क़ाज़ी इस्लामी राज्यों में न्याय विभाग का मुख्य अधिकारी क़ाज़ी होता है। प्रारंभ में न्याय विभाग की देखरेख खलीफ़ा के अधीन होती थी जो पूरे इस्लामी राज्य का हाकिम होता था। मुसलमानों के प्रथम ख़लीफ़ा हज़रत अबू बक्र (६३२-६३४ ई.) ने अपने शासन काल में न्याय विभाग को अपने अधिकार ही में रखा अत: उनके समय में क़ाजी की नियुक्ति की आवश्यकता न हुई। दूसरे खलीफ़ा हज़रत उमर (६३४-६४४ ई.) ने अन्य लोगों को क़ाज़ी नियुक्त किया। इसका कारण यह था कि राज्य की सीमाएँ फैल गई थीं और ख़लीफ़ा के लिए पूरे राज्य की देखभाल के साथ-साथ न्याय विभाग का संचालन असंभव था। मदीने में वे स्वयं तथा अबू दरदा क़ाज़ी के कार्य को सम्हालते थे। बसरे में उन्होंने शुरैह तथ कूफ़े में अबू मूसा अशअरी को क़ाज़ी नियुक्त कर दिया था। अबू मूसा की नियुक्ति के समय हज़रत उमर ने एक पत्र लिखा जिसे क़ज़ा विभाग, जिसका संबंध क़ाजियों से होता था, के आदेशों एवं कार्यों का पूर्ण विधान समझना चाहिए। इस पत्र में वचन का पालन करने, न्याय की उपेक्षा न करने, पक्षपात करने तथा शक्तिहीनों को सहारा देने पर बड़ा जोर दिया गया है। क़ाज़ी के लिए यह भी आदेश था कि वह निर्णय देने के उपरांत उसपर ठंडे दिल से सोचविचार करे। यदि न्याय किसी अन्य ओर ज्ञात हो तो न्याय का पालन करने में किसी प्रकार का संकोच न करे। गवाही तथा उसके अनुसार न्याय करने पर भी बड़ा जोर दिया जाता था। उदाहरणत: ऐसे व्यक्ति की गवाही स्वीकार करनी निषिद्ध थी जिसे किसी अपराध के दंड में कोड़े लग चुके हों या वह किसी गवाही के समय झूठा सिद्ध हो चुका हो।
यद्यपि ख़लीफ़ाओं ने न्याय विभाग को क़ाज़ी के सुपुर्द कर दिया था, फिर भी महत्वपूर्ण निर्णय वे स्वयं ही करते थे। ख़लीफ़ाओं के शासन काल में क़ाज़ी को केवल अभियोगों के निर्णय का अधिकार था किंतु शनै: शनै: क़ाज़ियों के अधिकार बढ़ते चले गए और अन्य कार्य भी उन्हें सौंपे जाने लगे; यहाँ तक कि सर्वसाधारण के हितों की रक्षा भी उन्हीं के सुपुर्द कर दी गई। पागलों, अंधों, दरिद्रों, एवं मूर्खों की धन-संपत्ति की देखभाल, वसीअतों का पालन, वक्फ़ों का प्रबंध, विधवाओं के विवाह की व्यवस्था, मार्गों और घरों की देखभाल, दस्तावेज़ों की जाँच-पड़ताल, साक्षियों की छानबीन, अमीनों और नायबों की देखरेख क़ाज़ी के ही सुपुर्द रहने लगी। कभी-कभी सैनिक दस्ते भी जेहाद में क़ाज़ी के नेतृत्व में भेजे जाते थे। भारतवर्ष में दिल्ली के सुल्तानों तथा मुगलों के राज्यकाल में क़ाज़ियों के सुपुर्द लगभग यही कार्य थे और सर्वोच्च क़ाज़ी, क़ाज़ि-उल-कुज़ज़ात कहलाता था।
सं.ग्रं.-अरबी मावद : एहकामुस्सुलतानिया; इब्ने ख़लदून : मुक़द्दमा; (हिंदी) रिज़वी : इब्ने ख़लदून का मुकद्दमा, हिंदी समिति, लखनऊ, १९६१। (सै.अ.अ.रि.)