कारण शरीर वेदांत में जीव के तीन शरीर माने गए हैं—स्थूल, सूक्ष्म और कारण। अविद्या से युक्त आत्मा को जीव कहते हैं। जीव का स्थूल शरीर भौतिक तत्वों से निर्मित होता है। उसका सूक्ष्म शरीर ज्ञानेंद्रिय, कमेंद्रिय, प्राण, मन और बुद्धि से निर्मित होता है। जीव का कारण शरीर अविद्या है। यह अपेक्षाकृत स्थायी होता है। स्थूल शरीर के नष्ट होने पर इसका विनाश नहीं होता। कारण शरीर विभिन्न जन्मों में जीव के साथ लगा रहता है। कारण शरीर से युक्त होने के कारण जीव को प्राज्ञ कहते हैं। कारण शरीर इसलिए कहलाता है कि प्रकृति का एक विशिष्ट रूप होने से यह स्थूल और सूक्ष्म शरीर का कारण है क्योंकि ये प्रकृति से ही उत्पन्न होते हैं। जीव को जब ज्ञान प्राप्त हो जाता है और उसे अपने आत्मस्वरूप का बोध हो जाता है तब अविद्या से निर्मित कारण शरीर भी नष्ट हो जाता है। जब जीव जन्म मरण के बंधन से सदा के लिए मुक्त हो जाता है। (रा.शं.मि.)