कार्थेज संसार के इतिहास में जिन नगरराज्यों ने साम्राज्य बनाकर उसे भोगा है, उन्हीं में यह कार्थेज भी था। पर जहाँ ऐसे साम्राज्यनिर्माता नगर—एथेंस, रोम, वेनिस आदि—आज भी कायम हैं, कार्थेज बस इतिहास की कहानी बनकर रह गया है; कारण, उस नगर के शत्रुओं ने उसका विध्वंस कर उस पर हल चला दिया। भूमध्यसागर के दक्षिणी तट पर उत्तरी अफ्रीका की भूमि जहाँ सागर के जल में विलीन हो जाती है, वहीं त्यूनिस की खाड़ी के तीर अंतरीप में बिरसा के गढ़ से लगा वह महानगर बसा था जिसके भग्नावशेष पुराविदों ने खोद निकाले हैं। आधुनिक अंतरीप गामुर्त, अरबों का गाँव सीदी-बू-सईद और गोलेत्ता का बंदर मिलकर जो त्रिभुज बनाते हैं, वही वह कार्थेज था जिसे फ़िनीकियों (फ़ीनिशियों) ने बसाया और रोमनों ने उजाड़ डाला, जिस पर बंदालों और बिजांतीनियों ने शासन किया।
पर स्वयं उस प्राचीन नगर कार्थेज ने प्राचीन जगत् पर अपनी शक्ति और संस्कृति का सिक्का चलाया था। तब के संसार पर प्राय: ५०० साल तक उस समृद्ध नगर का अधिपत्य बना रहा। उसके उत्कर्ष काल में प्राय: दस लाख आदमी वहाँ निवास करते थे। जैसे आज की दुनिया में यहूदी अर्थपति हैं, सदियों संसार का अर्थनिधान सँभालते रहे हैं, वैसे ही उनसे पहले फ़िनीकी भूमध्यसागरीय संसार के वाणिज्य और धन के स्वामी थे। थे भी वे मूलत: यहूदी नस्ल के ही और लघु एशिया तथा लेबनान के उस भाग से जगत् के वणिक्पर्थों पर शासन करते थे जहाँ सिदन और तीर बसे हैं। फ़िनीकियों ने संसार को सिक्के दिए, बैंकिग और हुंडियाँ दीं, चेक दिए, और उन्होंने भूमध्यसागर पर अपनी मंडियों का घेरा कार्थेज को बसाकर पूरा किया।
उस नगर के निर्माण की कहानी भी दिलचस्प है। फ़िनीकी अनुश्रुतियों के अनुसार तीर की राजकुमारी एलिसा अपने भाई के अत्याचार से भागकर वहाँ पहुँची जहाँ ई.पू. १६वीं सदी में ही कुछ सिदनी जा बसे थे। सिदनी-नूबिनाई बस्तियों से एलिसा ने ई.पू. नवीं सदी के मध्य कुछ भूमि खरीदी और ८१४-१३ ई.पू. के लगभग नए नगर का निर्माण आरंभ किया। उसका नाम ही 'नया नगर' पड़ा, जिसके लिए प्राचीन फ़िनीकी शब्द 'कार्तहादाश्त्' व्यवहृत होता था और जो ग्रीकों और रोमनों के प्रयोग से बिगड़कर 'कार्थेज' बन गया। भारत में जेतवन की खरीदारी में जैसे राजा जेत के कठिन मूल्य को श्रेष्ठी ने अपनी संपत्ति से चुकाया, वैसे ही एलिसा ने अपने विक्रेताओं को अपनी चातुरी से जीता। उन्होंने कहा कि जितनी भूमि को वृषभ की खाल घेर ले, बस उतनी ही प्रस्तुत मूल्य में मिल सकती है। एलिसा ने वृषभ कटवा उसकी घाल उतरवा ली और उस खाल के पतली-पतली पट्टियाँ तैयार कर उनसे बोरसा की पहाड़ी घेर ली और इस प्रकार वह समूची पहाड़ी अपनी चतुर्दिक् भूमि के साथ एलिसा को मिल गई। आज भी उस पहाड़ी गढ़ को 'बिरसा' कहते हैं। उसी भूमि पर कभी कार्थेज कायम था।
