काबा मक्का में एक प्रसिद्ध मंदिर के लिए यह नाम दिया गया है। काबा या काबे शब्द का तात्पर्य वास्तव में उस मंदिर के मध्यमार्ग में अवस्थित एक छोटे उपासनागृह (ओरेटरी) से है जिसके चारों ओर लंबी गैलरी बनी हुई है। यह मंदिर एक विषम घन के रूप में ४० फुट लंबा, ३३ फुट चौड़ा और ५० फुट ऊँचा है। यहीं एक निर्दिष्ट स्थान पर खड़े होकर मुसलमान ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। इस मंदिर के द.पू. कोने में पाँच फुट की उँचाई पर एक काला पत्थर रखा है। लोगों का विश्वास है कि यह स्वर्ग का एक अत्यधिक मूल्यवान् प्रस्तरखंड है जिसे देवदूत गब्रीएल ने तब अब्राहम को दिया था जब वे काबे का निर्माण करा रहे थे। कुछ लोगों के अनुसार यह पत्थर किसी समय चुराकर तोड़ डाला गया था। लेकन जो भी हो, धार्मिक प्रवृत्तिवाले व्यक्तियों के लिए यह बड़े महत्व एवं श्रद्धा की वस्तु है।

काबे का मंदिर मुहम्मद के समय से भी प्राचीन है। इसके पूर्व यह अरब सर्वदेवमंदिर था जिसमें राष्ट्र संबंधी विशिष्ट प्रकार की मूतियाँ स्थापित की गई थीं। बाद में धर्मपुरोहितों ने इन मूर्तियों को नष्ट कर डाला। लेकिन विशेष प्रकार की पूजा के तरीके 'तवाफ' को कायम रहने दिया गया। पुजारियों के आधिपत्य में मंदिर की बाहरी दीवार कपड़े की पतली पट्टियों से ढकी रहती थी जिनके ऊपर कुरान की प्रसिद्ध आयतें लिखी थीं। मंदिर का प्रवेशद्वार, खंभे एवं छत चमकती हुई चाँदी से निर्मित हैं। रजतजटित एक कपाट सीढ़ी की ओर खुलता है जिससे छत की ओर जाने का मार्ग है। खलीफा मेंहदी ने इस मंदिर की सजावट में अनंत धनराशि व्यय की। यह मंदिर सोलहवीं शताब्दी में पूरा बनकर तैयार हो चुका था। (शी.प्र.सिं.)