कॉमेडी सुखांत नाट्य रचनाएँ हैं जिनके कथानक आनंद, मनोरंजन और हास्य के सहारे विकसित होते हैं। पात्रों के कार्यों और कथनों से भी आनंद की ही उपलब्धि होती है। कॉमेडी का जन्म प्राचीन यूनान में उल्लास के वातावरण में हुआ तथा प्रारंभिक अवस्था में उसमें संगीत, अभिनय और उपहास का अनुपम सम्मिश्रण होता था। मदिरा के देवता दियोनिसस के उपासक उन्मत्त होकर नृत्य और गान द्वारा अपने हृदय के भाव व्यक्त करते तथा अपनी श्रद्धा अर्पित करते थे। जलूस बनाकर वे इधर-उधर घूमते थे और न केवल पारस्परिक विनोद में संलग्न रहते थे वरन् राह में मिलनेवालों का उपहास भी करते थे। इसी भाँति कॉमेडी का आविर्भाव हुआ। उसका विकास द्रुत गति से हुआ। एरिस्टोफ़ेंस के सुखांत नाटकों में यूनानी कॉमेडी का विशिष्ट रूप द्रष्टव्य है।
सिसरो, होरेस प्रभूति रोमन विचारकों ने कॉमेडी के स्वरूप और प्रयोजन पर प्रकाश डाला तथा प्लातस और तेरेन्स ने यथार्थ और व्यंग्य मिलाकर अनेक उत्कृष्ट कॉमेडियों की रचना की। मध्ययुग में कॉमेडी शब्द अत्यंत विस्तृत अर्थ में प्रयुक्त होता था। उसमें नाट्यरचनाओं के अतिरिक्त सुखांत पद्यबद्ध कथाओं का भी बोध होता था। इसका प्रमुख उदाहरण है दांते विरचित 'ला कामेदिया दीवीने'। नवजागरण के युग में पुन: कॉमेडी का सीधा संबंध नाट्यसाहित्य और रंगशाला से स्थापित हुआ तथा प्राचीन शास्त्रीय नाट्यरचनाओं का प्रचलन बढ़ा। तत्पश्चात् शास्त्रीय तथा देशज प्रभावों के संयोग से एक नवीन प्रकार की कॉमेडी की सृष्टि हुई जिसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण शेक्सपियर के नाटकों में मिलता है। यह रोमैंटिक कॉमेडी कल्पना और भावना पर आधृत थी तथा पूर्वनिर्धारित नियमों की अवहेलना करती थी। इसकी प्रतिक्रिया में शीघ्र ही क्लासिकल कॉमेडी का पुनरुत्थान हुआ और बेन जान्सन ने उसका वह रूप प्रस्तुत किया जिसे 'कॉमेडी ऑव ह्यूमर्स' कहते हैं। इसमें मानव स्वभाव की दुर्बलताओं का अतिरंजित चित्रण यथार्थ जीवन की पृष्ठभूमि में हुआ है। आगे चलकर मोलियेर, इथरिज, कांग्रीव आदि ने कृत्रिम उच्चवर्षीय सामाजिक जीवन को आधार बनाकर उन नाटकों की रचना की जिन्हें 'कॉमेडी ऑव मैनर्स' कहते हैं। इन सुखांत नाटकों में कभी-कभी अतिशय अश्लीलता मिलती है जो अनेक पाठकों और दर्शकों को अरुचिकर प्रतीत होती है। १८वीं शताब्दी में ऐसी भावनाप्रधान तथा नैतिकतासंपन्न कॉमेडियों की रचना हुई जिनका नाम 'सेंटिमेंटल कॉमेडी' पड़ गया है। १९वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में फ्रांस तथा स्पेन में रोमैंटिक कॉमेडी का चरमोत्कर्ष हुआ और प्राय: तभी से यूरोप और अमरीका में ऐसी म्यूज़िकल कॉमेडी का प्रचलन भी बढ़ने लगा जिसमें संगीत और परिहास का अनियंत्रित उपयोग होता है। आधुनिक काल में कॉमेडी की अनेक विशेषताएँ गंभीर समस्यामूलक नाटकों में समाविष्ट हो गई हैं तथा अनेक ऐसे सुखांत नाटक लिखे गए हैं जिनका प्रत्यक्ष संबंध कॉमेडी लेखन के पुराने आदर्शों से नहीं है। तब भी हम यह नहीं कह सकते कि वर्तमान युग में कॉमेडी ने विशेष उन्नति की है अथवा कोई नवीन चमत्कारपूर्ण रूप प्रकट हुआ है।
