बीटा कहते हैं, संवृतशृंखल सूत्र से इंगित किए जाते हैं :

� � �

H-C1-OH HO-C-H H-C-OH3

� � �

H-C2-OH H-C-OH H-C-O H

� � �

HO-C3-H O HO-C-H O HO-C-H O

� � �

H-C4-OH H-C-OH H-C-OH

� � �

H-C5 H-C H-C

� � �

C6H2OH CH2OH CH2OH

प्रथम द्वितीय तृतीय

a- क़्-क़्ग्लूकोस ड-क़्-ग्लूकोस ऐल्फ़ा a-्थ्रड्ढदद्यण्न्र्थ्-क़्-ग्लूकोसाइड

H2 C O-C-H

H-C-O H

H O-C-H O

H-C-O H

H-C

C H2 O H

चतुर्थ, b-D-ग्लूकोसाइड

क़्-ग्लूकोस के दोनों ऐल्फ़ा और बीटा समावयव मणिभ दशा में प्राप्त किया जा सकते हैं। जब ग्लूकोस का मणिभीकरण ऐल्कोहल या ऐसीटिक अम्ल द्वारा होता है तो ऐल्फ़ा समावयव गलनांक १४६तथा विशिष्ट घूर्णन (ऐल्फ़ा)दा [a] D = + 113� प्राप्त होता है। इसी भाँति पिरिडीन से मणिभीकृत होने पर बीटा समावयवी, गलनांक १४८, तथा विशिष्ट घूर्णन (ऐल्फ़ा)दा ्झ्रaट क़् उ अ १७स् प्राप्त होता है। जलविलयन में ये दोनों समावयव अंवर्निमेय हैं और कुछ समय के उपरांत एक साम्य मिश्रण पर, जिसका घूर्णन (ऐल्फ़ा)दा [a] D = +52.5� है, स्थिर हो जाते हैं। ग्लूकोस के अभिनव विलयन की इस क्रिया को परिवर्ती घूर्णन (muta-rotation) कहते हैं।

D-फ्रुंक्टोस : इसे फलशर्करा अथवा लेव्युलोस भी कहते हैं। यह ग्लूकोस के साथ मधु तथा मीठे फलों में मिलता है। इक्षुशर्करा के जलविश्लेषण पर ग्लूकोस और फ्रुंटोक्स बराबर मात्रा में प्राप्त होता है। डहलिया तथा चिकरी की जड़ों से एक पॉलिसैकाराइड (Enulin) प्राप्त होता है जो जलविश्लेषण से केवल फ्रुंक्टोस ही देता है।

D-फ्रुंक्टोस पानी में ग्लूकोस से अधिक विलेय है और इसका मणिभीकरण भी कठिन है। यह शीघ्र ही किण्वित होकर एथिल एल्कोहल देता हे। अवकृत होने पर सोर्बिटोल और मैनिटोल का मिश्रण देता है। आक्सीकृत होने पर एर्थ्राोिनिक अम्ल CH2 OH (CHOH)2 COOH और ग्लाइकोलिक अम्ल CH2 OH-COOH में टूट जाता है। इसके आक्सीकृत पदार्थों तथा इसकी HCN और NH2OH फ़ेनिल हाइड्रेज़ीन के साथ की अभिक्रिया से ज्ञात होता है कि यह एक कीटोहेक्सोस है और आक्सीजन दूसरे कार्बन परमाणु से संयुक्त है। एसीटिलीकरण पर यह पेंटा-ऐसिटील संजात देता है। इसलिए ग्लूकोस की भाँति इसे भी एक सरल सूत्र (सूत्र १) दिया जा सकता है। यह भी फ़ेनिल-हाइड़ैज़िन के साथ फ्रुंक्टोसाज़ोन (सूत्र ३) बनाता है जो ग्लूकोसाज़ोन के सर्वसम है :

C H2 OH CH2 OH

� �

C = O C = N N H C6 H5

� �

C H OH C H OH

� C6H5NHNH2

� � �

CHOH CHOH

� �

C H OH C H OH

� �

C H2 OH C H2 OH

(१) (२)

फ्रुंक्टोस फ्रुंक्टोफ़निल हाइड्रैज़ोन

C H = N N H C6 H5

C = N N H C6 H5

C H OH

2 C6 H5 N H HNH2

� � � C H OH

C H OH

C H2 OH

(3)