कार्थेज का इतिहास समृद्धि और संघर्ष का है। वाणिज्य ने उसे समृद्धि दी और समृद्धि ने ऐश्वर्य दिया। और जब उसी की देखादेखी अन्य भी ऐश्वर्य को साधने चले तब दोनों की महत्वाकांक्षाएँ परस्पर टकरा गईं और दोनों से संघर्ष छिड़ गया। कार्थेज का पहला संघर्ष सिसिली और परवर्ती द्वीपों के ग्रीकों से हुआ, दूसरा रोमनों से। कार्थेज की कहानी इसी संघर्ष की कहानी है। और जब इस संघर्ष का आरंभ हुआ तब वह महानगरी भूमध्यसागरवर्ती भूमि की स्वामिनी थी। जब छठी सदी ई.पू. में खल्दी सम्राट् नेखूबख़दनेज़्ज़ार ने प्रधान फ़िनीकी नगर तीर को विध्वस्त कर दिया तब उस प्राचीन नगर का समस्त वैभव कार्थेज को मिला। कार्थेंज तब फ़िनीकी वाणिज्य, शक्ति और ऐश्वर्य का केंद्र बना।
कार्थेज का नेता माल्खस अपना बेड़ा और सेना लिए सिसिली पहुँचा और उस विशाल द्वीप को उससे ५५० ई.पू. में ग्रीकों से छीन लिया। १४ वर्ष बाद ही उसने कोसिका पर भी अधिकार कर लिया। उस सागरीय संसार के आधिपत्य में तब क्रीक भी अपना भाग पाते थे जो माल्खस की चोट से तिलमिला उठे। सिसिली पर फ़िनीकी अधिकार ने कार्थेज का प्रभुत्व भूमध्यसागर पर स्थापित कर दिया। पर सार्दीनिया को न ले सकने के कारण माल्खस अपने नगरप्रभुओं के चित्त से उतर गया। उधर ग्रीकों की पराजय माल्खस अपने नगरप्रभुओं के चित्त से उतर गया। उधर ग्रीकों की पराजय ने कार्थेज़ियों और रोमनों को आमने सामने ला खड़ा किया। उनमें शांति कायम रखने के लिए ५०९ ई.पू. में पहली संधि हुई।
पर ग्रीकों के साथ युद्ध बंद न हुआ, चलता रहा। सार्दीनिया में युद्ध के बीच ही, ४८५ ई.पू. में, मागो का पुत्र हास्द्रुबाल मरा। उधर उसके भाई हामिल्कार को हिमेरा में उसी ऐतिहासिक वर्ष ग्रीकों ने पराजित किया जिस ४८० ई.पू. में उन्होंने सलामिस में ईरानियों को धूल चटाई थी। पर इससे कार्थेजी निरुत्साहित नहीं हुए और हामिल्कार के पुत्र हान्नो ने हर्क्यूलिज़ के स्तंभों (जिब्राल्टर) को लाँघ पश्चिमी अफ्रीकी समुद्रतट पर अपने उपनिवेश खड़े किए। उधर सिसिली में ग्रीकों के साथ प्राय: १०० साल युद्ध चलता रहा। ४०६ ई.पू. में हानिवाल और हिमिल्को ने कुछ प्रगति की पर उनके आक्रमण शीघ्र ग्रीकों ने विफल कर दिए। साथ ही अगाथोक्लोज़ ने कार्थेज पर घेरा डाल दिया। पर उसकी मृत्यु के बाद कार्थेज ने फिर अपना आधिपत्य सिसिली पर स्थापित कर लिया। इस प्रकार ग्रीकों और कार्थेजियों में कार्थेज विजयी हुआ।
अगली सदियों की शक्ति के लिए कशमकश रोमनों और कार्थेजियों के बीच हुई। तीन-तीन युद्ध सदियों लड़े गए। इन युद्धों को प्यूनिक युद्ध कहते हैं। इनमें से पहला २६८ और २४१ ई.पू. के बीच हुआ। यह भी सिसिली पर आधिपत्य के लिए ही लड़ा गया, अंतर केवल इतना था कि कार्थेज के प्रतिद्वंद्वी अब ग्रीकों के स्थान पर रोमन थे और वे नई शक्ति के पौरुष से उन्मत्त भी थे। पहला मोर्चा उन्हीं के साथ रहा और सिसिली पर अधिकार कर उन्होंने रेगुलस को कार्थेज़ जीत जेने के लिए अफ्रीका भेजा; पर कार्थेजियों ने स्पार्ता के जानिथिप्पस की सहायता से उसे पराजित पर पकड़ लिया। किंतु पानोरमस में रोमन विजय (२५० ई.पू.) ने पासा पलटा और दोनों पक्षों में २४१ ई.पू. संधि हो गई। कार्थेज ने शांति की साँस ली। और अब युद्ध बंद हो जाने से उसने जो सेना तोड़ देनी चाही तो सैनिकों ने अपना बकाया वेतना माँगा, और न मिलने पर कार्थेज पर घेरा डाल दिया। हामिलकार बार्का की ही सूझ थी जिसने सहायता की और उसने नगर को घेरे से मुक्त का घेरा डालनेवालों को काट डाला।
