कार्बन डाइ-आक्साइड ये आक्सीजन से संयोजित कार्बन के यौगिक हैं। इनमें मुख्य तीन (१) कार्बन डाइ-आक्साइड, (२) कार्बन मोनो-आक्साइड, तथा (३) कार्बन सब-आक्साइड साधारण ताप पर गैसीय हैं। इनके अतिरिक्त ठोस आक्साइड (C4 O3), (C8 O3) तथा (C12 O9) भी वर्णित हैं।
कार्बन डाइ-आक्साइड—यह गैस स्वतंत्र रूप से प्रचुरता से मिलती है। वैसे तो वान हेलमांट ने पहले पहल इसे तैयार किया और जोज़ेफ ब्लैक तथा बर्गमैन द्वारा इसकी परीक्षा हुई, परंतु लेवाज़िए ने इसकी कार्बन का ही एक आक्साइड होने की पहचान की तथा कोयले एवं हीरे को जलाकर इसकी व्याकृति भी ज्ञात की। कोयले के जलने, प्राणियों के श्वास निकालने तथा कितने ही प्रकार के कार्बनिक पदार्थों के सड़ने में कार्बन कहीं पृथ्वी से (ज्वालामुखी वाले स्थानों में) भी यह गैस निकलती है अथवा कुछ झरनों के पानी में यह घुली रहती है। साधारण हवा में इसका प्रतिशत ०.०३-०.०४ है, परंतु अत्यंत कारोबारी नगरों में, भट्ठों तथा विभिन्न प्रकार की सवारियों में कोयला या पेट्रोल जलने से इसकी मात्रा अधिक रहती है। वनस्पतियों द्वारा इसकी बड़ी मात्रा का व्यय होने से हवा में संतुलन स्थिर रहता है।
खड़िया अथवा संगमरमर पर अम्ल की क्रिया से यह गैस सरलता से प्राप्त की जा सकती है :
Ca CO3 + 2 HCl = Ca Cl2 + H2 O
गंधक का अम्ल प्रयुक्त करने पर संगमरमर की सतह को अल्पविलेय कैलसियम सल्फ़ेट घेर लेता है जिससे थोड़ी देर में क्रिया रुक जाती है, परंतु खड़िया के महीन चूरे में क्रिया चलती रहती है। प्राप्त गैस को पानी अथवा सोडियम बाइकार्बोनेट के विलयन से प्रवाहित करने पर, साथ में आया हुआ अम्ल निकल जाता है तथा कैलसियम क्लोराइड, फ़ास्फ़ोरस पेंटाक्साइड इत्यादि से इसे सुखाया जा सकता है। इससे सल्फ़र डाइ-आक्साइड दूर करने के लिए पोटैशियम परमैंगनेट के विलयन से प्रवाहित करते हैं।
सरलता से विघटित होनेवाले कार्बोनेट या बाइकार्बोनेट को गरम करके भी यह गैस प्राप्त की जाती है।
2 Na HCO3 = Na2 CO3 + CO2 + H2 O
वास्तव में इस विधि द्वारा शुद्ध कार्बन डाई-आक्साइड गैस मिलती है।
व्यापारिक मात्रा में कार्बन डाइ-आक्साइड कोयले को जलाकर अथवा चूने का पत्थर, डोलोमाइट तथा मैगनेसाइट को गरम कर प्राप्त करते हैं। किण्वन अथवा अन्य रासायनिक प्रक्रियाओं में प्राप्त उपजात से अथवा प्राकृतिक स्रोतों से भी यह एकत्र की जाती है। गरम कोयले पर हवा प्रवाहित करने से कार्बन डाइ-आक्साइड के साथ मोनो-आक्साइड का आगे डाइ-आक्साइड तक पूर्णत: आक्सीकरण नहीं हो पाता, इसलिए अधिक हवा के साथ इस गरम गैसीय मिश्रण को उष्मसह ईटों के बने दहनकक्ष (combustion chamber) फिर प्राहित किया जाता है। फलत: कार्बन मोनोआक्साइड के साथ ही हाइड्रोजन सल्फ़ाइड का (जो कोयले अथवा हवा में पानी के कारण तथा कोयले में विद्यमान गंधक के कारण बन जाते हैं) भी आक्सीकरण हो जाता है। मिश्रण को ठंडा कर पानी तथा चूने के पत्थर की सहायता से साफ कर लिया जाता है। जिससे सल्फ़र डाइ-आक्साइड तथा धूल निकल जाती है। तदुपरांत पोटैशियम कार्बोनेट के विलयन से मार्जन करने पर कार्बन डाइ-आक्साइड गैस नाइट्रोजन, आक्सीजन अथवा दूसरी गैसों से अलग कर ली जाती है। विलयन को गरम करने से शुद्ध गैस बाहर निकलती है तथा पुन: उपयोग के लिए विलयन बच रहता है। हाइड्रोजन प्राप्त करने के लिए जल गैस के उपयोग में बचे हुए कार्बन मोनो-आक्साइड से कार्बन डाइ आक्साइड मिलता है। इसके लिए जल गैस अतिरिक्त वाष्प के साथ उत्प्रेरक पर प्रवाहित की जाती है तथा कार्बन मोनो-आक्साइड के आक्सीकरण से प्राप्त कार्बन डाइ-आक्साइड गैस पानी में अधिक दबाव पर घुलाकर अलग कर ली जाती है।
बहुत सी वस्तुओं के उत्पादन की प्रक्रियाओं में कार्बन डाइ-आक्साइड की आवश्यकता चूने के पत्थर को गरम करके प्राप्त होनेवाली गैस से पूरी की जाती है। इसके लिए विशेषज्ञ प्रकार की भट्ठी का उपयोग होता है जो बाहर से उत्पादक (Producer) गैस द्वारा भीतर कोयला जलाकर गरम की जाती है। विभिन्न प्रकार के सोडावाटर तथा दूसरे साधारण उपयोगों के लिए कार्बन-डाइ-आक्साइड लोहे के सुदृढ़ सिलिंडरों में प्राप्य है।
कार्बन डाइ-आक्साइड रंगहीन है। यह नशीली नहीं है, किंतु इसकी अधिक मात्रावाली हवा में साँस लेने से दम घुटने लगता है। जलने की प्रक्रिया में यह अंतिम उत्पाद है जिससे यह जलने में सहायक नहीं है और आग बुझाने में इसका उपयोग होता है। जलते हुए सोडियम, पोटैसियम या मैग्नेशियम इस गैस में जलते रहते हैं। इस गैस को चूने के पानी अथवा बेरियम हाइड्राक्साइड के विलयन में प्रवाहित करने से अविलेय कार्बोनेट का सफेद अवक्षेप प्राप्त होता है, जो अधिक गैस की उपस्थिति में कैलसियम बाइकार्बोनेट बनने में पुन: घुल जाता है। इस क्रिया का उपयोग इस गैस की उपस्थिति को पहचानने में होता है। पानी में घुले हुए बाईकार्बोनेट को गरम करने पर विघटन से प्राप्त कार्बोनेट का सफेद ठोस पदार्थ विलयन से बाहर आ जाता है। इस विधि द्वारा पानी का अस्थायी भारीपन दूर किया जाता है।
यह हवा से भारी है। इसका आपेक्षिक घनत्व १.३८३३ (आक्सीजन = १) या घनत्व १.९७६७ ग्राम प्रति लीटर है (०� सें. तथा ७६० मि. दबाव पर)। यह पानी में थोड़ा विलेय है और ऐसा विलयन अम्लीय गुण देता है। विलेयता दाब बढ़ाने पर अत्यधिक बढ़ जाती है, जिसका उपयोग दूसरी गैसों से इसे पृथक करने में किया जाता है। यह ऐल्कोहल में भी विलेय है। कार्बन डाइ-आक्साइड गैसे काठकोयले में अवशोषित होती है तथा वल्कनीकृत रबर से विसारित (diffused) होती है। इसके द्रवीकरण में विशेषज्ञ कठिनाई नहीं होती। ठंडक तथा दबाव के प्रभाव से बड़ी मात्रा में द्रव कार्बन डाइ-आक्साइड बनाया जाता है। इसक चरम ताप ३१.