काबुल नगर काबुल नदी की घाटी में, पश्चिमी पर्वतीय शृंखलाओं के छोर पर, समुद्र की सतह से ६,९०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। (स्थिति २४स् ३२व् उ.अ. तथा ६९स् १४व् पू.दे., जनसंख्या ४,३५,००० (१९६५) )। काबुल प्रांत का यह नगर अफगानिस्तान की राजधानी है। पेशावर से १६५ मील की दूरी पर स्थित यह ऐतिहासिक नगर प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। इसके उत्तर में हिंदूकुश पर्वत के तथा पश्चिम में कंधार के दर्रे मिलते हैं। ऐतिहासिक काल में, सिकंदर (अलक्षेंद्र) महान्, चंगेज खाँ, बाबर तथा नादिरशाह आदि के आक्रमण काबुल से ही होकर हुए। यह भी सत्य है कि बाबर के शासनकाल से लेकर नादिरशाह के समय तक (१५२६ ई. से १७३८ ई. तक) काबुल दिल्ली साम्राज्य का भाग था।
प्राचीन नगर चारों तरफ से दीवारों से घिरा हुआ था, जिसमें सात द्वार थे, इस समय चिह्नस्वरूप 'दरवाजा लाहौरी' नामक द्वार उपस्थित है। इस नगर में चौड़ी सँकरी, दोनों प्रकार की, सड़कें वर्तमान हैं। नगर में प्राचीन किले का ध्वंसावेशष, जिसे बालाहिसार कहते हैं, १५० फुट की ऊँचाई पर खड़ा है। अफगानिस्तान का राजप्रासाद नग के उत्तर-पश्चिम में आधे मील की दूरी पर अवस्थित है। नगर में बहुत सी ऐतिहासिक वस्तुओं के भग्नावशेष अब तक वर्तमान हैं।
यह नगर अफगानिस्तान राज्य के सभी प्रांतों से तथा तुर्किस्तान, बोखारा, पाकिस्तान आदि से पक्की सड़कों द्वारा संबद्ध है। आधुनिक नगर का समुचित विकास वहाँ की सुनियोजित सड़कों, सुंदर पुष्पवाटिकाओं तथा भव्य भवनों को देखने से प्रकट होता है। काबुल में शाहजहाँ द्वारा बनवाई हुई एक मस्जिद भी है। यहाँ दियासलाई, बटन, चमड़े के समान, जूते, संगमरमर की वस्तुएँ तथा लकड़ी के सामान बनाने के बहुत से कारखाने हैं। काबुल अपने ऊन तथा फल के व्यापार के लिए भी प्रसिद्ध है।
काबुल में कुछ माध्यमिक विद्यालय, काबुल विश्वविद्यालय (स्थापित १९३२ ई.) तथा प्राध्यापकों के दो प्रशिक्षण केंद्र हैं। यहाँ आधुनिक युग की नगरसुलभ सभी सुविधाएँ प्राप्त हैं।
काबुल प्रांत पर्वतीय क्षेत्र है। क्षेत्रफल १०० वर्ग मील, जनसंख्या १२,६७,००० (१९६९)। गेहूँ, जौ आदि फसलों के सिवाय काबुल घाटी अमूल्य फलों की निधि है। (द्र. 'अफगानिस्तान')
काबुल नदी—अफगानिस्तान की यह मुख्य नदी ३०० मील लंबी है। नदी का प्राचीन नाम कोफेसा है। यह नदी हिंदूकुश पर्वत की संगलाख श्रेणी के उनाई दर्रें के पास से निकलती है। देश की राजधानी काबुल नगर इस नदी की घाटी में स्थित है। उद्गम स्थान से काबुल नगर तक नदी की लंबाई ४५ मील है। अफगानिस्तान का मुख्य प्रांत काबुल इस नदी के क्षेत्र से बना है जिसमें हिंदूकुश तथा सफेद कोह के बीच का भाग सम्मिलित है। काबुल नगर के ऊपरी हिस्से में नदी का सारा पानी (विशेषकर गम्रियों में) सूख जाता है। पुन: काबुल नगर के आधा मील पूर्व आने पर लोगार नाम की बड़ी नदी, जो १४,२०० फुट की ऊँचाई पर गुलकोह (गजनी पश्चिम) से निकलती है, काबुल नदी में मिलती है। नदी के मिलनस्थान से काबुल नदी तीव्रगामी तथा बड़ी नदी के रूप में आगे बढ़ती है और हिंदूकुश से निकलनेवाली प्राय: सभी नदियों के पानी को आगे बहाती है। काबुल नगर से नीचे आने पर इस नदी में क्रमश: पंजशीर तथा टगाओं नदियाँ, तत्पश्चात् अलिंगार तथा अलिशांग नदियों की संयुक्त धाराएँ मिलती हैं। आगे बढ़ने पर सुरख़ाव और कुनार नदियाँ मिलती हैं। काबुल नदी की यह विशाल धारा मोहमंद पहाड़ियों के गहरे, सँकरे कंदरों में होती हुई पेशावर के उपजाऊ मैदान में प्रवेश करती है। अपने आखिरी भाग में नदी स्वात तथा बारा नदियों के पानी को लेकर अटक के पास सिंध नदी में मिल जाती है।
पर्वतीय प्रकृति की यह नदी अपने निम्न भाग में जलालाबाद के बाद से ही नौका चलाने के उपयुक्त है। इस नदी की घाटी बहुत ही उपजाऊ है। इसमें गेहूँ आदि अन्नों के साथ फल तथा तरकारियाँ प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होती हैं। काबुल नदी पर सरोबी का बिजलीघर स्थित है, जहाँ नदी पर बाँध बनाकर पानी से बिजली पैदा की जाती है। इससे काबुल नगर लाभान्वित होता है। (ह.ह.सिं.)