अब कार्थेज ने, सिसिली हाथ से निकल जाने पर, पश्चिम स्पेन की ओर रुख किया। नौ साल के अभियान के बाद २२८ ई. पूर्व में स्पेन पर कार्थेज का अधिकार हो गया। तभी हामिल्कार की मत्यु हो गई। उसका दामाद हास्द्रुबाल पुत्खर अब कार्थेज का नेता बना। उसने रोमनों से संधि कर ली। उसकी मृत्यु के बाद हामिल्लकार के पुत्र हानिबाल को कार्थेज की सेना ने अपना नेता चुना। घर में शांति और समृद्धि थी। कार्थेज जितना अंनत धन का स्वामी था उतनी ही उसी जनसंख्या भी बढ़ी और बढ़कर दस लाख हो गई। रोमनों की विजय का प्रतिशोध लेने की माँग हुई और दूसरे प्यूनिक युद्ध का आरंभ हुआ।
इस युद्ध में हानिबाल ने जो अचरज के कारनामे किए उनसे स्वाभाविक ही उसकी गणना सिकंदर के साथ संसार के असाधारण विजेताओं में होती है। २१९ ई.पू. में उसने सार्गुतुम जीता और स्पेन तथा गाल को रौंदता (२१८-१७ ई.पू.) अपने हाथियों की सेना से आल्पस् की बर्फ जमी चोटियाँ लाँघता इटली के मैदानों में उतर गया। युद्ध अब इटली की जमीन पर होने लगा, कार्थेज रोम की छाती पर था। मोर्चे पर मोर्चा सर करता हानिबाल २१६ ई.पूर्व में कानाइ जा पहुँचा और उसे जीत लेने पर दोम की राह अरक्षित खुल गई। पर ठीक तभी कार्थेज के नगरस्वामी एक नीई नीति अपना बैठे। उन्होंने हानिबाल को सेना और युद्धखर्च भेजने से हनका कर दिया। हानिबाल विदेश में था, शत्रुओं के बीच, जो अपने उदीयमान साम्राज्य के हृदय रोम की रक्षा के लिए कट मर रहे थे। उसका भाई हास्द्रुबाल अपनी सेना लिए उसकी मदद को स्पेन से चला, पर उसे हराकर रोमनों ने उसकी कुमक तोड़ दी। रोमनों ने स्पेन पर फिर अधिकार कर लिया और सागर लाँघ, घूमकर, वे अफ्रीका जा पहुँचे। उनका नेता और हास्द्रुबाल का विजेता स्कीपियो आफ्ऱकानस युद्ध को इटली से अफ्रीका की जमीन पर खींच ले गया,। अब जो अपने भाई की पराजय की सूचना हानिबाल को मिली, और उसने देखा कि स्वदेश से सहायता की संभावना भी नहीं, तो उसने सर्वस्व दाँव पर लगा दिया। उसने युद्धकौशल के कुछ आश्चर्यजनक मान रखे, पर २०२ ई.पू. में ज़ामा के युद्ध में हारकर वह सब कुछ खो बैठा। फिर वह भागा, नगर-नगर, राज-राज, और अंत में सर्वत्र शत्रुओं के शिकंजे को तत्पर देख ग्रीस में उसने जहर खाकर प्राण दे दिए। रोम और कार्थेज के बीच संधि द्वारा प्यूनिक युद्ध समाप्त हुआ। कार्थेज का वह जहाड़ी बेड़ा, जिससे उसने सागर और सागरीय द्वीपों और देशों पर सदियों शासन किया था, तोड़ डाला गया और अफ्रीका को छोड़ उसका सारा बाहरी साम्राज्य छीन लिया गया। पर कार्थेंज़ फिर भी मरा नहीं। उसने फिर शक्ति संचित की और उसकी जनसंख्या फिर सात लाख तक जा पहुँची। तीसरे प्यूनिक युद्ध का आरंभ हुआ। यह केवल तीन वर्ष चला। बड़े बलिदानों के बाद, १४६ ई.पू. में, वह नगर जीता जा सका। हास्द्रुबाल अपने दीवानों के साथ एश्मून के मंदिर में डट जूझ गया। फिर तो नगर का संहार शुरू हुआ, लूट और हत्या की सीमाएँ मिट गईं, नगर को गिराकर उस पर हल चला दिया गया। रोम और कार्थेज के युद्ध बंद हो गए।
