कारा, जार्ज (१७६६-१८१७) स्वतंत्र सर्बिया का निर्माता, प्रतिभासंपन्न, बहादुर सेनानी, शक्तिसंपन्न कठोर प्रकृति का शासक था। साधारण अपराध के लिए वह किसी का क्षमा नहीं करता था। क्रोधी इतना था कि, कहते हैं, उसने अपने पिता को भी, अपने साथ हंगरी भाग जाने के लिए सहमत न होने पर, कतल कर दिया था। उसने लगभग १२५ आदमियों को मौत के घाट उतारा होगा। उसका सारा जीवन बड़ा साहसपूर्ण रहा।

वह पेटिनी नामक किसान के घर पैदा हुआ था। उसने तुर्की बिग्रेड में काम सीखने के बाद किसान के रूप में अपना जीवन शुरू किया और एक तुर्क की हत्या कर देने के कारण उसकी आस्ट्रिया के सैनिक सीमांत प्रदेश में जाकर रहना पड़ा। सन् १७८८-९१ में सीमांत सेना में भर्ती होकर वह तुर्की के विरुद्ध आस्ट्रिया की ओर लड़ा। बाद में सेना से भागकर सर्बिया में तोपोला चला आया। वहाँ उसने पशु पक्षियों का व्यापार किया। फरवरी, १८०४ में विद्रोही नेताओं द्वारा मुखिया चुना गया। सर्बिया की लड़ाइयों में वह सैनिक नेता के रूप में प्रसिद्ध हुआ। उसकी उपस्थिति मात्र से सर्बिया की सेनाओं में अपार उत्साह पैदा हो जाता था और हारती हुई भी वे विजयी हो जाती थीं। उसी के प्रभाव से आस्ट्रिया ने सर्बिया को तुर्की के विरुद्ध अपना संरक्षित राज्य घोषित किया। रूस का प्रश्रय पाकर उसने सर्बिया को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। २६ दिसंबर, १८०९ को रूस ने उसको और उसके उत्तराधिकारियों को सर्बिया का स्वतंत्र शासक मान लिया।

उसके बढ़ते हुए प्रभाव के कारण उसके कुछ प्रतिस्पर्धी भी पैदा हो गए। सन् १८१२ की बुखारेस्त की संधि के बाद तुर्की ने सर्बिया पर फिर आक्रमण किया। कारा रोगशय्या पर पड़ा हुआ था। सर्बिया की सेनाओं के पराजित होने से उसे २० सितंबर, १८१३ को हंगरी मे शरण लेनी पड़ी। ग्राज में कुछ समय तक नजरबंद रहने के बाद वह होतिन में एकांत जीवन व्यतीत करने लगा और उसको रूस से पेंशन मिलने लगी। वह एकाएक १८१७ में सुरे दे रेवों में प्रकट हुआ। उसका उद्देश्य यूनारियों और बाल्कनों को मिलाकर एक नया विद्रोह खड़ा करना था; परंतु पाशा ने इसकी सूचना मिलने पर उसको जीवित या मृत रूप में गिरफ्तार करने की घोषणा की। सोते हुए उसकी हत्या कर दी गई और उसका सिर काटकर कुस्तुंतुनिया भेज दिया गया। इसके बाद सर्बिया में एक सदी तक गृहकलह मची रही। (स.वि.)