कारबेर या कनेर यह विशाल सदाहरित झाड़ी है जो हिमालय में नेपाल से लेकर पश्चिम के कश्मीर तक, गंगा के ऊपरी मैदान और मध्यप्रदेश में बहुतायत से पाई जाती है। अन्य प्रदेशों में यह कम पाई जाती है। इसका लैटिन नाम 'नीरियम इंडिकम' है। इसकी पत्तियाँ दो या तीन चक्रों में रेखाकार, भालाकार, लंबाग्र और चर्मिल होती हैं। पुष्प सफेद, गलाबी या लाल अंतिम बहुर्ध्यक्षों में और सुगंधित, बीज अत्यंत छोटे हल्के भूरे होते हैं।

यह संपूर्ण भारत में अपने सुगंधित और दिखावटी फूलों के लिए उगाया जाता है। यह आड़ या बाउ में उगाया जाता है। कनेर पौधे के समस्त भाग विषैले होते हैं। इसकी जड़ की लेई बाह्यत: अर्श, शैंकर और व्रणोत्पत्ति के रोगों में लगाई जाती है। जड़ की छाल का तैलीय काढ़ा परतदार चर्मरोगों के उपयोग किया जाता है। पत्तियों का रस आँखों में आँसू लाने के लिए डाला जाता है। इसके सुगंधित फूल माला बनाने तथा मंदिरों पर चढ़ाने के काम आते हैं। (नि.सिं.)