१२२ ई.पू. में रोम के सिनेट ने कार्थेज को फिर से उपनिवेश के रूप में बसाना चाहा। कार्थेज बसाया भी गया, पर उसे उजड़ते देर न लगी। जूलियस और ओगुस्तस सीज़र दोनों ने बारी-बारी वहाँ अपनी सेनाएँ भेजीं, फिर वंदालो का उसपर अधिकार हुआ। गाइसेरिक के नेतृत्व में वे जिब्राल्टर का जलडमरूमध्य लाँघ वहाँ पहुँचे और बचे खुचे नगर को लूटा। फिर वहीं से उस बंदोलराज ने रोमन साम्राज्य और इटली पर अपने संहार के घाव किए। अब कुछ काल कार्थेज वंदालों की ही अधिकार में रहा, पर समृद्ध विजेता नगर के रूप में नहीं, केवल जलदस्युता आधार बनकर। रोमन साम्राज्य अब तक दो भागों में बँट चुका था। पूर्वी भाग की राजधानी बिजांतियम जहाँ से चलकर रोमन सेनापति बेलिसारियस ने अंतिम वंदाल राजा को पराजित कर कार्थेज पर अधिकार कर लिया। कार्थेज पर फिर एक बार रोमनों का आधिपत्य हुआ और बेलिसारियस ने नगर की प्राचीरें खड़ी उसे नवजीवन दिया।
पर नगर का वह जीवन दीर्घकालिक न हो सका। अरब की मरुभूमि से जो तूफान उठा वह पश्चिम की ओर आसमान पर छाता चला गया। सीरिया और फ़िलिस्तीन, मिस्र और त्यूनीसिया एक-एक कर अरबों के कदमों में लौटते गए। हसन-इब्न-ए-नोमान ने ६९७ ई. में कार्थेज पर बगैर लड़ाई के अधिकार कर लिया। रोमन जनरल योनिस ने उसके पीठ फेरते ही नगर को फिर स्वतंत्र कर लिया और उसकी रक्षा के लिए कटिबद्ध हुआ। पर हसन शीघ्र ही लौटा, उसने बिजांतीनी सेना को पराजित कर नगर को मिट्टी में मिला दिया। इस प्रकार ६९८ ई. में कार्थेज संसार के मानचित्र से मिट गया, केवल राहगीरों से उसके साम्राज्य के उदय, विकास और, और संहार की कहानी कहते रहने के लिए रोमनों के बनाए नहरों के टूटे स्तंभ खड़े रह गए।
कार्थेज का शासन राजसत्तात्मक न था, अभिजातसत्तात्मक अथवा बहुसत्ताक था। प्रधान कुलों से प्रतिवर्ष शासन के लिए दो 'सोफ़ेतिम' चुन लिए जाते थे। इन्हें अनेक बार भी चुना जा सकता था। हानिबाल १२ वर्षों तक सोफ़ेतिम रहा था। इनका नियंत्रण दस सदस्यों की एक समिति करती थी जो सिनेटरों में से चुनी जाती थी। सिनेट के सदस्यों की संख्या ३०० थी। सिनेटर संभ्रांत और धनी कुलों से चुने जाते थे। इनके अतिरिक्त एक जनसभा भी थी पर उसके अधिकार अत्यंत सीमित थे।
कार्थेजियों के धार्मिक विश्वास प्राय: वे ही थे जो फ़िनीकियों के थे। छोटे-छोटे अनेक देवताओं के ऊपर तीन प्रधान देवता थे—१. बालअमोन अथवा मोलोख, २. तानित, जो चंद्रमा से संबंधित आकाश की देवी थी, और ३. एश्मून, नगर का देवता। मोलोख क्रूर देवत था जिसे बालकों की बलि भी दी जाती थी। उसकी विशाल मूर्ति की भुजाओं में बच्चे छाल दिए जाते थे और एक-एक कर, नीचे की अग्निज्वाल में गिरते जाते थे। पीछे, सिसिली के ग्रीकों से संबंध होने के कारण कार्थेज में ग्रीक देवताओं की उपासना भी एक अंश में होने लगी थी। अपोलो का एक मंदिर नगर के बीच खड़ा था और देल्फ़ी की भविष्यवाणी के लिए भी नगर अपनी समस्याएँ और चढ़ावा भेजा करता था।
सं.ग्रं.—स्मिथ, आर.बी. : कार्थेज ऐंड द कार्थेजियंस्; चर्च, ए.जे. : द स्टोरी कार्थेज; ह्यूबक, पियर : कार्थेज। (भ.श.उ.)