कामंदकीय कामंदकीय नीतिसार राज्यशास्त्र का एक ग्रंथविशेष है। कामंदकि अथवा कामंदक इसके कर्ता का नाम है जिससे यह साधारणत: कामंदकीय नाम से प्रसिद्ध है। वास्तव में यह ग्रंथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र, मूलत: राजनीति विद्या, के सारभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है। इस ग्रंथ के कुल मिलाकर १९ अध्याय हैं।

इसके रचनाकाल के विषय में कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। विंटरनित्स के मतानुसार किसी कश्मीरी कवि ने इसकी रचना ईस्वी ७००-७५० के बीच की। डा. राजेंद्रलाल मित्र का अनुमान है कि ईसा के जन्मकाल के लगभग बालिद्वीप जानेवाले आर्य इसे भारत से बाहर ले गए जहाँ इसका 'कवि' भाषा में अनुवाद हुआ। पीछे यह ग्रंथ जावाद्वीप में भी पहुँचा। छठी शताब्दी के कवि दंडी ने अपने 'दशकुमारचरित' के प्रथम उच्छ्वास के अंत में 'कामंदकीय' का उल्लेख किया है।

इसके कर्ता कामंदकि या कामंदक कब और कहाँ हुए, इसका भी कोई पक्का प्रमाण नहीं मिलता। इतना अवश्य ज्ञात होता है कि ईसा की सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध नाटककार भवभूति से पूर्व इस ग्रंथ का लेखक हुआ था, क्योंकि भवभूति ने अपने नाटक 'मालतीमाधव' में नीतिप्रयोगनिपुणा एक परिव्राजिका का 'कामंदकी' नाम दिया है। संभवत: नीतिसारकर्ता 'कामंदक' नाम से रूढ़ हो गया है तथा नीतिसारनिष्णात व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होने लगा था। कामंदक की प्राचीनता का एक और प्रमाण भी दृष्टिगोचर होता है। कामंदकीय नीतिसार की मुख्यत: पाँच टीकाएँ उपलब्ध होती हैं : उपाध्याय निरक्षेप, आत्मारामकृत, जयरामकृत, वरदराजकृत तथा शंकराचार्य