यह तो सर्वस्वीकृत है कि कॉमेडी का सीधा संबंध मनोरंजन और हास्य से है। कॉमेडी का यह प्रयोजन कभी भुलाया नहीं जा सकता। किंतु उच्च कोटि की कॉमेडी में मनोरंजन के अतिरिक्त एक गंभीर अभिप्राय भी छिपा रहता है। अरस्तू ने अपने काव्यशास्त्र में कॉमेडी को मानव जीवन में मिलनेवाली कुरूपता तथा जीवन के हास्यास्पद व्यापारों का ऐसा अनुकरण माना है जिसमें दूसरों को पीड़ा पहुँचाने के उद्देश्य का नितांत अभाव रहता है। कॉमेडी के माध्यम से जीवन का परिष्कार होता है तथा उसका बिगड़ा हुआ संतुलन पुन: स्थापित होता है। अनेक परवर्ती विचारकों ने अरस्तू के इस सिद्धांत को मान्यता प्रदान की है और संसार के अनेक महत्वपूर्ण सुखांत नाटक इसी आदर्श को ध्यान में रखकर लिखे गए हैं। कोरी हँसी उत्पन्न करनेवाले सुखांत नाटक कॉमेडी के उच्चतम आदर्श से च्युत होकर फ़ार्स अर्थात प्रहसन की कोटि में स्थान पाते हैं। इस प्रकार उत्कृष्ट कॉमेडी, हाई कॉमेडी, जीवन की अभिव्यक्ति तथा समीक्षा है, प्राय: उसी प्रकार जैसे ट्रैजेडी। वह भी जीवन के गंभीर तत्वों के समझने का प्रयास है, अत: ट्रैजेडी और कॉमेडी का भेद अंततोगत्वा मौलिक नहीं सिद्ध होता।
कॉमेडी में अनेक साधन उपयोग में लाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं ह्यूमर अर्थात् स्नेहन हास्य, विट अर्थात् वैदग्ध्य, सटायर अर्थात् उपहास, आयरनी अर्थात् व्यंग्य इत्यादि। इन सभी साधनों को अलग-अलग अथवा मिलाकर काम में लाया जाता है और फलत: कुरूपताओं और दुर्व्यवस्थाओं का उद्घाटन तथा हास्य का आविर्भाव होता है। कॉमेडी के पाठक और प्रेक्षक क्यों हँसते है, इस प्रश्न को लेकर दीर्घकाल से वादविवाद चला आया है। आनंद और मनोरंजन के क्षणों में हँसी मजाक स्वाभाविक है, अत: सामान्य मत यह है कि लोग आनंदोद्रेक के कारण हँसते हैं, किंतु कुछ दार्शनिकों का यह मत है कि हँसी अंहकार के कारण उत्पन्न होती है। प्रेक्षक प्रच्छन्न रूप से अपनी तुलना उस पात्र से करता है जिसका स्वरूप अथवा व्यवहार हास्यापद है और अपने उसको संतोष प्राप्त होताहै जो उसकी हँसी का कारण है। एक धारणा यह भी है कि कॉमेडी में दूसरे की निंदा और भर्त्सना से मानव मन की छिपी हुई पाशविक प्रवृत्ति का परितोष होता है और यही आनंद का कारण है। हम कह चुके हैं कि कॉमेडी के अनेक रूप हैं और अपने विभिन्न रूपों में वह हास्य के विभिन्न कारणों से संबंधित है। कॉमेडी के ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिनमें सहानुभूति और सहृदयता आद्योपांत विद्यमान रहती है और उसके ऐसे रूप भी हैं जिनमें कटु हास्य और व्यंग्य का प्राधान्य मिलता है। अतएव यह कहना अनुचित न होगा कि कॉमेडी से उत्पन्न होनेवाले हास्य के जितने कारण दिए गए हैं, आशिंक रूप में सभी सत्य हैं।
सामाजिकता कॉमेडी का विशिष्ट गुण है। प्रारंभ से ही इसका संबध सामान्य लोकजीवन से निरंतर बना रहा है। वैयक्तिक जीवन की समस्याएँ भी कॉमेडी में सामाजिक परिवेश में ही निरूपित होती हैं। सामाजिक प्रभावों और शक्तियों का पारस्परिक द्वंद्व किस प्रकार अंत में मिटकर एक समन्वित व्यवस्था उत्पन्न करता है, यही कॉमेडी का प्रतिपाद्य है। इसी तथ्य को व्यक्तिगत जीवन में भी निरूपित किया जाता है। उदाहरणार्थ शेक्सपियर के नाटकों में कुछ देर के लिए पात्र बाधा और कठिनाइयों के कारण व्यग्र हो उठते हैं, किंतु शीघ्र ही बाधाएँ मिट जाती हैं और कथानक का अवसान प्रेम और परिणय में होता है।
सं.ग्रं.—एरिस्टाटल : पोएटिक्स; मेरेडिथ, जार्ज : आन दि आइडिया ऑव कॉमेडी ऐंड द यूज़ेज़ ऑव द कामिक स्पिरिट; निकॉल, एलरडाइस : थियरी ऑव ड्रामा; बेंटले ऐंड मिलेट् : ड्रामा।
(सु.प्र.सिं.)