काफ़ूर, मलिक नायब का परिचय इतिहास को तब प्राप्त हुआ जब अलाउद्दीन ख़ल्ज़ी की विशाल सेना ने गुजरात के राजपूत राजा राय कर्णदेव द्वितीय पर आक्रमण किया। अलाउद्दीन की सेना ने गुजरात के राजा को हरा दिया। जब यह सेना दिल्ली वापस लौटी तो अपने साथ अपार धन संपत्ति, गुजरात की सुंदर रानी कमला देवी तथा हरम के एक नौजवान नौकर को, जिसका नाम काफ़ूर था, अपने साथ लाई। यह काफ़ूर बाद में अलाउद्दीन का बड़ा प्रभावशाली दरबारी बन गया। उलाउद्दीन की मृत्यु के कुछ पहले से लेकर कुछ बाद तक काफ़ूर पूरे राज्य का वास्तविक स्वामी बन बैठा था। अलाउद्दीन ने उसके रणकौशल तथा अन्य गुणों से प्रसन्न होकर उसे राज्य के 'मलिक नायब' की उपाधि दी थी तथा उसे प्रधान सेनापति एवं वजीर भी बना दिया था।
सन् १३०७ में अलाउद्दीन ने मलिक काफ़ूर के नेतृत्व में एक सेना देवगिरि भेजी। वहाँ के यादव राजा रामचंद्रदेव ने पिछले तीन सालों से एलिचपुर प्रांत का कर अलाउद्दीन को नहीं दिया था तथा गुजरात के राजा कर्णदेव को अपने यहाँ शरण दी थी। काफ़ूर मालवा होता अपनी सेना के साथ देवगिरि जा पहुँचा। उसने पूरे राज्य को लूटा और वहाँ के राजा को हराकर संधि करने के लिए मजबूर किया। इस पराजय के बाद वह दिल्ली सल्तनत के अधीन होकर राज करता रहा। यादवों की पराजय से प्रोत्साहित होकर अलाउद्दीन ने वारंगल के राजा प्रतापरुद्रदेव को हराने के लिए सन् १३०९ में मलिका काफ़ूर को भेजा। वास्तव में अलाउद्दीन वारंगल के खजाने तथा हाथी घोड़ों से आकृष्ट हुआ था। उसने काफ़ूर को आदेश दिया कि यदि वारंगल का राजा यह सब कुछ उसे दे तो वह उसे अधिक परेशान न करे। काफ़ूर ने जाकर वारंगल के किले पर घेरा डाल दिया और अंत में मार्च, १३१० में वहाँ के शासक ने काफ़ूर को हाथी, घोड़े तथा बड़ी संख्या में जवाहरात तथा धन दिया और आगे देने का वचन दिया। काफ़ूर सैकड़ों ऊँटों पर लूट का धन लादकर दिल्ली लौट आया।
इन सब सफलताओं के पश्चात् अलाउद्दीन ने दक्षिणी राज्यों की ओर अपना हाथ फैलाया। नवंबर, १३१० में ख्वाजा हाजी के साथ मलिक काफ़ूर ने जाकर हौयसल की राजधानी द्वारसमुद्र पर आक्रमण किया। होयसल राजा वीर बल्लाल घबरा गया और उसने अपनी सारा खजाना काफ़ूर को सौंप दिया। इसके अतिरिक्त काफ़ूर ने बहुत बड़ी मात्रा में सोना, चाँदी, हीरे तथा जवाहरात मंदिरों से एकत्र कर लिए। उसके बाद प्राप्त की हुई सारी संपत्ति को उसने दिल्ली भेज दिया।
कुछ दिन वहाँ रहने के पश्चात् मलिक ने अपना ध्यान पांड्य शासक कुलशेखर के राज्य के राज्य की ओर किया। वहाँ कुलशेखर के दो पुत्रों—सुंदर पांड्य और वीर पांड्य—में उत्तराधिकार के लिए युद्ध छिड़ा था। सुंदर ने अपने पिता की कृपादृष्टि वीर पर देखकर उनका वध कर दिया और वह स्वयं सिंहासन पर बैठ गया। बाद में वीर पांड्य ने उसे हरा दिया। इस पर सुंदर ने काफ़ूर से सहायता माँगी। काफ़ूर अपनी विशाल सेना के साथ दक्षिण की ओर बढ़ा और १३११ में पांड्य राजधानी मदुरा पहुँच गया। काफ़ूर को आते देख वीर पांड्य भाग गया। फिर भी मलिक नायब ने राजधानी को खूब लूटा और हाथी, घोड़े तथा सैकड़ों मन हीरे जवाहरात प्राप्त किए। इसके पश्चात् अक्टूबर, १३११ में अपनी वर्णनातीत लूट की संपत्ति के साथ वह दिल्ली पहुँच गया। इस विजय के बाद पांड्यों का राज्य काफी समय तक दिल्ली सल्तनत के अधीन रहा। मलिक ने एक बार पुन: यादव राजा को हराकर मार डाला। इस प्रकार सारा दक्षिण भारत दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गया।
सन् १३१२ में अलाउद्दीन अपनी प्रभुता की पराकष्ठा पर पहुँच गया, पर शीघ्र ही उसका पतन प्रारंभ हो गया। यह काफ़ूर के हाथ की कठपुतली बन चुका था। सन् १३१६ में अलाउद्दीन की मृत्यु हो गई। कुछ लोगों का विश्वास है कि अलाउद्दीन की मृत्यु में काफ़ूर का हाथ था। अलाउद्दीन के बाद काफ़ूर ने उसके तीन बड़े बेटों को शासनाधिकार से वंचित करके सबसे छोटे बेटे को सिंहासन पर बिठाया और स्वयं इच्छानुसार राजकार्य का संचालन करने लगा। वास्तव में वह स्वयं सिंहासन पर बैठना चाहता था। इसके लिए उसने अवर्णनीय षड्यंत्र रचे तथा अपराध किए। उसके इन अमानुषिक कृत्यों का बदला उसे यों मिल गया कि वह शीघ्र ही मार डाला गया। (मि.चं.पां.)