कार्नाक दक्षिणी मिस्र में नील नदी के पूर्वी तट पर जो प्राचीन नगर थीब्ज़ के भग्नावशेष हैं उनके उत्तरी भाग को कार्नाक और दक्षिणी भाग को लुक्सोर कहते हैं। कार्नाक और लुक्सोर दोनों अपने प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध हैं। चहारदीवारी से घिरे हुए तीन मंदिरों के खंडहर कार्नाक में आज भी खड़े हैं। इनमें सबसे उत्तर का खंडहर देवता मेंतू के मंदिर का है जिसका निर्माण आमेनहोतेप तृतीय ने कराया था। जो भाग इसका बच रहा है वह तोलेमी राजाओं के समय बना था। वह वस्तुत: प्रवेशद्वार मात्र है। इस मंदिर के दक्षिण में देवी मूत का मंदिर है। उसे भी फ़राऊन ओमेनहोतेप तृतीय ने ही बनवाया था। यह पहलेवाले से पर्याप्त बड़ा है। इसके पीछे तभी की बनी एक पवित्र झील भी है। सबसे बड़ा मंदिर, जो देवता आमेन का है, मूत के अंदर से दक्षिण की ओर खंडहर के रूप में खड़ा है। इसकी चहारदीवारी तीनों में सबसे प्रशस्त है, प्राय: १,५०० फुट वर्गाकार। देवता आमेन की पत्नी का नाम मूत और पुत्र का खानसू था। खानसू का अपना मंदिर भी आमेन में मंदिर की चहारदीवारी के भीतर ही है। मूत के मंदिर से आमेन के मंदिर तक मेषमूर्तियों के बीच से राह चली गई है। मेंतू का मंदिर इन मंदिरों से पृथक है।
आमेन के मंदिर की विशेषता उसके 'स्तंभो का हॉल' है जो संसार के आश्चर्यो में गिना जाता है। और जिसका निर्माण सेती प्रथम तथा रामसेज़ द्वितीय ने करवाया था। (प.उ.)