कायसाँ (Caission) धँसाई जानेवाली एक मंजूषा है, जिसका सिरा और पेंदा खुला रहता है एवं उसमें एक या एक से अधिक कूप या द्वार बने रहते हैं। यह सेतुस्तंभ, बंदरगाह, प्राचीर आदि के निर्माण में आधारतल का काम देता है और समुद्र तथा नदियों की तलहटी में नींव डालने के कार्य स्थल से पानी को दूर रखता है। मंजूषा तब तक धँसाई जाती है जब तक उसका पेंदा नींव में वांछित तल तक न पहुँच जाए। मंजूषा लकड़ी, इस्पात, पत्थर या कंक्रीट की बनाई जा सकती है। कायसाँ साधारणतया दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, पहला खुला कायसाँ और दूसरा वायवीय कायसाँ। इसकी धँसान कूप में खुदाई या निष्कर्षण करके की जाती है। धँसाने के घर्षण के कारण अवरोध होता है जिसका, तल में पानी के फौवारे का उपयोग करके, निवारण किया जाता है। कुआँ खोदने या धँसाने में बालू, चिकनी मिट्टी, गोल पत्थर तथा सूक्ष्म बालू के स्तरों से गुजरना पड़ता है। कुएँ को सीधा धँसाने के लिए, ताकि वह किसी तरफ न बुझे और न अपने स्थान से ही हटे, पर्याप्त कौशल एवं अनुभव की आवश्यकता होती है। बहुधा कुएँ में अंत: और बहि: पार्श्व के निचले भाग में पानी के तल की दाब से नरम और हल्की धरती में दरार पड़ जाती है; अत: बालू बह जाता है और जलस्राव स्रोतों की भाँति हवा में ऊँचाई तक ऊठने लगता है जिससे उत्स्रुतकूप की दशा का भान होता है। इस कठिनाई को दूर करने के लिए बहुधा गोताखोरों द्वारा खुदाई कराई जाती है।
जहाँ पर जलयुक्त महीन कणवाली असंजंक (non-cohesive) मिट्टी के कारण उपर्युक्त ढंग से खुली धँसान कठिन या असंभव हो जाती है वहाँ पर वायवीय धँसान का सहारा लिया जाता है।
खुले कायसाँ के कुएँ शिखर और पेंदे में खुले रहते हैं। वायवीय कायसाँ की सतह से तल में एक कार्यवाही कक्ष रहता है जिसके पेंदे में वायुरोधक ढक्कन लगे रहते हैं। इन ढक्कनों में वायुबंद कक्ष रहते हैं या कक्ष से हवा को बाहर निकाले बिना बाहर आ सकती हैं। हवा की दाब इतनी रखी जाती है जो कायसाँ के बाहर के पानी के दाब के समकक्ष या समस्तरीय हो।
जब कायसाँ अपने स्थान तक पहुँच जाता है तब उसका तल साफ किया जा सकता है और उसे तैयार कर उसका निरीक्षण करके उसकी धारक्षमता का अनुमान लगाया जा सकता है।
वायवीय कायसाँ का सबसे महत्वपूर्ण अवयव वायुबंद कक्ष है जिसमें नियंत्रित ढंग से आवागमन की व्यवस्था रहती है। संपीड़ित वायु में, विशेषत: शरीर से दुर्बल व्यक्तियों का, प्रवेश संकटप्रद होता है। जब वायु की दाब अधिक हो तो वायु की दाब बिना कम किए संपीड़ित वायु से निकलना भी संकटप्रद है। इससे शरीर के ऊतकों तथा रक्त में बुलबुले बन सकते हैं, रक्तस्राव, ऐंठन, लकवा या मृत्यु तक हो सकती है। इसलिए वायवीय धँसान एक सौ दस फुट से अधिक गहराई के लिए नहीं करनी चाहिए। इससे अधिक गहराई के लिए खुली धँसान ही संभवत: अधिक उपयुक्त है। (सी.बा.जो.)