कार्नवालिस (१७३८-१८०५) अभिजात कुल में उत्पन्न, कार्नवालिस के प्रथम अर्ल का ज्येष्ठ पुत्र चार्ल्स कार्नवालिस ३१ दिसंबर, १७३८ को लंदन में जन्मा। उसका व्यक्तित्व असाधारण नहीं था; न उसमें उच्चकोटीय प्रतिभा थी और न मौलिकता ही। किंतु वह ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, दृढ़निश्चयी, संयत और सदाशयी होने के कारण सर्वत्र स्नेह और सम्मान का पात्र बना। वह योग्य सेनानायक भी था और कुशल शासक भी। उच्चस्तरीय विद्यालयों में शिक्षा समाप्त कर, उसने सेना में प्रवेश किया। १७६१ में उसने जर्मनी में युद्ध में भाग लिया। १७६२ में अपने पिता का उत्तराधिकार ग्रहण कर वह अर्ल बना। अमरीका के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व ग्रहण कर उसने अमरीकी सेना को केम्डन तथा गिलफ़र्ड हाउस में परास्त किया; किंतु यार्कटाउन के युद्ध में पराजित हो उसे आत्मसमर्पण करना पड़ा (१९ अक्टूबर, १७८१) इस पराजय से अंग्रेजी सत्ता अमरीका में समाप्त हो गई। १७८६ में वह ब्रिटिश भारत का गवर्नर जनरल तथा सेनापति नियुक्त हुआ। टीपू के विरुद्ध युद्ध में, प्रथम प्रयास की असफलता के पश्चात् कार्नवालिस ने स्वयं सेना का नेतृत्व ग्रहण किया। आरंभ में तो उसे वांछित सफलता नहीं मिली; किंतु, अंतिम प्रयास में उसने बँगलोर अधिकृत कर (१७९१), सिरिंगापट्टम पर घेरा डाला, जिससे टीपू संधि करने पर विवश हुआ (१७९२) तथा उसे आधा राज्य अंग्रेजों को समर्पित करना पड़ा। कार्नवालिस ने अवध की समस्या में भी सफल हस्तक्षेप किया। उसने अंडमान तथा पेनांग में अंग्रेजी उपनिवेश स्थापित किए। चीन को प्रथम अंग्रेज प्रतिनिधिमंडल भेजा। नेपाल से व्यावसायिक संधि की तथा असम में अँग्रेजी व्यवसाय को प्रोत्साहित किया।
भारत के शासकीय क्षेत्र में कार्नवालिस ने ब्रिटिश-सिविल-सर्विस को भ्रष्टाचार से परिष्कृत कर सुदृढ़ किया। चुंगी विभाग में अनेक उपादेय सुधार किए। पुलिस तथा जेल विभागों को सुसंगठित करने का प्रयास किया तथा ईस्ट इंडिया कंपनी की आर्थिक व्यवस्था दृढ़ की। कृषि शासन में भी उसने महत्वपूर्ण सुधार किए। इस क्षेत्र में उसका सर्वप्रसिद्ध कार्य बंगाल में इस्तमरारी बंदोबस्त की स्थापना था। इस क्षेत्र में उसका सर्वप्रसिद्ध कार्य बंगाल में इस्तमरारी बंदोबस्त की स्थापना था। इसमें, यद्यपि जमींदारों को नवीन वैधानिक अधिकार प्राप्त हुए, तथापि किसानों को अमित आघात सहने पड़े। उसके सर्वोत्कृष्ट सुधार न्याय के क्षेत्र में थे। ये ४८ रेग्यूलेशन 'कार्नवालिस कोड' के नाम से प्रख्यात हैं, जो कार्नवालिस की स्थायी कीर्ति हैं। किंतु कार्नवालिस की शासकीय नीति के दो मूल दोष थे। प्रथमत:, जातीयता की भावना से प्रभावित हो उसने, सिद्धांतत: भारतीयों को उच्च पदों से सर्वथा वंचित रखा। द्वितीय, उसने न्यायविधान का आवश्यकता से अधिक आंग्लीकरण किया। १७९३ में कार्नवालिस स्वदेश लौटा तथा मारक्विस की पदवी से विभूषित हुआ। १७९७ में वह फिर गवर्नर-जनरल नियुक्त हुआ। किंतु विद्रोह दमन करने के लिए वाइसराय नियुक्त हो वह आयरलैंड भेज दिया गया। वहाँ हंबर्ट को पराजित कर (१७९८) उसने शांति स्थापित की और अंतत: लोकप्रिय शासक प्रमाणित हुआ। १८०५ में वह एक बार फिर गवर्नर-जनरल बनाकर भारत भेजा गया। किंतु, गाजीपुर में उसकी मृत्यु हो गई (५ अक्टूबर, १८०५)। वहीं उसका मकबरा निर्मित हुआ।
सं.ग्रं.—डब्ल्यू.एस. सेट्टन कार : द मार्क्विस ऑव कार्नवालिस; चार्ल्स रॉस : कार्नवालिस करेस्पांडेंस; ए. एस्पिनाल : कार्नवालिस इन बेंगाल; कैब्रिज र्हिस्ट्री ऑव इंडिया, जिल्द ५; एफ़.डी. अस्कोली : अर्ली रेवेन्यू हिस्ट्री ऑव बेंगाल ऐंड द फ़िफ़्थ रिपोर्ट। (रा.ना.)