कामताप्रसाद गुरु (१८७५-१९४७ ई.) हिंदी के लब्धप्रतिष्ठ वैयाकरण तथा साहित्यकार। इनका जन्म सागर में सन् १८७५ ई. (सं. १९३२ वि.) में हुआ। १७ वर्ष की आयु में ये इंट्रेंस की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। १९२० ई. में लगभग एक वर्ष तक इन्होंने इंडियन प्रेस, प्रयाग से प्रकाशित 'बालसखा' तथा 'सरस्वती' पत्रिकाओं का संपादन किया। ये बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे और अनेक भाषाओं का इन्हें अच्छा ज्ञान था। 'सत्य', 'प्रेम', 'पार्वती और यशोदा' (उपन्यास), 'भौमासुर वध', 'विनय पचासा' (्व्राजभाषा काव्य), 'पद्य पुष्पावली', 'सुदर्शन' (पौराणिक नाटक) तथा 'हिंदुस्तानी शिष्टाचार' इनकी उल्लेखनीय कृतियाँ हैं। किंतु गुरु जी की असाधारण ख्याति उनकी उपर्युक्त साहित्यिक कृतियों से नहीं, बल्कि उनके 'हिंदी व्याकरण' के कारण है जिसका प्रकाशन सर्वप्रथम नागरीप्रचारिणी सभा, काशी में अपनी लेखमाला में सं. १९७४ से सं. १९७६ वि. के बीच किया और जो सं. १९७७ (१९२० ई.) में पहली बार सभा से पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित हुआ। यह हिंदी भाषा का सबसे बड़ा और प्रामाणिक व्याकरण माना जाता है। कतिपय विदेशी भाषाओं में इसके अनुवाद भी हुए हैं। संक्षिप्त हिंदी व्याकरण मध्य हिंदी व्याकरण और प्रथम हिंदी व्याकरण इसी के संक्षिप्ताकृत संस्करण हैं। गुरु जी ने अपने जीवनकाल में कई बार इसमें कुछ विशेष महत्वपूर्ण परिष्कार किए। संप्रति इसका दसवाँ संस्करण प्रचलित है। गुरु जी का निधन १६ नवंबर, १९४७ ई. को जबलपुर में हुआ। (कै.चं.श.)