कायस्थ सवर्ण हिंदुओं की एक उपजाति जो प्रधानतया उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश से बंगाल तक निवास करती है। कायस्थों के कुछ भेद गुजरात, महाराष्ट्र तथा दक्षिण भारत में भी बिखरे हुए हैं। कायस्थ प्राय: पढ़ने लिखने का पेशा करते रहे हैं। नवीन आर्थिक परिस्थिति में ये धीरे-धीरे अन्य पेशे भी करने लगे हैं। कायस्थ शब्द की व्युत्पत्ति संदिग्ध है। उदाहरणार्थ कुछ लोग इसे 'कार्यस्थ' का बिगड़ा हुआ रूप समझते हैं, परंतु चूँकि स्वयं 'कायस्थ' शब्द का प्रयोग इसी रूप में १,०००-१,२०० साल (याज्ञवल्क्यस्मृति, मुद्राराक्षस) से होता आया है, कार्यस्थ से कायस्थ का बनना विशेष अर्थ नहीं रखता।
शिलालेखों, ताम्रपत्रों तथा प्राचीन ग्रंथों में आए हुए उल्लेखों से यह स्पष्ट है कि गुप्तकाल से यह शब्द व्यवहार में आता रहा है। इन उल्लेखों से यह भी स्पष्ट है कि १२वीं शताब्दी तक कायस्थ शब्द का प्रयोग किसी जाति विशेष के लिए नहीं, बल्कि राजकर्मचारियों अथवा अहलकार के अर्थ में होता था, जो राजमंत्री से लेकर साधारण लेखक तक हुआ करते थे और जिनके पदों पर ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि अनेक वर्णों के लोग नियुक्त हो सकते और होते थे। उदाहरणार्थ रायबहादुर महामहोपाध्याय पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने लिखा है—'ब्राह्मण, क्षत्रिय, आदि जो लोग लेखक अर्थात् अहलकारी का काम करते थे वे कायस्थ कहलाते थे। पहले कायस्थों का कोई अलग भेद नहीं था। कायस्थ अहलकार का ही पर्याय शब्द है जैसा कि आठवीं सदी के कोटा के पास के कणरुवा के एक शिलालेख से पया जाता है।. . . पीछे से अन्य पेशेवालों के समान इनकी भी एक जाति बन गई।'' (मध्यकालीन भारतीय संस्कृति, पृ. ४७, ४८)।
उत्तर भारत तथा गुजरात में कायस्थों की १२ मुख्य उपजातियाँ प्रसिद्ध हैं। उनके अतिरिक्त महाराष्ट्र में एक चंद्रसेनी प्रभु उपजाति भी मिलती है। कुछ लोग दक्षिण भारत के पटनलकरण उपजाति की भी कायस्थों में गिनती करते हैं। बंगाली कायस्थों का एक अलग ही वर्ग है। १९२१ की जनसंख्या के अनुसार कायस्थ २१,७८,३९० थे। उत्तर भारत की कायस्थों की उपजातियाँ निम्नलिखित हैं :—१. श्रीवास्तव, २. सक्सेना, ३. भटनागर, ४. माथुर, ५. कुलश्रेष्ठ, ६. अष्ठाना, ७. निगम, ८. गौड़ ९. अंबष्ठ, १०. करण, ११. वाल्मीकि और १२. सूर्यध्वज। जनसंख्या के अनुसार इनमें प्रथम स्थान पूर्वी उत्तर प्रदेश के श्रीवास्तव (३ लाख, ३९ हजार), द्वितीय स्थान बिहार के करण (१ लाख, ४५ हजार) और तृतीय स्थान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सक्सेना को (९० हजार) देना होगा। बंगाली कायस्थों की समस्त जातियों की संख्या १० लाख, ६४ हजार थी। जनश्रुति के अनुसार बंगाल के कायस्थों के पूर्वपुरुष कन्नौज से गए हुए माने जाते हैं। ऊपर गिनाए कायस्थ उपवर्णों में अनेक ब्राह्मणगोत्रीय हैं, यह उल्लेखनीय हैं, यद्यपि गोत्र मात्र वर्ण से नहीं, पाणिनि के सूत्र—विद्यायोनिसम्बन्धौ—के अनुसार गुरु के संबंध से भी हुआ करता था।
कायस्थों की उपजातियों में आपस में खानपान तथा विवाह संबंध नहीं होता रहा है किंतु धीरे-धीरे ये प्रतिबंध अब टूट रहे रहे हैं। (खा.चं.)