फ्रुंक्टासाज़ोन या ग्लूकोसाज़ोन

इस अभिक्रिया की सहायता से ग्लूकोस को फ्रुंक्टोस में परिवर्तित किया जा सकता है क्योंकि ग्लूकोस से प्राप्त ग्लूकोसाज़ोन हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ गरम होने पर जलविश्लेषित होकर ग्लूकोसोन में बदल जाता है जो जस्ता और एसीटिक अम्ल से अवकृत होकर फ्रुंक्टोस में बदल जाता है।

फ्रुंक्टोस वामावर्त (Laevorotatory) है और इसका विशिष्ट घूर्णन [a]D-92� है। यह भी ग्लूकोस की भाँति परिवर्त घूर्णन प्रदर्शित करता है और इसलिए इसे भी चाक्रिक सूत्र से जताया जा सकता है। इसमें छठे कार्बन का हाइड्रॉक्सिल समूह भाग लेता है :

C H2 OH C H2 OH

� �

HO-C C = O

� �

HO-C-H HO-C-H

� �

H-C-OH O H-C-OH

� �

H-C-OH H-C-OH

� �

CH2 C H2 OH

a-D फ्रुंक्टोस ए-क़् फ्रुंक्टोस

C H2 OH

C / OH

HO-C-H

H-C-OH O

H-C-OH

CH2

अस्थायी (Labile) शर्करा अथवा गामा शर्करा-यद्यपि फ्रुंक्टोस में छह परमाणचाक्रिक की पुष्टि होती है, फिर भी कुछ प्रेक्षणों से ज्ञात होता है कि इक्षु शर्करा और इल्यूलिन में फ्ऱक्टोस के पाँच परमाणुचाक्रिक हैं। अब यह ज्ञात है कि साधारण शर्करा में भी इस भाँति का अस्थायी चाक्रिक वैसी ही दशा में संभव हो सकता है।

संश्लेषणप्रयोगशाला में ग्लूकोस जैसे कार्बोहाइड्रेट का, जिसमें चार असम्मित कार्बन परमाणु हों, संश्लेषण विशेष कठिन और महत्वपूर्ण है। साधारण संश्लेषणों में, जिनमें प्रकाशीय सक्रिय अभिकर्मकों का उपयोग नहीं किया जाता, एक निष्क्रिय मिश्रण प्राप्त होता है। फ़ामल्डिहाइड पर क्षार की अभिक्रिया से निम्नलिखित क्रियाएँ हो सकती हैं।

क्षार C H O

C H2 O �


C H2 O H

(1) (2)

फ़ार्मैल्डीहाइड ग्याकोल ऐल्डीहाइड


ऐल्डोल संघनन


रु C H2 O

C H2 OH C H = O

समावयवीकृत हो


C = O C H O H

� �

C H2 O H C H2 O H

(3) (4)

डाइहाइड्राक्सि-ऐसिटोन D-1-ग्लिसरैल्डीहाइड

C H = O C H2 O H

� �

C H O H + C = O

� �

C H2 O H C H2 O H

(3) (4)


(ऐल्डोल संघनन)


रु

C H2 O H C H = O

� �

C = O C H O H

� + �

C H O C C H O H

� �

C H O H C H O H

� �

C H O H C H O H

� �

C H2 O H C H2 O H

(हेक्सोसों का मिश्रण)

एमिल फ़िशर ने ठीक इसी भाँति संश्लेषण किया और बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में क़्-ग्लूकोस प्राप्त किया। बहुत कुछ ऐसी ही अभिक्रिया से प्रकृति में कार्बोहाइड्रेटों का संश्लेषण होता है।

डाइसैकराइडमुख्यत: इसका अणुसूत्र C12 H22 O11 होता है जल विश्लेषण पर ये दो हेक्सोम एक्कों में विच्छिन्न होते हैं। सभी डाइसैकाराइड जलविश्लेषण पर एक अणु ग्लूकोस अवश्य देते हैं। पौधों से कुछ ऐसे भी डाइसैकराइड प्राप्त हुए हैं, जैसे विसियानोस (Vicianose) जो जलविश्लेषण पर एक हेक्सोम और एक पेंटोस अणु उत्पन्न करते हैं।

इक्षु शर्करा, सुक्रोस, सैकरीस या शर्करा (cane sugar)यह ईख के रस, चुकंदर, नीरा, मक्का में तथा बहुत से पौधों में पाई जाती है। औद्योगिक प्रणाली में इसे ईख के रस तथा चुकंदर से ही प्राप्त करते हैं।

