कारबंकल एक प्रकार का फोड़ा है जो उपचर्म के सड़ने से होता है। इसकी उत्पत्ति 'स्टैफ़ाइलोकाकस ऑरियस' नामक जीवाणु के संदूषण से होती है। दूसरे शब्दों में, यह एक प्रकार से कई छोटी-छोटी फुंसियों से विकसित होता है।

कारबंकल वैसे तो किसी भी आदमी को हो सकता है, लेकिन मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों को लगभग ४० वर्ष की अवस्था में यह प्राय: होता है। मर्दों में बालों की अधिकता होती है अत: उनमें उनके रोममूल में उपर्युक्त जीवाणु के संदूषण से इसकी उत्पत्ति हो जाती है।

कारबंकल प्राय: गर्दन में पीछे की तरफ, कंधों पर, अँगुलियों पर तथा गुर्दें पर होता है। वैसे, शरीर के किसी भी हिस्से पर, जहाँ ऊतकों में जीवनीशक्ति की कमी होती है, यह हो जाता है। परंतु अक्सर यह गर्दन में पीछे की तरफ अधिक होता है क्योंकि उक्त स्थल पर त्वचा मोटी, खुरदुरी तथा अल्पपोषित (क्ष्थ्थ्-ददृद्वद्धत्द्मण्ड्ढड्ड) रहती है।

जिस स्थल पर कारबंकल निकलता है, वहाँ रोगी प्राय: अतिरिक्त कड़ापर और तेज दर्द महसूस करता है। शेष लक्षण सामान्य फोड़े जैसे होते है। कारबंकल निकलने के स्थान पर त्वचा लाल एवं धूसर हो जाती है। धीरे-धीरे सूजन चारों तरफ फैलकर बड़ा आकार ले लेती है। फिर मध्य भाग मुलायम होने लगता है जिसके ऊपर फफोले (जल स्फोटिका) पड़ जाते हैं जो बाद में मवाद से भर जाते हैं। कुछ समय बाद कारबंकल फूटता है तो चमड़े पर अनेक चलनीनुमा छिद्र बन जाते हैं और उनसे मवाद बाहर निकलने लगता है। चलनीनुमा असंख्य छिद्र इस रोग के विशेष लक्षण हैं। ये छोटे-छोटे छिद्र बाद में परस्पर मिलकर गेंद की आकृति का विवर (ड़द्धaद्यड्ढद्ध) जैसा घाव बनाते हैं जिसके नीचे राख के रंग का मुरदार मांस रहता है। अंत में मृत त्वचा या मुरदार मांस धीरे-धीरे अलग हो जाता है और नीचे दानेदार घाव दिखाई देने लगता है जो घाव के भरने का लक्षण होता है।

कारबंकल प्राय: उपचर्म तक ही सीमित रहता है, लेकिन मधुमेह आदि रोगों से ग्रस्त रोगियों में जब उनकी रोगनिरोधक शक्ति कम रहती है, यह फोड़ा मांस अथवा हड्डियों तक भी फैल सकता है।

अंगुली पर कारबंकल रोममूल में स्टैफ़ाइलोकाकस ऑरियस के संदूषण से हाता है। गुर्दे पर यह रक्त द्वारा उपर्युक्त जीवाणु के पहुँचने से होता है। पेड़ू पर मुक्के की चोट लगने से भी यह फोड़ा गुर्दे पर हो जाता है। स्तन पर बलतोड़ घाव से यह विकसित हो जाता है।

रोगी से ध्यानपूर्वक रोगवर्णन सुनने के बाद फोड़े के आकार प्रकार देखने से कारबंकल के निदान में आसानी हो जाती है। रोगी के पेशाब में यदि चीनी पाई जाए और उसके रक्त में भी यदि चीनी की अधिक मात्रा हो तो कारबंकल का निदान प्रमाणीकृत हो जाता है। कारबंकल के रोगी के रक्त में श्वेत कीटाणुओं की भी अधिकता रहती है।

कारबंकल के रोगी का उपचार मधुमेह के उपचार से शुरू किया जाता है, क्योंकि अधिकतर मधुमेह के रोगियों को ही कारबंकल होता है। वैसे, इस रोग की प्रारंभिक अवस्था में पेनिसिलिन के इंजेक्शन उचित मात्रा में दिए जाने चाहिए। घाव के ऊपर मैगनीशियम सल्फ़ेट का संतृप्त मलहम लगाया जाता है। इन्फ्ऱा र्रेड या शार्टवेव डायथर्मी से भी इसका उपचार किया जाता है। रोगी के पूर्ण आरोग्य हेतु संतुलित आहार, उचित औषधि तथा ठीक रक्तसंचार अत्यावश्यक है। (कृ.कु.पां.)