कारनो, एन.एल.एस. (१७९६-१८३२) यह फ्रांसीसी भौतिकीविद् थे और पेरिस में इनका जन्म हुआ था। १८१२ ई. में ये एक बहुशिल्प शिक्षणालय में भरती हुए पर अध्ययन छोड़कर इन्होंने अभियंता (Engineer) का पद गहण किया। १८१९ ई. में ये सेना की एक परीक्षा में उत्तीर्ण हुए और इन्हें लेफ़्टिनेंट का पद मिला। बाद में इन्होंने गणित, रसायन, इतिहास, प्रौद्योगिकी, शासकीय अर्थव्यवस्था इत्यादि विषयों का अध्ययन किया। संगीत, ललितकला, व्यायाम विषयक खेलकूद, तैराकी, शस्त्र विद्या आदि में भी इनका अच्छा अभ्यास था। १८२७ ई. में ये कप्तान हुए और १८२८ ई. में ही नौकरी छोड़ दी।
ये मौलिक एवं गंभीर विचारक थे। केवल एक ही पुस्तक ये प्रकाशित कर पाए जिसमें इनके वैज्ञानिक अनुसंधानों की थोड़ी सी चर्चा है। इनके लेखों की पांडुलिपि सुरक्षित रखी थी जिससे पता लगा कि वे उष्मा की वास्तविक प्रकृति समझते थे। इसमें उन प्रयोगों का भी वर्णन मिलता है जिनमें बाद में जूल तथा अन्य वैज्ञानिकों ने उष्मा का यांत्रिक तुल्यांक निकाला। उष्मागतिकी के मौलिक सिद्धांत के अनुसार उत्क्रमणीय इंजन (Reversible Engine) की दक्षता उन तापों पर निर्भर करती है जिनके बीच वह कार्य करता है। यह सिद्धांत कारनो की ही देन है अत: 'कारनो सिद्धांत' के नाम से प्रसिद्ध है। (र.शं.पां.)