यह एक रंगहीन मणिभीय मीठा पदार्थ है और पानी में विलेय है। इसका गलनांक १६० सें. है। इसका जलीय विलयन दक्षिणावर्त होता है। तनु अम्लों के साथ गरम करने पर जलविश्लेषित होकर ग्लूकोस और फ्रुंक्टोस के मिश्रण में परिवर्तित हो जाता है। ग्लूकोस भी इसी शर्करा की भाँति दक्षिणावर्त है, परंतु फ्रुंक्टोस का वामावर्तन इतना अधिक है कि जलविश्लेषण से प्राप्त संपूर्ण मिश्रण वामावर्त होता है। इस मिश्रण को अपवृत शर्करा (Invert suger) कहते हैं।

इक्षु शर्करा का आण्विक सूत्र C12 H22 O11 है और यह मोनोसैकाराइडों के गुणधर्म से वंचित है। यह ऐसीटिक ऐनहाइड्राइड की अभिक्रिया से आठ ऐसीटिल समूहों के साथ यौगिक बनाती है। हावर्थ और साथियों ने सिद्ध किया है कि इसकी रचना डी-ग्लूकोपाइरैनोसिडो डी-फ्रुंक्टो-फ़्यूरैनोसाइड है :

CH2 OH H CH2 OH


H O O H

H



H O H HO CH2OH

HO OH



H OH OH H

इक्षु शर्करा

दुग्ध शर्करा, लैक्टोस अथवा लैक्टोबायोसयह जानवरों के दुगध में रहती है। औद्योगिक विधि में इसे छेने के पानी से प्राप्त करते हैं। यह एक अणु पानी के साथ कड़ा मणिभ बनाती है जो १४०पर अजल होकर २०५पर विच्छेदन के साथ पिघलता है। हावर्थ और साथियों ने सिद्ध किया है कि इसकी आण्विक संरचना निम्नलिखित है : 4-[b-D-galacto-sideo-D-glucopyranose]*

दुग्ध शर्करा सुगमता से किण्वित होकर लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित हो जाती है। दूध के खट्टे होने का यही कारण है।

यव्य शर्करा या माल्टोस (Malt sugar)-स्टार्च पर डायस्टेस एंजाइम की क्रिया से माल्टोस की प्राप्ति होती है। स्टार्चयुक्त भोजन में पाचन क्रिया में यह अंत:वर्ती की भाँति उत्पन्न होता है, क्योंकि लार में स्थित टाइआलिन (Ptyalin) एंजाइम स्टार्च को माल्टोस में परवर्तित कर देता है।

इसके छोटे नुकीले मणिभ १०० पर पिघलते हैं। यह तीव्र दक्षिणावर्त है और जलविश्लेषण पर लेवल दा-ग्लूकोस देता है। इसकी आण्विक संरचना निम्नलिखित है :

CH2 OH H CH2 OH



O O

H H



H O H HO CH2OH

HO OH



H OH H OH

यव्य शर्करा

(Malt Sugar)

कुछ और डाइसैकाराइड, जैसे सेलोबायोस (Cell biose), जेनशियोबायोस (Gentiobiose) और रुटिनोस (Rutinose) भी पाए जाते हैं।

ट्राइसैकाराइड-इस समूह की बहुत थोड़ी ही शर्कराएँ प्राप्त हो सकी हैं और उनमें सबसे रैफ़िनोस है। यह आस्ट्रेलिया की क्षीरी (Manna) का मुख्य अंश है।

जलविश्लेषण पर रैफ़िनोस दो अणु जल के साथ समान अनुपात में डी-फ्रुंक्टोस, डी-ग्लूकोस और डी-ग्लैक्टोस के मिश्रण में विच्छिन्न होता है।

पालीसैकाराइडइन योगिकों को साधारणत: (C6 H10 O5) सूत्र से प्रदर्शित किया जाता है। किलियानी ने इनका उचित सूत्र (C6 H10 O5)n H2O बताया है जिसमें (द) का मान निश्चित रूप से नहीं ज्ञात है। अधिकांश पॉलीसैकाराइड अमणिभीय तथा स्वादहीन होते हैं और कुछ पानी में भी विलेय हैं। जलविश्लेषण पर ये मोनोसैकाराइडों में विच्छन्न हो जाते हैं। इससे ज्ञात होता है कि डाइ-और ट्राइ-सैकराइडों की भाँति ये हैक्सोसों और पेंटोसों की इकाइयों से बने हैं।

