कार्तिकेय शिव के पुत्र। प्राचीन साहित्य और पुरातत्व में इनके अन्य राम कुमार, अग्निकुमार, षण्मुख, स्कंद, शक्तिधर, महासेन, गुह, सुब्रह्मण्य आदि मिलते हैं। ये छह मातृकाओं से उत्पन्न कहे गए हैं। इनके वाहन मयूर तथा कुक्कुट हैं और आयुध शक्ति है। पुराणों के अनुसार अपने अमित पराक्रम के कारण ये देवताओं के सेनापति बनाए गए और उनके प्रबल शत्रु तारक का इन्होंने वध किया।

प्राचीन मुद्राओं पर कार्तिकेय की आकृति मिली है। कुषाण शासक हुविष्क की एक प्रकार की स्वर्णमुद्रा पर इनके दो रूप, महासेन तथा स्कंद, मिलते हैं। यौधेयगण की कुछ मुद्राओं पर हाथ में भाला लिए, छह मुखवाले कार्तिकेय का चित्रण है और ब्राह्मी लेख 'यौधेय भगवतस्वामिनोब्रह्मण्य' या 'भगवतस्वामिनो ब्रह्मण्यदेवस्य कुमारस्य' लिखा है। महाभारत (२, ३२, ४-५) में यौधेयों के रोहितक जनपद को कार्तिकेय का प्रिय प्रदेश कहा गया है। उज्जयिनी की कुछ ताम्रमुद्राओं पर भी अनेक सिरवाले कार्तिकेय का अंकन है। गुप्त सम्राट् कुमारगुप्त प्रथम की एक प्रकार की स्वर्णमुद्रा में कार्तिकेय को मयूर पर आसीन दिखाया गया है। (द्र. चित्र)।

भारतीय कला में कुषाणकाल से कार्तिकेय की प्रतिमाएँ मिलती हैं। गुप्तकालीन कुछ उत्कृष्ट कलाकृतियों में इन्हें फैलाए हुए पंखवाले मयूर के ऊपर वीरवेश में आसीन दिखाया गया है, जो कालिदास के वर्णन 'मयूर-पृष्ठाश्रयिणा गुहेन' का मूर्तरूप है। कुछ प्रतिमाओं तथा मुद्राओं पर मयूर के स्थान पर कुक्कुट मिलता है। महाभारत (३,२३१, १६) में इस रूप में कार्तिकेय का वर्णन करते हुए लिखा है'त्वं क्रीडसे षण्मुख कुक्कुटेन यथेष्टनानाविध कामरूपी।'

उत्तरगुप्तकाल में कार्तिकेय की स्वतंत्र प्रतिमाओं के अतिरिक्त शिव के पार्श्वदेवता के रूप में उनकी अनेक प्रतिमाएँ मिली हैं। कतिपय मूर्तियों में उन्हें सूर्य के पार्श्वचर देवता के रूप में मूर्त किया गया है। पुराणों में कार्तिकेय तथा गणेश का एक साथ बहुधा उल्लेख मिलता है। कुछ ग्रंथों के कार्तिकेय की पत्नी देवसेना का नाम आता है, जिसके साथ सुब्रह्मण्य की विवाहवाली प्रतिमाओं की संज्ञा 'देवसेना'कल्याणसुंदर-मूर्ति' हुई। दक्षिण भारत में इस विग्रह की कुछ मनोहर कांस्य प्रतिमाएँ भी मिली हैं। (कृ.द.वा.)