काठमांडू हिमालय की पर्वतशृंखला की दो शाखाओं के मध्य विस्तृत काठमांडू घाटी के केंद्र में स्थित यह नगर काठमांडू प्रदेश तथा नेपाल देश की राजधानी है। भारत की सीमा से १२० किलोमीटर दूर, उत्तर की ओर, बागमती और विष्णुमती नदियों के संगम पर यह नगर बसा हुआ है। इसकी ऊँचाई समुद्र की सतह से ४,५०० फुट है।
१७वीं शताब्दी में भीममाला ने केवल काठ के बने हुए कए मंदिर का निर्माण किया जिसका नाम काठमंदिर रखा गया। काठमांडू नाम की उत्पत्ति तभी से कही जाती है (काष्ठमंडप ऊ काठमांडौ ऊकाठमंडू)। ग्रीष्म ऋतु की यहाँ की जलवायु आनंदप्रद है। यहाँ का औसत ताप तब लगभग ७५रू फा. रहता है, किंतु जाड़े के दिन कष्टप्रद होते हैं जब ताप कभी-कभी ३२रू फा. तक हो जाता है। नगर के प्रत्येक दिशा में हिमालय की बर्फीली चोटियाँ दिखाई पड़ती हैं। इस नगर में कई जातियाँ निवास करती हैं जिनमें प्रमुख नेवारी, ठाकुरी, गुरंग और गोरखा हैं। इस नगर की जनसंख्या १९६४ ई में १,९५,२६० थी। यहाँ के निवासियों के प्राय: सभी कार्य धार्मिक विचारों से प्रभावित होते हैं। ये मुख्यत: हिंदू तथा बौद्ध धर्मानुयायी हैं।
प्राकृतिक बाधाओं तथा कुछ राजनीतिक प्रतिबंधों के फलस्वरूप इस नगर तथा नेपाल राज्य का विदेशों में अधिक संबंध नहीं रहा। अतएव १९वीं शताब्दी के अंत तक नेपाल सुषुप्तावस्था में ही पड़ा रहा। किंतु वर्तमान शताब्दी के मध्यकाल तक यहाँ पूर्ण जागृति हुई। स्वतंत्र सत्ता की रक्षा के लिए अब इस देश ने धीरे-धीरे संसार के कोन-कोने से अपना संबंध स्थापित कर लिया है तथा यह उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो रहा है। यहाँ की निरक्षरता को दूर करने पर स्थानीय सरकार ने विशेष ध्यान दिया है। अब उच्च शिक्षा की व्यवस्था क्रमश: हो रही है। इस समय इस नगर में नवस्थापित त्रिभुवन विश्वविद्यालय तथा तीन उच्च विद्यालय हैं।
यहाँ के निवासी लघु उद्योग धंधों में बड़े निपुण हैं। यहाँ का काष्ठ उद्योग विशेषता उल्लेखनीय है। इसके अतिरिक्त कपड़े के जूते, छाता, हस्तकला की वस्तुएँ, बर्तन, कालीन, कढ़ाई का काम, ऊनी वस्त्र इत्यादि तैयार करने तथा चर्म उद्योग में यहाँ के कारीगर बड़े कुशल है। यद्यपि यहाँ लोहे की खानें नहीं हैं, तथापि यह नगर भारत से लोहे का आयात करके घरेलू आवश्यक सामग्री का स्वयं निर्माण करता रहा है। यहाँ की मुख्य उपज गेहूँ, चावल, फल तथा तरकारी हैं, किंतु भूमि तथा उपज की कमी के कारण इस नगर को खाद्यान्नों का आयात करना पड़ता है। यहाँ अनेक भव्य मंदिर हैं जिनमें पशुपतिनाथ, बोधनाथ, स्वयंभूनाथ तथा हनुमानढोक प्रस्तरस्मारक दर्शनीय हैं। पर्वतीय प्रदेश होने के कारण यहाँ अभी तक गमनागमन के साधनों की उन्नति नहीं हो पाई है। माल ढोने के लिए १४ मील लंबा एक रज्जुपथ है जो आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। भारत की सहायता से नवनिर्मित त्रिभुवन राजपथ, जिसकी लंबाई २११ किलोमीटर है तथा जो काठमांडू को भारत के सीमांत नगर रक्सौल से संबंधित करता है, नेपाल देश के लिए उन्नति का मार्ग है। अब काठमांडू संसार के वायुमार्ग से भी संबंधित हो गया है।