कारबोनारी का अर्थ है लकड़ी का कोयला जलानेवाला। इस नाम को नैपोलियन महान् के समय के कुछ गुप्त दलों ने क्यों अपनाया, इस संबंध में बताया जाता है कि फ्ऱेंच जंगलों में लकड़ी का कोयला जलानेवालों का एक गिल्ड (संघ) था। उसी के नमूने पर कारबोनारी समितियाँ बनीं।
फ्रांस और इटली में कारबोनारी समितियों की विशेष प्रधानता रही। जोआखिम मुरात (१८०८-१८१५) के राज्यकाल में कारबोनारी समितियाँ दक्षिण इटली में कुछ हद तक शक्तिशाली हो गईं। इनका उद्देश्य था विदेशी शासन से मुक्त होना तथा वैधानिक स्वतंत्रता प्राप्त करना। वे चाहते थे कि विदेशी हट जाएँ, भले ही उनके स्थान में बुरबोन वंश के लोग या मुरात आ जाएँ। प्रारंभ में मुरात ने कारबोनारी समिति के लोगों को सहायता भी दी, पर बाद को जब उसने अपनी स्थिति सँभाल ली, तब उसने १८१३ में उनका निर्दयता के साथ दमन किया। पर मुरात का पुलिस मंत्री मालगेल्ला कारबोनारी लोगों से भीतर-भीतर मिला हुआ था। इसलिए समिति पूरी तरह दबाई नहीं जा सकी। इस समिति में उच्च वर्ग के लोग, सरकारी कर्मचारी, सेना के अधिकारी तथा सैनिक, किसान, यहाँ तक कि पुरोहित भी शामिल थे। कुछ रहस्यपूर्ण अनुष्ठान भी होते थे। जहाँ सदस्य रहते थे, उसे वेन्दिता (बिक्री) कहते थे। सदस्य एक दूसरे को 'बुओनि कजिनि' यानी अच्छा भाई (चचेरे, ममेरे इत्यादि) कहकर पुकारते थे। ईश्वर को संसार का ग्रैंड मास्टर और ईसा को अवैतनिक ग्रैंड मास्टर कहा जाता था। इनका झंडा पहले लाल, नीला और काला था; आगे चलकर १८३१ में वह लाल, सफेद और हरा हो गया।
प्रसिद्ध इतालवी राजा फ़रदीनैंद ने पहले कारबोनारी लोगों की सहायता की थी; पर जब उसको अपने संबंध में विश्वास हो गया कि हमें कोई हटा नहीं सकता, तब वह उनके विरुद्ध हो गया। उसे पुलिस मंत्री ने कारबोनारी लोगों को दबाने के लिए 'कालदेराई दैल कुंतरापेजो' नाम से एक समिति बना दी जिसमें डाकुओं और गुंडों को भर्ती कर दिया, फिर भी कारबोनारी समिति दबाई न जा सकी और उसकी ख्याति बढ़ती रही। बहुत से विदेशियों ने इस समिति की सदस्यता स्वीकार की, जिनमें सबसे प्रसिद्ध विदेशी अंग्रेज कवि लार्ड बायरन था।
इटली में उनका पहला विद्रोह १८२० में नेपुल्स के अंचल में हुआ। सेना भी एक हद तक मिली हुई थी और उसने विद्रोहियों का साथ दिया। विद्रोहियों का नारा था—ईश्वर, राजा और संविधान। राजा को दबना पड़ा और १३ जुलाई को संविधान देना पड़ा, पर कारबोनारी सरकार चलाने में उतने सफल नहीं रहे। राजा ने आस्ट्रिया की विदेशी सेनाओं की सहायता से कारबोनारियों ने जनरल पेपे को हरा दिया। राजा ने संसद विसर्जित कर दी और दमन शुरू हुआ।
इसी प्रकार १८२१ के मार्च महीने में इटली के पीदमोंत प्रांत में कारबोनारियों द्वारा संगठित एक विद्रोह हुआ था। इससे भी बड़े लोग शामिल थे यहाँ तक कि अपने राज्य का उत्तराधिकारी माननेवाले चार्ल्स अल्बर्ट भी विद्रोहियों के पृष्ठपोषक थे; पर विद्रोह सफल नहीं हुआ और विद्रोहियों में से जो लोग पकड़े गए, उन्हें लंबी सजाएँ मिलीं।
फ्रांस में पहले पहल नेपोलियन की सेनाओं में कारबोनारी लोगों का जोर हुआ। पहले यह दल सैनिक अफसरों में गुप्त समिति के रूप में रहा, पर बाद को और लोग भी इसमें शरीक हो गए। १८२० के करीब फ्रांस में कारबोनियों का बहुत जोर हुआ और कई विद्रोह हुए, पर ये दबा दिए गए। बाद को इसी आंदोलन की राख से कई और समितियाँ फ्रांस में बनीं जिनमें वह समिति बहुत मशहूर हुई जिसका नाम है 'तू अपनी मदद कर, ईश्वर तेरी मदद करेगा। कहा जाता है, फ्रेंच संसद् के लफ्ऱाायेत आदि कई सदस्य कारबोनारी के प्रति सहानुभूति रखते थे। पिछले दिनों में इसका सम्राट् नेपोलियन तृतीय तक अपनी युवावस्था में रहा था।
इटली में कारबोनारी समिति का स्थान धीरे-धीरे मात्सीनो और गारीबल्दी की 'नवीन इटली' नामक समिति ने ले लिया। यद्यपि कारबोनारी समितियों का लक्ष्य स्पष्ष्ट नहीं था और वे कभी कुछ कहती थीं, कभी कुछ, फिर भी इसमें संदेह नहीं कि बाद में विद्रोहों तथा विद्रोहियों पर आंदोलन के शहीदों का बहुत बड़ा प्रभाव रहा। (म.गु.)