कारदूच्ची, जूसूए (१८३५-१९०७ ई.) इतालीय कवि, आलोचक, देशभक्त राजनीतिज्ञ जूसूए कारदूच्ची का जन्म १८३५ में हुआ। छोटी अवस्था में ही उसने लातीनी तथा इतालीय कवियों की कृतियों का अध्ययन किया। कारदूच्ची को पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने परिवार की भी देखरेख करनी पड़ी, किंतु उसका अध्ययन चलता रहा। १८६० में वह बोलोन विश्वविद्यालय में इतालीय साहित्य का अध्यापक नियुक्त हुआ और १९०४ तक उस पद पर कार्य किया। कारदूच्ची का सारा जीवन अध्ययन और राजनीति में बीता। १८९० में उसको सेनेटर मनोनीति किया गया। मत्यु के कुछ समय पूर्व सन् १९०६ में कारदूच्ची को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राजनीति के क्षेत्र में प्रसिद्धि से वह दूर रहा किंतु समसामयिक इटली को एक राजनीतिक विचारधारा में सूत्रबद्ध करने से उसका स्थान महत्वपूर्ण है।

स्वच्छंदतावाद का कारदूच्ची ने विरोध किया। वह उसे पूर्ण रूप से विद्रोही विचारधारा की काव्यशैली समझता था। काव्य में वास्तविकता का उसने समर्थन किया। कारदूच्ची प्राचीन काव्य तथा काव्यशास्त्र का गंभीर विद्वान् था और उसके प्रथम काव्यसंग्रह 'यूवेनीलिया' (१८५०-६०) की कविताओं में प्राचीन युग की स्मृतियों से युक्त कविताएँ मिलती हैं। 'लेवियाग्राविया' (१८६१-७१) की कविताओं में प्राचीन युग की स्मृतियों से युक्त कविताएँ मिलती हैं। 'लेवियाग्राविया' (१८६१-७१) में तथा 'इन्नोआसताना' (शैतान के प्रति) में मुक्त वातावरण के दर्शन होते हैं। 'ज्यांबी एद एयोदी' व्यंग्यपूर्ण गीतिकाव्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। उसकी कावि प्रतिभा के सबसे सुंदर उदाहरण 'रीमे दुओवे' (नीवन कविताएँ, १८६१-८७) तथा 'जोदी बारबरे' और 'रीमे ए रीत्मी' की कविताओं में मिलते हैं। विभिन्न प्रकार के विषयों से संबंधित कविताएँ इन संग्रहों में मिलती हैं, जिन्हें प्रकृति के सुंदर स्वाभाविक वर्णन, संगीत और गहन अनुभूति सभी कुछ मिलती हैं। उसकी सभी कविताओं में गंभीर अध्ययन की झलक मिलती है। इतालीय साहित्य के इतिहास में कारदूच्ची का स्थान गद्यलेखक तथा आलोचक की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। उसका गद्य अलंकृत शैली का है, तर्क वितर्क से वह पूर्ण है। अनेक कवियों और प्राचीन लेखकों की कृतियों का उसने संपादन भी किया तथा उनपर आलोचनाएँ लिखीं। कारदूच्ची की आलोचनाएँ दे सांक्तीस की कोटि की नहीं हैं। यह काव्य समालोचना के सिद्धांत का प्रतिपादन नहीं कर सका है। अपने पाठकों को कवियों की कृतियों के रस से परिचित कराने का महत्वपूर्ण कार्य उसने अपनी आलोचनाओं के माध्यम से किया। ऐतिहासिक आलोचना की धारा का उसने सूत्रपात किया। पेत्रार्का, पोलीत्सियांते तथा अन्य प्राचीन कृतियों पर जो आलोचनाएँ कारदूच्ची ने लिखीं उनका आज भी साहित्यिक मूल्य है। आज के इतालीय साहित्य में कदाचित् कवि की अपेक्षा साहत्यकार कारदूच्ची का अधिक महत्व है।

(रा.सिं.तो.)