१� सें., दाब ७३.० वायुमंडल तथा द्रव का घनत्व ०.४६० ग्राम घ. सें. है। अधिक दाब के द्रव के विस्तार से ठोस कार्बन डाइ-आक्साइड प्राप्त होता है। इसे सूखी बर्फ कहते हैं। इसका गलनांक ५६.६� (५.२ वायुमंडल दाब पर) है। यह व्यावसायिक मात्रा में आयताकार अथवा बेलनाकार बड़े-बड़े टुकड़ों में उपलब्ध है। इसका उपयोग सरलता से कार्बन डाइ-आक्साइड गैस उपलब्ध करने के अतिरिक्त प्रशीतन (refrigeration), खाद्य वस्तु का अधिक समय तक सुरक्षित रखने तथा निम्न ताप प्राप्त करने में होता है। यह कुछ महँगा होते हुए भी साफ रहने तथा खाद्य पदार्थ के साथ अच्छी तरह मिलाए जा सकने एवं कार्बन डाइ-आक्साइड के वायुमंडल में कीटाणुओं से सुरक्षित होने के कारण पानी की बर्फ की तुलना में अच्छा पड़ता है।
कार्बन मोनो-आक्साइड—यह रंगहीन तथा विषैली गैस है। यह मोटर के कारबुरेटर, घरों में जलनेवाली भट्टियों तथा तंबाकू के धुएँ में मिलता है। आक्सीजन, हवा या जलवाष्प द्वारा उच्च ताप पर कार्बन के आंशिक आक्सीकरण से तथा हाइड्रोजन, कार्बन या कुछ धातुओं द्वारा कार्बन डाइ-आक्साइड के अवकरण से यह गैस प्राप्त होती है। कार्बन द्वारा कुछ धातुओं के आक्साइड या कार्बोंनेट के अवकरण अथवा कारबाइड बनाने की क्रिया से भी यह बनता है। प्रयोगशाला में यह फ़ारमिक अम्ल या सोडियम फ़ारमेट पर अम्ल की क्रिया द्वारा सरलता से बनाया जा सकता है। आक्सैलिक अम्ल की क्रिया द्वारा सरलता से बनाया जा सकता है। आक्सैलिक अम्ल में ऐसी क्रिया में कार्बन डाइ-आक्साइड भी बनता है। यह गैस ज्वलनशील होने के कारण ईधंन के लिए अधिक मात्रा में तैयार की जाती है। व्यावसायिक प्रक्रियाओं में प्रयुक्त गैसीय ईधंन, जैसे कोयला गैस, जल गैस, कारबुरेटेड जल गैस, तथा उत्पादक गैस में यह दूसरी गैसों के साथ मिश्रित ही प्रयुक्त की जाती है।
कार्बन मोनो-आक्साइड गैस का घनत्व १.२५० ग्रामलीटर (०� सें. ७६० मि.मी. पर) या आपेक्षिक घनत्व ०.८७४९ (आक्सीजन = १) है। इसका चरम ताप –१३९� सें., दाब ३४.६ वायुमंडल तथा घनत्व ०.३११ ग्राम घन सेंटीमीटर है। इसका गलनांक –२०७� सें तथा क्वथनांक –१९०� सें. है। पानी में यह गैस थोड़ी विलेय है तथा ताप बढ़ाने से विलेयता कम होती है। गैस की बहुत कम मात्रावाली हवा में साँस लेने से सिर दर्द होने लगता है तथा अधिक मात्रा में मृत्यु हो जाती है। रुधिर के हेमोग्लोबिन से इसकी क्रिया होने के कारण यह अत्यंत हानिकारक है। कार्बन मोनो-आक्साइड युक्त हवा में कार्य करने के लिए गैसत्राण तथा साँस लेने के लिए 'आक्सीजन बैग' का उपयोग किया जाता है।
