काच लगाना भवन निर्माण में प्राय: दरवाजों, खिड़कियों, झरोखों, या विभाजन परदों इत्यादि में काच का व्यवहार किया जाता है।

काच लगाने का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि कमरे इत्यादि में प्रकाश आए, परंतु वर्षा और तप्त अथवा शीत पवन से रक्षा हो। किंतु मकान में अथवा उसके किसी भाग में काच का प्रयोग प्रकाश कम करने के लिए अथवा परदा करने तथा सौंदर्य वृद्धि के विचार से भी किया जाता है, क्योंकि काच कई प्रकार के तथा रंग बिरंगे भी हाते हैं।

काच की मोटाई इंच से लेकर साधारणत: इंच तक होती है (अधिकांश शीशे फ़फ़, फ़फ़, फ़फ़ तथा ह्फ़फ़ मोटाई के होते हैं)। लंबाई, चौड़ाई भी ३ फुट से ४ फुट तक किसी भी माप की मिल सकती है। बड़ी माप का काच महँगा पड़ता है तथा विशेष माँग पर मिलता है। खिड़कियों में लगाने के लिए ८�� � १०��, १०�� � १२��, १२�� � १४�� इत्यादि नाप के शीशे बाजार में सुलभ रहते हैं।

काच लगाने के लिए दरवाजे या खिड़की के दिलहे में खाँसा छोड़ दिया जाता है। इसी खाँचे में उपयुक्त नाप का शीशा स्थान पर बैठाकर उसे बिरंजियों (छोटी कीलों) से फँसा दिया जाता है। फिर ऊपर से पोटीन लगा दी जाती है, जैसा नीचे चित्र में दिखलाया गया है। पोटीन आड़ी या तिरछी काट दी जाती है, जैसा चित्र से स्पष्ट है। पोटीन इसलिए लगाई जाती है कि शीश ढीला न रहे, नहीं तो हिलने से वह खड़खड़ाएगा और उसके टूट जाने की आशंका रहेगी।

अधिक समय बीतने पर पोटीन का तेल सूख जाता है और तब वह भंगुर हो जाती है। फिर धीरे-धीरे पोटीन उखड़ जाती है, जिससे उसकी मरम्मत की आवश्यकता पड़ जाती है। इस कठिनाई को दूर करने के लिए पोटीन के स्थान पर लकड़ी की एक पतली डंडी जड़ने की प्रथा भी अब चल पड़ी है। डंडी उसी लकड़ी की होनी चाहिए जिस लकड़ी की खिड़की या दरवाजा हो तथा उसकी नाप ऐसी होनी चाहिए कि शीशे के ऊपर लगाने से वह पल्ले की लकड़ी से ऊँची न उठी रहे। लकड़ी डंडी पतली, छोटी कीलों से जड़ी जाती है और उसके किनारे की धार को रंदे से मारकर कुछ गोल कर दिया जाता है (द्र. चित्र ङ)।

लकड़ी की डंडी के दबाव से शीशा चटख न जाए इसके लिए डंडी के नीचे उसी की चौड़ाई का पतला नमदा (felt) अथवा रबर की पट्टी भी लगा दी जाती है।

लकड़ी के दरवाजों तथा खिड़कियों के अतिरिक्त अब लोहे अथवा ऐल्यूमिनियम धातु के भी दरवाजे इत्यादि बनने लगे हैं और उनमें भी शीशे लगाए जो हैं। यहाँ भी काच लगाने की विधि प्राय: उपर्युक्त विधि के ही समान रहती है, अंतर केवल यह होता है कि काच लगाने का खाँचा दरवाजे में पहले सही बना हुआ रहता है जिसपर शीशा लगाकर या तो पोटीन लगाई जा सकती है, अथवा ऊपर एक ्ख्र अथवा अन्य आकार की धातु की बनी बनाई डंडी पेंच से जड़ दी जाती हे, जैसा चित्र में दिखाया गया है।

एक और रीति (जो इस देश में कम प्रचलित है) सीसे के क्त आकार की पट्टियाँके प्रयोग की है। इन पट्टियों को लकड़ी या धातु दोनों प्रकार के दरवाजों में काच लगाने के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है, जैसा चित्र में दिखाया गया है। सीसे की इन पट्टियों द्वारा काच पत्थर के खाँचों में भी लगाया जा सकता है (द्र. चित्र घ)। (का.प्र.)