कामरूप असम का प्राचीन नाम। पुराणों तथा तंत्रों में कामरूप को महापीठस्थान कहा गया है। योगिनीतंत्र में इसका विस्तार करतोया से दिक्करवासिनी तक बताया गया है। तीसरी श.ई. के पूर्व का इतिहास पौराणिक कथा के रूप में प्राप्त होता है, जैसे वहाँ वराह विष्णु, तथा पृथ्वी के पुत्र नरकासुर ने एक राजवंश की स्थापना की। सातवीं श. की एक जनश्रुति के अनुसार नकर तथा उसके पुत्र भगदत्त ने पुष्पवर्मा के पूर्व राज किया। पुष्पवर्मा के १२ अधिकारियों के नाम अभिलेखों में प्राप्त होते हैं : पुष्पवर्मा, समुद्रवर्मा (उदत्तदेवी अथवा दत्तवती), बलवर्मा (उरत्नवती), कल्याणवर्मा (उगंधर्ववती), गणपतिवर्मा (उयज्ञवती), महेंद्रवर्मा (उसुब्रता), नारायणवर्मा (उदेववती), मूर्तिवर्मा (उविज्ञानवती), चंद्रमुखवर्मा (उभोगवती), स्थितवर्मा (उनयनदेवी अथवा नयनशोभा), सुस्थितवर्मा (श्यामादेवी अथवा ध्रुवलक्ष्मी)। सुस्थितवर्मा के दो पुत्र सुप्रतिष्ठिवर्मा तथा भास्करवर्मा थे जो हर्ष के समकालीन तथा मित्र थे। हर्ष जब चीनी यात्री को अपने यहाँ भेजने के संबंध में कुपित हो गया था तो मित्र के यहाँ चीनी यात्री, २०,००० हाथी तथा ३०,००० नावें लेकर रवाना हुआ। हर्ष तथा इसमें फिर मित्रता हो गई थी।

भास्करवर्मा ने गौड़ों को पराजित कर अपने राज्य का विस्तार किया। उसके बाद कामरूप के इतिहास में एक नए राजवंश का उदय हुआ। भास्करवर्मा के वंश से इसका क्या संबंध था, कहना कठिन है। एक ताम्रपट्ट के अनुसार इस वंश क संस्थापक शालंभ अथवा प्रालंभ था। राजवंश के परिवर्तन के कारण पालों ने सफलतापूर्वक कामरूप पर आक्रमण किया। देवपाल ने वहाँ अपना कृपापात्र स्थापित किया। शालंभ के पुत्र अथवा भतीजे हर्जरवर्मा को महाराधिराज परमेश्वर परमभट्टारक कहा गया है। शालंभ के बाद प्राय: २१ नरेशों ने यहाँ लगभग ८०० ई. से १,००० ई. तक राज किया। उसके बाद का इतिहास, अंग्रेजों के आने तक अव्यवस्थित सा है।

कामरूप का नाम लोकसाहित्य में भरपूर आया है। पश्चिमी प्रदेशों में लोकगीतों में अक्सर ही पत्नी अपने पति को कामरूप, असम या पूर्व बंगाल जाते समय वहाँ की जादुई आकर्षक स्त्रियों से सावधान करती हैं। उनका विश्वास है कि पश्चिम के पुरुषों को वे स्त्रियाँ जादू से दिन में भेड़ा बनाकर रखती हैं और रात में उन्हें उनका प्रकृत रूप देकर उनके साथ सहवास करती हैं। शक्तिपूजा का तो यह प्रदेश केंद्र था ही, उसकी राजधानी प्राग्ज्योतिष (आधुनिक गौहाटी) में कामाख्यादेवी का प्रसिद्ध मंदिर भी था जो आज भी वहाँ अवस्थित है।

(चं.भा.पां.)