स्टार्चयह प्रचुर मात्रा में वनस्पतियों में पाया जाता है। इसे आलू (२०%), चावल (७५%), गेहूँ (६०%), मक्का (६५%) तथा साबूदाने से प्राप्त करते हैं। सूक्ष्मदर्शी से देखने पर यह समांग नहीं दिखाई देता। इसमें एक नाभिक के चारों ओर कई संकेंद्र वृत्त दिखाई देते हैं। पानी के साथ गरम करने पर ये सूक्ष्म दाने उसमें टूटकर मिल जाते हैं और ठंडा करने पर कुल मिश्रण लेई का रूप ले लेता है। स्टार्च आयोडीन के साथ एक विशेष गाढ़ा नीला रंग देता है और इसी क्रिया से आयोडीन को परखा जाता है।

स्टार्च श्वेत, आर्द्रताग्राही, स्वादहीन तथा रंगहीन चूर्ण है। वास्तव में स्टार्च के दाने दो समान पॉलीसैकाराइडों से बने होते हैं। एक ऐमाइलोस होता है जो दाने के भीतरी भाग में रहता तथा जलविलेय होता है। दूसरा ऐमाइलो-पेक्टिन होता है जो कोशिका की झिल्ली में विद्यमान रहता है। यही पानी के साथ फूलकर कलिल (कलॉयड) बनाता है। जो एक डाइसैकाराइड है। पूर्ण जलविश्लेषण से संपूर्ण ग्लूकोस की प्राप्ति होती है। अम्लों या एंजाइमों की संयमित क्रिया से स्टार्च और माल्टोस की अंतर्वती अनेक अनेक वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं, जिनमें से प्रत्येक को डेक्स्ट्रिन कहा जाता है।

अणुसंरचनाहावर्थ और उनके साथियों ने बताया कि स्टार्च का अणु ऐल्फ़ाग्लूकोपाइरैनोस एककों की शृंखला है। इस शृंखला का एक खंड निम्नलिखित है :

स्टार्च अणुसूत्र शृंखला का एक खंड

(One part of the starch molecular formula)

स्टार्च के अणु में लगभग २८ ग्लूकोपाइरैनोस एकक (अणुभार, ५,०००) होते हैं।

सेल्यूलोसप्राप्य पॉलीसैकराइडों में यह सबसे अधिक संकीर्ण है। वनस्पतियों से प्राप्त बहुत सी वस्तुओं को सेल्यूलोस के नाम से जाना जाता है, इसकी शुद्ध रूप रुई में प्राप्य है। उसी प्रकार का सेल्यूलोस सन, हेंप, लकड़ी भूसे इत्यादि में है।

यह सभी साधरण विलायकों में अविलेय है। अमोनियाकृत (अमोनियेटेड) कापर-हाइड्राक्साइड के विलयन में यह शीघ्र घुल जाता है। परंतु तनुकरण पर फिर अवक्षेप के रूप में निकल आता है। ठंडे सांद्र सल्फ़्यूरिक अम्ल की अभिक्रिया से सेल्यूलोस पहले फूलता है, फिर धीरे-धीरे विलीन हो जाता है। विलयन को पानी से तनु करने पर स्टार्च की भाँति एक पदार्थ अवक्षिप्त हो जाता है। इसे एमीलायड कहते हैं। सल्फ़्यूरिक अम्ल के साथ जलविश्लेषण पर सेल्यूलोस पहले सेलोडेक्स्ट्रिन फिर सेलोबायोस और अंत में ग्लूकोस देता है।

कार्बनिक पदार्थों में सेल्यूलोस का महत्व सर्वश्रेष्ठ है। इसका कुछ प्रमुख उपयोग कपड़ा, कागज, विस्फोटक,कृत्रिम रेशम, फिल्म तथा सेल्यूलायड उद्योग में होता है।

अणु संरचनाहावर्थ और साथियों ने बताया है कि सेल्यूलोस का अणु लगभग २०० बीटा गलूकोपारैनोस एककों के संयोग से बना होता है (अणुभार ३२,०००)।

ग्लाइकोजेनयह प्राणियों की मांसपेशियों में तथा दूध देनेवाले प्राणियों के यकृत में मिलता है। यह आयोडीन के साथ लाल रंग देता है और शीघ्र ही जलविश्लेषित होकर ग्लूकोस देता है।

इल्यूलिनयह पौधों में उनके संचित भोजन के रूप में जमा रहता है और उसी से प्राय: स्टार्च का रूप ले लेता है। यह लेवल फ्रुंक्टोस एककों के ही संयोग से बना है जो ऑक्सैलिक अम्ल के जलविश्लेषण से फ्रुंक्टोस देता है।