कार्बन मोनो-आक्साइड की क्रिया कई रासायनिक वस्तुओं, जैसे आक्सीजन, जलवाष्प, हाइड्रोजन आदि से होती है। कई प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन में यह महत्वपूर्ण प्रारंभिक योगिक है। हाइड्रोजन से इसकी क्रिया मेथेन, मेथिल एलकोहल, फ़ॉर्मैल्डिहाइड इत्यादि बनाने के विचार से व्यावसायिक महत्व रखती है। कार्बन मानो-आक्साइड क्लोरीन से फ़ासजीन तथा कुछ धातुओं से कारबोनिल बनाता है। पैलेडस क्लोराइड के तनु विलयन के अवकरण के कारण धातु अलग होती है। इस क्रिया द्वारा इस गैस की उपस्थिति जानी जा सकती है। क्युप्रस क्लोराइड के ऐमोनियामय विलयन में यह गैस संयोजित हो जाती है तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के विलयन में यह गैस संयोजित हो जाती है तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के विलयन से सफेद अवक्षेप Cu Cl, CO3 H2O प्राप्त होता है। इसके द्वारा आयोडीन पेंटाक्साइड से आयोडीन मुक्त हो जाता है। कार्बन मोनो-आक्साइड की मात्रा ज्ञात करने के विचार से ये क्रियाएँ महत्वपूर्ण हैं।
कार्बन सब-आक्साइड�—डील्स तथा वुल्फ़ ने इसे पहले पहल तैयार किया। मैलोनिक अम्ल अथवा उसके एस्टर को फ़ास्फ़ोरस पेंटाक्साइड की अधिक मात्रा के साथ ३००स् सें. तक न्यून दाब पर गरम करने पर यह प्राप्त होता है। डाइ-एसीटिल टारटारिक एनहाइड्राइड के वाष्प को गरम प्लैटिनम तंतु (filament) पर अथवा गरम पाइरेक्स नली में प्रवाहित करने से भी यह बनता है। यह विषैली गंधयुक्त गैस है तथा सरलता से ही द्रव में परिणत की जा सकती है। द्रव का क्वथनांक ७� तथा हिमांक १११.३� सें. है। खूब स्वच्छ बर्तन में रखी रहने पर यह गैस साधारण ताप पर स्थायी रहती है परंतु नमी अथवा पारे की वाष्प की उपस्थिति में इसके बहुलीकरण से लाल पदार्थ प्राप्त होता है। इस क्रिया में बर्तन की सतह का अधिक प्रभाव है। सब-आक्साइड तथा उसका बहुलक दोनों ही गरम करने पर कार्बन डाइ-आक्साइड तथा मोनो-आक्साइड देते हैं।
यह गैस पानी से मिलकर मेलोनिक अम्ल बनाती है। अमोनिया तथ एमिनो से भी यह क्रिया करती है जिसमें ऐमाइड बनते हैं। सूखे हाइड्रोजन क्लोराइड तथा ब्रोमीन से भी इसी प्रकार के यौगिक बनते हैं। फ़ार्मिक तथा एसीटिक अम्ल से प्राप्त यौगिकों के गुणधर्म मिश्रित ऐनहाइड्राइड के हाते हैं। इसी प्रकार बहुत से रासायनिक यौगिकों से इसकी क्रिया होती है, जैसे सल्फ़र डाइ-आक्साइड तथा हाइड्रोजन सल्फ़ाइड इत्यादि से।
सं.ग्रं.—जे.डब्ल्यू. मेलर; ए कांप्रिहेंसिव ट्रीटिज़ ऑन इनआर्गैनिक ऐंड थ्योरिटिकल केमिस्ट्री; जे.एफ़. थॉर्प तथा एम.ए. ह्विटले : थॉर्प्स डिक्शनरी ऑव ऐप्लाइड केमिस्ट्री; जे.आर. पारटिंगटन : ए टेक्स्ट बुक आँव इनआर्गैनिक केमिस्ट्री। (विं.वा.प्र.)